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शाम की पूजा में घंटी बजाने की मनाही क्यों होती है, जानें ज्योतिष की राय

किसी भी पूजा के लिए ज्योतिष में कुछ विशेष नियम बनाए गए हैं, उन्हीं नियमों में से एक है पूजा के समय घंटी का इस्तेमाल करना। अगर आप भी पूजा से जुड़ी सभी बातों का ध्यान रखती हैं तो यह शुभ होता है। 
Editorial
Updated:- 2024-03-28, 18:14 IST

घंटी बजाना हिंदू पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ज्योतिष और वास्तु दोनों के अनुसार घंटी की सही जगह तो होनी ही चाहिए और इसे बजाने का एक समय भी होता है जिसका ध्यान रखना भी जरूरी माना जाता है।

ज्योतिष के अनुसार पूजा करते समय घंटी बजाना हमेशा शुभ माना जाता है और इसे लोग एक प्रथा के रूप में देखते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि यह भगवान को प्रसन्न करने का एक आसान तरीका होने के साथ ईश्वर तक अपना संदेश पहुंचाने का माध्यम भी है।

इसी वजह से पूजा और आरती के साथ घंटी बजाई जाती है। घंटी की ध्वनि नकारात्मक ऊर्जा को दूर करके सकारात्मकता को एकत्रित करती है, जो आस-पास के स्थान को शुद्ध करने में मदद करती है। इसलिए घर के मंदिर में घंटी अवश्य रखने की सलाह दी जाती है।

वहीं जब बात होती है पूजा में घंटे बजाने के सही समय की तो ऐसी मान्यता है कि रात के समय घंटी न बजाना ही उचित होता है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें कि रात में घंटी बजाने की मनाही क्यों होती है।

पूजा में घंटी बजाने का महत्व 

why we should not ring bell in evening

घंटी एक तरह की विशिष्ट ध्वनि उत्पन्न करने के लिए बनाई जाती है और इसकी ध्वनि आपके बाएं और दाएं मस्तिष्क को जोड़ने का काम करती है। जैसे ही आप पूजा की घंटी बजाते हैं, यह कम से कम सात सेकंड तक चलने वाली तेज और स्थायी ध्वनि उत्पन्न करती है। इसी वजह से यह आपके शरीर में स्थित सात  केंद्रों या चक्रों को संतुलित करती है। 

जैसे ही घंटी की ध्वनि उत्पन्न होती है आपका मस्तिष्क सभी बाहरी विचारों से खाली हो जाता है। पूजा की घंटी आपके मन की चंचलता पर एक औषधि का काम करती है। आपके पूजा घर में प्रवेश करने से पहले ही शरीर और मस्तिष्क को जागृत करने के लिए घंटी बजाई जाती है।

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इसके ज्योतिष कारण के रूप में घंटी बजाने से आपको अपने इष्ट-देव को सचेत रूप से बुलाने और हार्दिक भक्ति के साथ अपनी पूजा पर ध्यान केंद्रित करने में भी मदद मिलती है।

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किस समय घंटी बजाना होता है शुभ 

यदि हम ज्योतिष की मानें तो पूजा की घंटी हमेशा नहीं बजानी चाहिए। आप दिन के समय किसी भी पूजा के दौरान घंटी बजा सकते हैं, लेकिन जैसे ही शाम होती है और आप शाम की पूजा के लिए तैयार होते हैं तब आप दिन की तरह पूजा की घंटी नहीं बजा सकते हैं।

घंटी या घंटा हिंदू पूजा का एक अनिवार्य हिस्सा है। शास्त्रों के अनुसार वास्तविक पूजा शुरू होने से पहले घंटा बजाया जाता है। घंटा लंबी ध्वनि 'ओम' उत्पन्न करता है।

घंटी आपके पूजा कक्ष में, देवता के सामने आरती के दौरान, विशिष्ट नियमों और अनुष्ठानों के साथ देवता को स्नान कराते समय और उन्हें भोग लगाते समय बजाई जाती है। यही नहीं घंटी बजाने से बुरी शक्तियां दूर भाग जाती हैं, इसलिए दिन की पूजा के समय घंटी बजाना जरूरी माना जाता है। 

शाम की पूजा में घंटी बजाने की मनाही क्यों होती है 

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ऐसा माना जाता है कि घंटी हमेशा ईश्वर को जागृत करने और उनके पास अपना संदेश पहुंचाने के लिए बजाई जाती है। ऐसे में जब हम रात के समय घंटी बजाते हैं तब यह भगवान के विश्राम का समय होता है।

इसी वजह से जहां सुबह की प्रार्थना के लिए घंटी और शंख बजाना शुभ माना जाता है, वहीं शाम की पूजा के दौरान घंटी न बजाने की सलाह दी जाती है। मान्यता है कि सूर्यास्त के बाद ही सभी देवता विश्राम की अवस्था में आ जाते हैं, ऐसे में घंटी बजाने से उनके विश्राम में बाधा आती है जिससे पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलता है। 

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घर में किस तरह की घंटी रखनी चाहिए 

अगर हम घंटी की धातु की बात करते हैं तो पीतल की घंटी को सबसे शुभ माना जाता है और इससे सबसे ज्यादा नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। जब आप पीतल की घंटी को पूजा स्थान पर रखती हैं तो इससे निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह पूरे घर में होता है और वातावरण भी शुद्ध होता है।

घंटी की ध्वनि का कंपन मन मस्तिष्क में अच्छे विचारों को पहुंचाने में मदद करता है। आमतौर पर घर में गरुड़ घंटी रखना शुभ माना जाता है। इसके साथ ही घंटी रखते समय कुछ और बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है जैसे मंदिर में घंटी हमेशा ऐसे रखें कि जब भी आप इसे उठाएं तो ये सीधे हाथ की तरफ रखी हो। 

घंटी कभी भी आपको दक्षिण दिशा में नहीं रखनी चाहिए, इस दिशा को किसी भी पूजा की सामग्री के लिए शुभ नहीं माना जाता है। जब भी आप घंटी को मंदिर में रखें इसका मुख सामने की तरफ होना चाहिए।

यदि आप घंटी बजाते समय इन विशेष बातों का ध्यान रखती हैं तो आपको पूजा का पूर्ण फल मिलता है और इसके पूर्ण सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलते हैं। 

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