हमारे देश में ऐसे कई नियम और कानून बरसों से चले आ रहे हैं जिन्हें बदलने की बहुत जरूरत है। इनमें से अधिकतर नियम किसी महिला की स्वतंत्रता से जुड़े हुए हैं। शादी करने की स्वतंत्रता, अपना जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता, अपने पिता की प्रॉपर्टी पर हक जताने की स्वतंत्रता, अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीने की स्वतंत्रता। दरअसल, दिक्कत ये है कि इन नियमों को जिस दौरान बनाया गया था वो समय कुछ और ही था। पर अभी तक अगर वो नियम चले आ रहे हैं तो ये गलत है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसे ही नियम को खारिज किया है। ये नियम था सिक्किम की महिलाओं से जुड़ा हुआ जहां उन्हें इनकम टैक्स की छूट सिर्फ इसलिए नहीं मिल सकती थी क्योंकि उन्होंने किसी ऐसे इंसान से शादी की थी जो सिक्किम का नहीं था। नॉन-सिक्किमीज इंसान से शादी करने के बाद उन्हें जो भी टैक्स छूट पहले मिलती थी वो मिलना बंद हो जाती थी।
जस्टिस एम.आर.शाह और बी.वी.नागराथन की बेंच ने इस फैसले को लिया था। इसके तहत उस नियम को सिरे से खारिज कर दिया गया है जिसके अनुसार नॉन-सिक्किमीज लड़के से शादी करने के बाद लड़कियों को इनकम टैक्स में छूट मिलना बंद हो जाती थी।
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कोर्ट ने अपने फैसले में सुनाया कि एक महिला कोई संपत्ति नहीं है और उसकी अपनी एक अलग आइडेंटिटी है। वो अपने हिसाब से शादी का फैसला ले सकती है।
अदालत दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अन्य बातों के अलावा, इनकम टैक्स एक्ट 1961 की धारा 10 (26 एएए) के उस हिस्से को चुनौती दी गई थी, जिसमें 1 अप्रैल, 2008 के बाद एक गैर-सिक्किमी लड़के से शादी करने वाली सिक्किमी महिलाओं को छूट प्राप्त करने से बाहर रखा गया था।
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जिस धारा 10 की यहां बात हो रही है वो सिक्किम के सैलरी पाने वाले लोगों को इनकम टैक्स में छूट का प्रावधान रखता है। वो अलग-अलग इनकम सोर्स के जरिए अपने टैक्स की बचत कर सकते हैं। पर अब तक ये होता आया है कि अगर किसी सिक्किमी व्यक्ति की इनकम सोर्स स्टेट ऑफ सिक्किम की तरफ से है या फिर किसी तरह के डिविडेंड या इंटरेस्ट के तौर पर है तो उसे इनकम टैक्स में छूट मिलेगी। हालांकि, अगर कोई सिक्किम की महिला किसी नॉन-सिक्किमी व्यक्ति से शादी करती है तो उसे ये छूट नहीं मिलेगी। (सिक्किम की खास जगह पर्यटन के लिए है बेस्ट)
याचिकाकर्ता ने अपनी पेटिशन में ये कहा था कि इस तरह का नियम आर्टिकल 14 का उल्लंघन करता है जिसमें कानूनन सभी को बराबरी का हक मिलता है। ये नियम आर्टिकल 15 का भी उल्लंघन करता है जिसमें किसी धर्म, जाति, सेक्स या फिर जन्म के स्थान के आधार पर किसी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है। इसी के साथ, ये नियम आर्टिकल 21 का उल्लंघन भी करता है जिसमें संविधान के हिसाब से किसी व्यक्ति को अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने और पर्सनल लिबर्टी का अधिकार है।
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इस नियम की मानें तो जब तक महिला की शादी नहीं हुई तब तक वो सिक्किम के सारे अधिकार ले सकती थी, लेकिन अगर एक बार शादी हो गई तो उसके सारे अधिकार छिन जाते थे। ये सारे नियम यकीनन ये साबित करते थे कि महिलाओं का हक सिर्फ शादी के पहले तक ही होता है। कोर्ट ने अपने फैसले में बताया कि कट ऑफ डेट जो 1 अप्रैल 2008 रखी गई थी उसका भी कोई मतलब नहीं है।
इस तरह के नियम बताते हैं कि आज भी हम ये मानते हैं कि शादी के बाद लड़की का अधिकार नहीं रहता और उसे अपनी पसंद का साथी चुनने का हक नहीं है। ये नियम यकीनन पुरानी सोच को दर्शाते हैं और जिस तरह कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है वो बिल्कुल सही है। किसी लड़की से उसकी शादी के आधार पर हक छीन लेना बिल्कुल सही नहीं है।
सोचने वाली बात है कि अगर किसी महिला के साथ इस तरह का भेदभाव हो रहा है तो बुरा लगना स्वाभाविक है। आपकी इस मामले में क्या राय है ये हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
Image Credit: Onmanorama/ flickr
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