
हिंदू धर्म में पूजा-पाठ के दौरान दीपक जलाना केवल अंधकार दूर करने का प्रतीक नहीं है बल्कि यह हमारे जीवन में सकारात्मकता, ज्ञान और ईश्वरीय शक्ति का संचार करता है। शास्त्रों के अनुसार, दीपक जलाते समय किए गए नियम और सावधानियां हमारे घर की सुख-शांति पर सीधा प्रभाव डालती हैं। अक्सर हम अनजाने में दीपक से जुड़ी कुछ छोटी-छोटी गलतियां कर देते हैं जिससे पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता और अनजाने में वास्तु दोष भी लग सकता है। इसलिए, दीये की धातु, उसकी शुद्धता और पुरानी बत्ती के विसर्जन का सही तरीका जानना अनिवार्य है ताकि घर में हमेशा समृद्धि बनी रहे। इसी कड़ी में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि आखिर पूजा के दीये से जुड़ी कौन सी गलतियां नहीं करनी चाहिए?
पूजा में इस्तेमाल होने वाले दीये की पवित्रता बनाए रखना बहुत जरूरी है। अक्सर लोग इसे साधारण बर्तनों के साथ धो देते हैं जो कि गलत है। मान्यता है कि पूजा के दीये को तुलसी, मनी प्लांट या घर के किसी भी पवित्र पौधे की मिट्टी से रगड़कर धोना चाहिए।

मिट्टी एक शुद्ध तत्व मानी जाती है जो धातु से नकारात्मक ऊर्जा को सोख लेती है। ऐसा करने से दीये की शुद्धता बनी रहती है और अगली बार पूजा करते समय वह पूरी तरह पवित्र और ऊर्जा से भरपूर होता है। कोशिश करें कि बर्तन मांजने वाले साबुन से पूजा का दीया न धोएं।
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पूजा संपन्न होने के बाद दीये में बची हुई सामग्री को इधर-उधर नहीं फेंकना चाहिए। दीये में जो बत्ती जलने के बाद बच जाती है उसे श्रद्धापूर्वक किसी पीपल के पेड़ के नीचे डाल देना चाहिए क्योंकि पीपल में देवताओं का वास माना जाता है।
वहीं, दीये में अगर थोड़ा घी या तेल बच जाता है तो उसे फेंकने के बजाय अपने शरीर पर लगा लेना चाहिए। माना जाता है कि पूजा की लौ से अभिमंत्रित इस घी में सकारात्मक ऊर्जा होती है जो शारीरिक रोगों और कष्टों को दूर करने में सहायक हो सकती है।
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दीये के लिए सही धातु का चुनाव करना बहुत महत्वपूर्ण है। शास्त्रों के अनुसार, पूजा के लिए तांबे के दीये का उपयोग वर्जित माना जाता है क्योंकि घी और तांबे का मेल रासायनिक और आध्यात्मिक दृष्टि से सही नहीं होता। इसकी जगह पीतल धातु के दीये का उपयोग करना सबसे उत्तम और शुभ माना गया है।

आप मिट्टी के दीये का उपयोग करते हैं, तो ध्यान रखें कि एक बार जलने के बाद मिट्टी का दीया अशुद्ध हो जाता है। इसलिए हर दिन नया दीया जलाना चाहिए और पुराने दीये को किसी नदी या पवित्र जल में प्रवाहित कर देना चाहिए।
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