
अमेरिका की बात जब होती है तो हमेशा हमारे मन में बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स के ही ख्याल आते हैं। इसके अलावा Statue Of Liberty को भला कैसे ही कोई भूल सकता है। अमेरिका में 26 अक्टूबर, 1886 को सैकड़ों-हजारों लोगों की मौजूदगी में इस स्टैच्यू का अनावरण हुआ था। इसे देखने के लिए लाखों लोग आते थे। ब्राजील के गुआइबा शहर में तेज तूफान आने के कारण 40-मीटर ऊंची Statue of Liberty गिर गई।
ये मूर्ति यूनाइटेड स्टेट्स के न्यूयार्क शहर में स्थित स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी की रेप्लिका है। स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी सिर्फ एक मूर्ति नहीं, बल्कि अमेरिका की पहचान और आजदी का बड़ा प्रतीक भी मानी जाती रही है। आज हम आपको इसके पूरे इतिहास के बारे में बता रहे हैं। आइए जानते हैं-
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फ्रांस ने अमेरिका को आजादी की याद में स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी तोहफे में दी थी। अमेरिका को ब्रिटेन से आजादी 4 जुलाई 1776 को मिली थी। इसी दोस्ती और आजादी के जश्न में फ्रांस ने स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी बनाने का फैसला किया था।
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इस मूर्ति को फ्रांस के फेमस मूर्तिकार फ्रेडरिक ऑगस्टे बार्थोल्डी ने डिजाइन किया था। इसके अंदर की लोहे की मजबूत बनावट फेमस इंजीनियर गुस्ताव आइफिल ने तैयार की। ये वही हैं जिनका नाम Eiffel Tower से भी जुड़ा है। स्टैच्यू को भले ही फ्रांस में बनाया गया हो, लेकिन इसे लगाने के लिए अमेरिका को न्यूयॉर्क के लिबर्टी आइलैंड पर चबूतरा बनाना था।
ये मूर्ति इतपनी बड़ी थी कि इसे एक बार में भेजना नामुमकिन था। इसलिए फ्रांस ने 350 टुकड़ों में और 214 बड़े बक्सों में भरकर जहाज से अमेरिका भेजा था।
चबूतरा तैयार होने के बाद 28 अक्टूबर 1886 को अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ग्रोवर क्लीवलैंड ने स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी का अनावरण किया था। उसी दिन से ये अमेरिका की पहचान बन गई। ये मूर्ति आजादी का संदेश्र देती है।
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करीब 139 साल पुरानी ये मूर्ति आजादी, लोकतंत्र और नए अवसरों की उम्मीद का प्रतीक मानी जाती है। यही वजह है कि दुनिया भर से लोग इसे देखने न्यूयॉर्क पहुंचते हैं। स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी का पूरा नाम लिबर्टी एनलाइटिंग द वर्ल्ड है। ये नाम रोमन देवी लिबर्टस के नाम पर रखा गया है। इसे बनाने में 2.50 लाख अमेरिकी डॉलर की लागत आई थी। ये मूर्ति इतनी ऊंचाई पर है कि इसके सिर तक पहुंचने के लिए अंदर से 354 सीढ़ियां बनाई गई थीं।
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