अगर हिंदुस्तान के पौराणिक इतिहास की बात करें तो बहुत सारे युद्धों का जिक्र किया जाता है। पौराणिक कथाओं में संग्राम की एक गाथा है जिसे ही सबसे भीषण माना जाता है और ये है महाभारत का युद्ध। पांडवों और कौरवों के बीच लड़ा गया ये युद्ध बेहद खास था। इस युद्ध में द्रौपदी के मान के लिए लड़ा गया था। महाभारत के अंत में पांडवों की जीत हुई थी और युधिष्ठिर को राजा बना दिया गया था ये तो सच है, लेकिन कई लोग मानते हैं कि यहां कहानी खत्म। पर ऐसा नहीं था, महाभारत का असली अंत हुआ था पांडवों और द्रौपदी की मौत के बाद।
कुरुक्षेत्र की लड़ाई में कौरव और पांडव दोनों ही तरफ से बहुत ज्यादा तबाही मचाई गई थी और एक पक्ष की जीत का मतलब था लाखों लोगों की मौत। महाभारत की किताबों की बात करें तो इसे पूरी 18 किताबों में विस्तार से लिखा गया है और युद्ध तो 16वीं किताब में ही खत्म हो जाता है। 17वीं किताब जिसका नाम है 'महाप्रस्थानिक पर्व' पांडवों की स्वर्ग यात्रा का जिक्र करती है। इसमें पांडव और द्रौपदी प्रस्थान करते हैं और इस किताब में सिर्फ 3 ही चैप्टर हैं।
ये पूरी महाभारत गाथा में सबसे छोटी किताब है। इसी में पांडवों और द्रौपदी की मौत से जुड़ी जानकारियां लिखी हुई हैं।
द्रौपदी का जीवन-
द्रौपदी पांच पांडवों की पत्नी थी और उसके पांच पुत्र थे जिन्हें उपपांडव कहा जाता था। महाभारत के अनुसार द्रौपदी का जन्म राजा द्रुपद के अहंकार के कारण हुआ था। राजा द्रुपद को अर्जुन से बदला लेना था। दरअसल, पांचाल नरेश द्रुपद को द्रोण के शिष्य अर्जुन ने हरा दिया था और इस कारणवश उन्हें अपना आधा राज्य देना पड़ा था। द्रोण से बदला लेने के लिए द्रुपद ने एक यज्ञ किया जिसे पुत्र कामाक्षी यज्ञ कहा जाता था जिससे एक पुत्र की प्राप्ति होनी थी।
इससे द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न का जन्म हुआ। इसके बाद द्रुपद को आखिरी आहुति देनी थी, लेकिन वो बिना उसके ही उठकर जाने लगे। ऐसे में साधुओं और ऋषियों के कहने पर उन्होंने आहूती तो दी, लेकिन अहंकार वश देवताओं से एक ऐसी पुत्री की मांग की जो रूप, रंग और गुण में संपूर्ण है, लेकिन उसे जिंदगी भर का दुख मिले। इसके बाद जन्म हुआ था द्रौपदी का।
द्रौपदी द्रुपद की बेटी और अर्जुन और पांडवों की पत्नी होने के बाद भी अपने जीवन के हर पक्ष में दुख भोगती रही थीं।
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द्रौपदी किसका अवतार थीं?
द्रौपदी पूर्वजन्म में मुद्गल ऋषि की पत्नी थी उनका नाम मुद्गलनी था। उनके पति की मृत्यु अल्पायु में हो गई थी और इसके बाद उन्होंने शिव की तपस्या शुरू की। शिव जी ने उनसे प्रसन्न होकर एक वर्दान मांगने को कहा तो उन्होंने पांच बार शिव से कहा कि उन्हें सर्वगुण संपन्न पति चाहिए। इसके बाद अगले जन्म में उन्हें पांच पांडव मिले जो सर्वगुण संपन्न थे।
कैसे हुई थी द्रौपदी की मौत?
द्रौपदी की मौत कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद हुई थी। युद्ध में द्रौपदी के सभी पुत्र मारे गए थे और जीवन के अंतिम काल तक द्रौपदी ने पांडवों का साथ नहीं छोड़ा और फिर शुरू की अंतिम यात्रा। युधिष्ठिर ने अपना सिंहासन छोड़कर राजा परीक्षित को हस्तिनापुर का राजा बना दिया था। इसके बाद पांडव, उनके साथ रहने वाला कुत्ता और द्रौपदी सभी ने एक साथ यात्रा शुरू की। उन्हें लेने इंद्र का रथ आया था, लेकिन उसमें कुत्ता नहीं जा सकता था और इसलिए फिर सभी ने पैदल भारत यात्रा शुरू की जिसमें उन्हें हिमालय के जरिए स्वर्ग की ओर जाना था।
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शुरुआत दक्षिण के समुद्र से हुई, इसके बाद उत्तर की ओर बढ़ते-बढ़ते ऋषिकेश पहुंचे और फिर सभी हिमालय की ओर चले। हिमालय की यात्रा में सबसे पहले द्रौपदी गिर गईं। द्रौपदी गिरकर मर गईं और सभी पांडव द्रौपदी के जाने से विचलित हो गए। भीम ने युधिष्ठिर से इसका कारण पूछा कि आखिर द्रौपदी ने इतनी जल्दी क्यों शरीर त्याग दिया और स्वर्ग की ओर उनकी यात्रा को क्यों नहीं पूरा किया। तब युधिष्ठिर ने बताया कि द्रौपदी भले ही हम पांचों की पत्नी थीं, लेकिन उन्होंने अपना धर्म पूरा नहीं किया। उनके मन में पार्थ यानी अर्जुन के लिए ज्यादा प्रेम था।
यही कारण है कि द्रौपदी को कुछ समय के लिए नर्क में जाना पड़ा और वो अपनी स्वर्ग की यात्रा को पूरा नहीं कर पाईं।
द्रौपदी के बाद एक-एक करके सभी पांडव अपना-अपना जीवन त्याग चुके थे और अंत में स्वर्ग के दरवाजे पर सिर्फ युधिष्ठिर ही पहुंच पाए थे, लेकिन वो भी अंदर नहीं गए। ये कहानी फिर कभी। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
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