Amavasya Vrat Niyam

Margashirsha Amavasya 2025: मार्गशीर्ष अमावस्या के व्रत नियम और पूजा की सरल विधि जानें

मार्गशीर्ष अमावस्‍या के दिन अगर आप भी व्रत और पूजा करती हैं, तो इस लेख में हमने विस्‍तार से नियमों के साथ इनका उल्‍लेख किया है। 
Editorial
Updated:- 2025-11-18, 20:05 IST

हिंदू धर्म में अमावस्‍याओं को बहुत अधिक महत्‍व दिया गया है। खासतौर पर मार्गशीर्ष माह में आने वाली अमावस्‍या विशेष होती है। इसे अगहन अमावस्‍या भी कहा जाता है। इस अमावस्‍या पर व्रत और पूजा के कुछ विशेष नियम भी हैं, जिनके बारे में हमने मध्‍य प्रदेश, उज्‍जैन निवासी ज्‍योतिषाचार्य एवं पंडित मनीष शर्मा से बात की है। वह कहते हैं, " अमावस्‍या पर पितरों को श्रृद्धांजली देने का विधान है। मार्गशीर्ष माह की अमावस्‍या पर भी पितरों को तर्पण दिया जाता है। मान्‍यता है कि इस दिन पितरों के लिए व्रत रखने और उनकी पूजा करने का भी महत्‍व है। ऐसा करने से उनका आशीर्वाद मिलता है और पितृ दोष का प्रभाव कम होता है। इस दिन देवी लक्ष्‍मी की भी पूजा की जाती है और बहुत सारे घरों में सत्‍यनारायण स्‍वमी का पाठ होता है।"

मार्गशीर्ष अमावस्‍या व्रत नियम

इस दिन आप पितरों, सत्‍यनारयण स्‍वामी और देवी लक्ष्‍मी जी के लिए व्रत रख सकती हैं। पंडित जी कहते हैं, "सुबह उठकर ही संकल्‍प ले लें कि व्रत किसका रखना है। इसके बाद आगे के नियमों का पालन करें।"

  • सुबह जल्‍दी उठें और किसी भी पवित्र नदी में स्‍नान करें। यदि नदी नहीं है, तो घर में पानी में काले तिल और गंगा जल मिलाकर स्‍नान करें।
  • इसके बाद सूर्य देव को अर्घ्‍य दें। आज के दिन बहते जल में काले तिलों को जरूर प्रवाहित करें। यह काम आप किसी नहर या फिर तलाब पर कर सकती हैं।
  • इसके बाद पूरे दिन फलाहार व्रत रखें। शाम को तिल के लड्डू खाकर व्रत का पारण करें। आज के दिन आपको केले का सेवन करने से बचना चाहिए।

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मार्गशीर्ष अमावस्‍या पूजा विधि

मार्गशीर्ष अमावस्‍या पर पितरों की पूजा करने के अलावा आप सत्‍यनारायण स्‍वामी का पाठ और देवी लक्ष्‍मी की पूजा भी कर सकती हैं। यदि आप पितरों की पूजा कर रही हैं, तो नीचे बताई गई विधि का अनुशरण करें-

  • सबसे पहले सुबह नदी में स्‍नान करें और पितरों को दक्षिण दिशा में तर्पण दें। ऐसा करने से आपको तन और मन दोनों पवित्र होगा और खुद को अपने पितरों से जोड़ पाएंगे।
  • अब दक्षिण दिशा में ही अपने पितृ की तस्‍वीर रखें और फूल माला के साथ-साथ घी का दीपक जलाएं।
  • अब एक हाथ में कुशा लें और एक हाथ में काले तिल और पुष्‍प। अपने पितरों को याद करें और ॐ पितृभ्यः स्वधा मंत्र का जाप करते हुए पितरों जल अर्पित करें।
  • अपने पितरों से क्षमा मांगे और उन्‍हें वचन दें कि आप उनके कुल को आगे बढ़ाएंगे और कुल का नाम रौशन करेंगे।

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Pitra-Puja

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