हमें हमेशा से एक ही चीज बताई गई है कि मां को तो सुपरमॉम ही होना पड़ेगा। हम खुद भी यही सोचने लगे हैं कि मां का मतलब तो बस यही है कि उसे सुपर से भी ऊपर होना होगा। पर इस बीच मां खुद के लिए कभी समय नहीं निकाल पाती है। हमारी इस सोच के पीछे कहीं सिनेमा, टीवी, न्यूजपेपर या समाज में फैली हुई धारणा तो कारण नहीं? इसी सोच पर है हमारी कैम्पेन 'Maa Beyond Stereotypes', यहां हम उन्हीं स्टीरियोटाइप्स की बात करेंगे जो सालों से हमारे दिमाग में बैठाए गए हैं।
हम इस कड़ी में अलग-अलग सेलेब्स से बात करेंगे जिन्होंने किसी ना किसी तौर पर या तो ऐसी स्टीरियोटाइप मां का किरदार निभाया है, या फिर जो इंडस्ट्री का हिस्सा हैं और इन स्टीरियोटाइप्स को करीब से देख रही हैं। इसी कड़ी में हमने बात की राम की सीता बन चुकीं देबिना बनर्जी से। देबिना आइरिश ट्विन गर्ल्स की मां हैं, आइरिश ट्विन्स वो होते हैं जो एक ही साल में तो पैदा होते हैं, लेकिन उनके जन्म में कम से कम 6 महीने का अंतर होता है।
दो बच्चों को एक साथ संभालने का देबिना का एक्सपीरियंस कैसा रहा और वह क्या सोचती हैं समाज के स्टीरियोटाइप्स के बारे में आज जानते हैं-
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सवाल: आपकी जर्नी मदरहुड के बाद कैसे बदल गई है?
जवाब: जब तक आप एक मां नहीं बन जाती हैं तब तक आप इस फीलिंग को नहीं समझ सकती हैं। पहले मैं एक डॉग मॉम थी तब भी मैं इसे समझने की कोशिश कर रही थी। जब मेरे बच्चे हुए तब मुझे समझ आया कि प्यार की सीमा नहीं है। जब आपका पहला बच्चा होता है, तो आपको लगता है कि एक दिल है और एक बच्चा है उसी से सबसे ज्यादा प्यार होगा। जब दूसरा बेबी होता है तब यह समझ आता है कि आपका दिल तो बहुत अलग जा सकता है।
सवाल: क्या आपके भी मन में कुछ स्टीरियोटाइप्स थे मदरहुड के पहले जो आपको बाद में लगा कि इसकी तो जरूरत नहीं थी?
जवाब: मैंने कभी सोचा नहीं था इसके बारे में, मेरे सामने अब आ रहा था कि 'ओह माय गॉड तुम ऐसा कैसे कर लेती हो,' तब मुझे लगा कि स्टीरियोटाइप्स भी होते हैं। सबसे पहले मुझे समझ आया स्टीरियोटाइप्स के बारे में जब मैं काम कर रही थी। मेरी मां हमेशा घर पर रहती थीं और मुझे कहीं ना कहीं समाज ने सिखा दिया था कि मां को तो घर पर ही रहना चाहिए। पर जब यही मेरे साथ आया तो मुझे लगा कि अगर मैं काम नहीं करूंगी, तो फील गुड नहीं करूंगी। एक मां को अपने लिए अच्छा फील करना भी जरूरी है ना।
जब मेरे कुछ वीडियो आए तो लोगों ने कॉमेंट किया कि ये लोग इतनी जल्दी फिट कैसे हो जाते हैं, हमारे लिए तो तीन दिन उठना भी मुश्किल होता है। जब मैंने यह पढ़ा, तो मुझे लगा कि मां को तो समाज के हिसाब से एक निश्चित तरीके का ही होना पड़ेगा।
सवाल: आप आइरिश ट्विन्स की मां हैं, उनकी देखभाल करना कितना मुश्किल होता है जब दो बच्चे एक साथ मां के पास आना चाहते हों?
जवाब: ये बहुत मुश्किल है, मैं हर रोज सीख रही हूं और हर दिन नया एक्सपेरिमेंट होता है। जैसे कई बार मैं दोनों को सुलाने की कोशिश करती हूं ताकि मैं अपने लिए भी समय निकाल सकूं। पहले ऐसा होता था कि एक सोती थी और दूसरी जाग जाती थी तब बच्चों को गोद में ले लेकर मुझे इतनी तकलीफ हो रही थी। एक बच्चे के साथ आप फिर भी रिलैक्स कर सकते हैं, लेकिन दो के साथ ऐसा मुमकिन नहीं। यहां भी लोगों ने बोला कि आपके पास तो मां और सास दोनों हैं, दोनों हेल्प कर रही हैं, लेकिन क्या मुझे गिल्टी फील करना चाहिए कि मेरे पास कोई सपोर्ट करने के लिए है? समाज इसमें भी यही कहता है कि आपको तो मदद मिल रही है, हम सब अकेले करते हैं।
कई बार ऐसा होता है कि बच्चों को मां ही चाहिए होती है और उस वक्त मां उपलब्ध ना हो तो क्या होगा? हो सकता है कि उस वक्त मां अपना कोई जरूरी काम कर रही हो, तो क्या वह एक अच्छी मां नहीं होगी?
सवाल: काम और बच्चे बैलेंस करने का तरीका क्या है?
जवाब: मैं यही कहूंगी कि अगर मैं खुद से प्यार करती हूं, तो बच्चों से कम करूंगी यह जरूरी नहीं। आई लव माय सेल्फ मतलब आई लव माय आइडेंटिटी। मेरी अपनी ओपीनियन है और मैं उसे छोड़कर सिर्फ एक ही चीज के लिए बैठ जाऊं, तो क्या यह गलत नहीं है? बचपन में हमसे पूछा जाता था आप मां से ज्यादा प्यार करते हैं या पापा से तो उन्हें हम कंफ्यूज कर देते थे, ऐसा ही अभी भी है। मैं खुद को ज्यादा प्यार करती हूं या बच्चों को ये क्या सवाल है? मुझे अपने बच्चों से बहुत प्यार है और मुझे खुद से भी है।
बच्चे भी मुझे देखकर ही सीखेंगे कि उन्हें खुद से प्यार कैसे करना है।
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सवाल: टीवी, वीडियो, सिनेमा में मां एक निश्चित तरीके से ही काम करेगी, वो बहुत अच्छा खाना बनाएगी, वो बहुत ही ज्यादा त्याग करेगी, तो क्या आपको लगता है कि इस छवि का मां की सामाजिक छवि पर भी असर डालती है?
जवाब: टीवी, वीडियो या सिनेमा एडल्ट्स पर ज्यादा असर डालते हैं। टीवी वही दिखाने की कोशिश करता है जो समाज को नॉर्मल लगता है। तभी अगर कुछ अलग तरह की कहानी दिखाने की कोशिश की जाती है, तो उसे हम पाथ ब्रेकिंग सिनेमा कहते हैं। समाज और टीवी एक दूसरे के लिए आईना ही हैं। जो समाज में चल रहा है, वो टीवी पर दिख रहा है। फिल्म या टीवी सीरियल्स को बनाने वाले भी कुछ बहुत अलग करने से डरते हैं क्योंकि सोसाइटी एक्सेप्ट नहीं करती और फिर फिल्म और टीवी सीरियल फ्लॉप हो जाते हैं। समाज का माइंडसेट धीरे-धीरे बदल रहा है पर इसे पूरी तरह से बदलने में एक जनरेशन लग सकती है।
सवाल: कोई ऐसा कोई पर्सनल एक्सपीरियंस रहा है जो समाज के हिसाब से परफेक्ट ना हो, लेकिन आपके लिए बहुत जरूरी है, जहां आप ट्रेडिशनल मदरहुड रोल में फिट नहीं हुई हों?
जवाब: मुझे तो लगता है कि सब कुछ ही ऐसा है। मैं ट्रेडिशनल मदरहुड रोल में फिट ही नहीं बैठती हूं। मुझे लगता है कि मैं जो भी कर रही हूं वो शायद किसी को मोटिवेट करती हैं। मैं जब मेकअप भी करती हूं तो लोगों को लगता है कि यह सही नहीं है और मैं निठल्ली मां हूं जो बच्चों को देखती नहीं है और मेकअप करते बैठी रहती है। हम दिन भर के सारे काम करते हैं, तो सिर्फ मदरहुड को लेकर ऐसा क्यों। जहां भी मदरहुड शुरू होता है लोग इतना सोचने लगते हैं कि खुद को भूल जाते हैं।
सवाल: ट्रोलिंग से डील करने का आपका क्या तरीका है? आप एक सक्सेसफुल मॉम इंफ्लूएंसर हैं, तो ट्रोल्स के कमेंट पर कैसे रिएक्ट करती हैं?
जवाब: अगर मैं यह कहूं कि मुझे फर्क नहीं पड़ता, तो यह गलत होगा। सोशल मीडिया पर कुछ भी कहा जाता है। लोग नुक्स निकालते हैं, कई बार मैं सोच लेती हूं कि अगर नुक्स होंगे, तो ही लोग निकालेंगे। फिर कई बार आपको इग्नोर भी करना होता है। आप यूंही नहीं हर चीज पर ध्यान दे सकते हैं। लोग मेरे वजन को लेकर कह रहे थे कि मैंने अभी तक कम नहीं किया, मैंने इसे पॉजिटिव लिया और देखिए अब मैं धीरे-धीरे फिट हो गई।
लोग मुझे बोलते हैं कि एक को हमेशा गोदी में रखती हैं और एक को नीचे छोड़ दिया, लेकिन एक मां को सही से पता है ना कि आखिर उसके बच्चे के लिए क्या सही है।
सवाल: मदरहुड के बारे में इतनी बातें हो गईं, फादरहुड के बारे में आपका क्या कहना है?
जवाब: मां और पिता दोनों एक बच्चे की जिंदगी में दो स्तंभ हैं। पर मां खुद को ओवरवर्क करके पिता को पीछे नहीं कर सकती हैं। आप पिता को भी मौका दें बच्चों का काम करने का, आप पिता को भी मौका दें बच्चों के डायपर चेंज करने का। बच्चों के साथ टाइम स्पेंड करने का समय पिता को भी दें। बच्चों की जिम्मेदारी शेयर करनी चाहिए। कई बार मां ही यह करती है कि वो खुद एक्स्ट्रा कर देती है और पापा को स्पेस नहीं देती। आप उनको करने का मौका दो तो वो कर लेंगे। वो नहीं कर पाएंगे यह सोचना ही क्यों है।
देबिना का पेरेंटिंग स्टाइल वाकई कमाल का है जो हमें इंस्पायर कर सकता है।
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