पंचतत्व में विलीन हुईं महाराष्ट्र की 'माई' पद्मश्री सिंधुताई सपकाल

लंबे समय से बीमार चल रहीं 'माई' सिंधुताई सपकाल का निधन हो गया। लोग उन्हें माई कहकर बुलाते थे और उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका था।

sindhutai sapkal maharashtra mai dies
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सिंधुताई सपकाल को महाराष्ट्र की 'मदर टेरेसा' कहते थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन सामाजिक कार्य किया और अनाथ बच्चों को पालने और उन्हें अपना बनाने में जिंदगी को न्यौछावर कर दिया। पद्मश्री सम्मानित सिंधुताई सपकाल का मंगलवार को निधन हो गया। रिपोर्ट्स की मानें तो वह पिछले डेढ़ महीने से अस्पताल में भर्ती थीं और दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनका निधन हुआ।

उन्होंने लगभग 1400 अनाथ बच्चों को गोद लिया था। अपने निस्वार्थ काम के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका था। उनके निधन की खबर से सभी दुखी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई लोगों ने उन्हें अपनी श्रद्धांजलि भी अर्पित की।

पुणे में पंचतत्व में विलीन हुईं सिंधुताई सपकाल

sindhutai funeral in pune

आज राजकीय सम्मान के साथ पुणे में उनका अंतिम संस्कार हुआ। इस मौके पर अपनी माई को आखिरी बार देखने वालों की भीड़ जमा हुई। सिंधुताई की बेटी ममता सपकाल ने उनका अंतिम संस्कार की रस्म निभाई, जिसमें उन्हें तिरंगा सौंपा गया।

कौन थीं सिंधुताई सपकाल?

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सिंधुताई का महाराष्ट्र के वर्धा से ताल्लुक था। उनका बचपन वर्धा में ही बीता। सिंधुताई ने सिर्फ चौथी क्लास तक पढ़ाई की थी। बचपन में ही उनकी शादी उनसे उम्र में दोगुने आदमी से करवा दी गई थी। सिंधुताई ने आगे पढ़ने की इच्छा जाहिर की, लेकिन उनके ससुराल वाले इसके लिए बिल्कुल राजी नहीं हुए।

ससुराल और मायके पक्ष ने धुधकारा

सिंधुताई ने बचपन से ही कई कष्टों का सामना किया था। उनका साथ जब ससुराल पक्ष ने छोड़ा तो मायके वालों ने भी छोड़ दिया। जब अपने खिलाफ हो रहे अन्याय के खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई तो गर्भवती होते हुए भी उन्हें ससुराल से निकाल दिया गया। जब वह अपने मायके वालों के पास पहुंची, तो उन्हें वहां भी जगह नहीं मिली और उनके परिवार वालों ने उन्हें स्वीकार करने से मना कर दिया।

संघर्षों के बीच अकेले दिया बच्चे को जन्म

दर-दर की ठोकर खाने के बाद और तमाम संघर्षों को झेलकर उन्होंने अकेले ही एक बेटी को जन्म दिया। जब उनके पास कोई आसरा नहीं बचा, तो उन्होंने ट्रेनों और सड़कों पर भीख मांगना शुरू कर दिया। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने अपनी और अपनी बेटी की सुरक्षा के डर से, कब्रिस्तानों और गौशालाओं में अपनी रातें बिताईं।

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अनाथ बच्चों की ऐसे बनी सहारा

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इसी दौरान सिंधुताई ने अनाथ बच्चों के साथ समय बिताना शुरू किया। उसने लगभग एक दर्जन अनाथों को गोद लिया और उन्हें खिलाने की ज़िम्मेदारी ली। आखिरकार, सालों बाद, 1970 में, उनके शुभचिंतकों ने उनका पहला आश्रम चिखलदरा, अमरावती में स्थापित करने में मदद की। उनका पहला एनजीओ, सावित्रीबाई फुले गर्ल्स हॉस्टल, भी चिखलदरा में बनाया और पंजीकृत किया गया था। सिंधुताई ने अपना पूरा जीवन अनाथों को समर्पित कर दिया। इसी खातिर लोग प्यार से उन्हें 'माई' कहते थे।

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विशेष पुरस्कारों से हुई सम्मानित

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समाज में उनके अनुकरणीय योगदान के लिए, सिंधुताई को विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, जिसमें नारी शक्ति पुरस्कार, महिलाओं को समर्पित भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार शामिल है, जो उन्हें 2017 में राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा प्रदान किया गया था। इतना ही नहीं साल 2010 में उनके ऊपर उनके जीवन पर आधारित एक मराठी फिल्म 'मी सिंधुताई सपकाल' रिलीज हो चुकी है।

देवेंद्र फडणवीस, राहुल गांधी, राष्ट्रपति कोविंद समेत कई लोगों ने दी श्रद्धांजलि

उनके निधन से देश में खासकर की महाराष्ट्र में शोक की लहर दौड़ गई है। भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने उनके निधन पर शोक जताते हुए लिखा था कि महाराष्ट्र ने एक मां खो दी है। वहीं राहुल गांधी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

हरजिंदगी की टीम की ओर से उन्हें श्रद्धांजलि। हमें उम्मीद है सिंधुताई के बारे में जानकर आपको भी प्रेरणा मिली होगी। ऐसे ही अन्य आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।

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