'तूतक तूतक तूतिया दही जमालो' गाने को शायद आपने भी बचपन से सुना होगा। दलेर मेहंदी जैसे पंजाबी सिंगर से लेकर कई बॉलीवुड सिंगर्स ने भी इस गाने को गाया था। यही नहीं एक फिल्म भी इसके नाम पर बनी है 'तूतक तूतक तूतिया'। ऐसे में मेरी तरह शायद आपको भी कन्फ्यूजन हो कि शायद यह गाना पंजाबी है, लेकिन ऐसा नहीं है। इस गाने के इतिहास के पीछे अंग्रेजों के जमाने की रेलगाड़ी शामिल है। इस गाने की कहानी उतनी ही दिलचस्प है जितने इसके लिरिक्स।
सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर और गाने और फिल्मों की हिस्ट्री बताने वाले एंकर लक्ष्य माहेश्वरी ने इस गाने की कहानी बताई है। इस गाने को लेकर उन्होंने बताया कि असल में यह एक सिंधी फोक सॉन्ग है। यह गाना कैसे भारतीय कल्चर का हिस्सा बन गया और क्यों इसे खुशियों में गाया जाता है, उसके बारे में आज आपको बताते हैं।
जी नहीं, शायद आपको जानकर निराशा होगी कि इस गाने में दही जमालो शब्द असल में है ही नहीं। यह भाषा के बिगड़ने के कारण ऐसा बना या फिर अपने आप लोगों ने इसे मजे में गाना शुरू कर दिया यह तो पता नहीं, लेकिन असली गाने में दही का इस्तेमाल ही नहीं होता था। इस गाने की असली कहानी के लिए अंग्रेजों के जमाने की एक चाल भी शामिल है। इस गाने के असली बोल 'हो जमालो' थे ना की 'दही जमालो'। पंजाबी वर्जन में भी 'है जमालो' गाया जाता है जिसकी साउंड कुछ-कुछ दही जमालो जैसी लगती है। इसलिए ही शायद बचपन से ही बच्चे है जमालो की जगह दही जमालो गाया करते थे।
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अब जमालो असल में कौन थे उसके बारे में आपको बता देते हैं।
यह किस्सा 1887 का है जब सिंघ (मौजूदा समय में पाकिस्तान, पहले हिंदुस्तान) के सखर (Sukkur) इलाके में अंग्रेजों ने एक ब्रिज बनाया था। यह रेलवे ब्रिज था जिसे नई तकनीक का इस्तेमाल करके बनाया गया था।
जिस नदी के ऊपर यह बना था वह बहुत गहरी थी और खतरनाक भी। अब ब्रिज तो बन गया, लेकिन भरी हुई रेलगाड़ी के साथ इस ब्रिज की टेस्टिंग कैसे की जाती? पुल इतना खतरनाक था कि ट्रेन जाते-जाते वह हिलना भी शुरू कर सकता था या फिर वह टूट भी सकता था।
ऐसे में कोई भी ड्राइवर उस पुल से गाड़ी ले जाने को तैयार ही नहीं हुआ। तब अंग्रेजी सरकार को कोई ऐसा इंसान चाहिए था जो उनका काम करने के लिए मौत से खेल जाए।
उस समय वहां की जेल में एक कैदी जमालो शीदी था जिसे मौत की सजा मिली हुई थी। अंग्रेजी सरकार के अफसरों ने उससे कहा कि अगर वह इस पुल से गाड़ी ले जाए और इसकी सफल टेस्टिंग कर ले, तो उसकी मौत की सजा माफ कर दी जाएगी।
शीदी को ट्रेन चलाने की ट्रेनिंग दी गई और दो महीने बाद जब वह पुल पर से ट्रेन चलाकर निकल गया, तो सिंध के लोगों और उसके परिवार वालों ने 'हो जमालो' गाना गाया।
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अब जब इतना लोकप्रिय गाना है, तो भला एक ही कहानी इससे कैसे जुड़ी हो सकती है। सिंधी लोक कथाओं में जामालो खोसा बलोच का जिक्र होता है जो कोई कैदी नहीं, बल्कि एक सिपाही थे जिन्होंने कई लड़ाइयां लड़ीं।
यह कहानी बताती है कि सिंध में एक समय में बहुत से विदेशियों ने आक्रमण कर दिया था और वहां रहने वाले लोग इससे बहुत परेशान थे। वहीं रहने वाला एक व्यक्ति जमालो इन विदेशियों के खिलाफ लड़ा और अपनी छोटी सी टुकड़ी के साथ असीम बल और बुद्धि का परिचय दिया। उस वक्त जब वह विजय होकर वापस लौटा, तो उस इलाके की महिलाओं ने 'हो जमालो, ख्याती आयो खैर सान' (ओ जमालो, तुम विजय होकर वापस आए हो) गाना शुरू कर दिया।
बस इसके बाद से यह गाना फेमस हो गया और धीरे-धीरे सिंधी और पंजाबी कल्चर का हिस्सा बन गया।
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अगर हम 'हो जमालो' गाने की रिकॉर्डिंग की बात करें, तो 1947 में इसे आबिदा परवीन ने सिंधी भाषा में और शाजिया कुश्क ने उर्दू भाषा में रिकॉर्ड किया था।
उसके बाद से लेकर आज तक इस गाने के कई वर्जन बने हैं और यह सिंधी से हटकर पंजाबी गाना बन गया। यही नहीं कोक स्टूडियो पाकिस्तान के सीजन 11 में अली सेठी और हुमैरा अरशद ने भी इस गाने का पंजाबी वर्जन गाया।
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Image Credit: Shutterstock and T Series
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