विंध्य पर्वत की शिखरों पर विराजमान आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी की महिमा असीम है। यहां तक की देवता भी उनकी स्तुति करते नहीं थकते हैं। पवित्र गंगा नदी विंध्य पर्वत को स्पर्श कर इस धाम को और पावन बनाती है। यहीं पर माता विंध्यवासिनी अपने पूर्ण रूप में विराजमान हैं, जबकि देश के अन्य शक्तिपीठों में माता सती के कुछ अंश ही विद्यमान हैं। इसलिए विंध्याचल को सिद्धपीठ कहा जाता है। माता यहां महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती के रूप में तीन कोणों पर विराजमान हैं, और भगवान शिव उनके केंद्र में विराजमान हैं। मान्यता है कि यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। आइए इस लेख में विस्तार से ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से जानते हैं।
मां विंध्यवासिनी करती हैं सभी भक्तों की मुराद पूरी
पुराणों के अनुसार, माता के त्रिकोण का दर्शन और परिक्रमा करने का विशेष महत्व है। यह सिद्धपीठ प्राचीन काल से ऋषियों और मुनियों के लिए सिद्धि प्राप्त करने का तपस्थल रहा है। देवताओं और असुरों के युद्ध के दौरान, ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने भी माता के दरबार में तपस्या की और उनसे वरदान प्राप्त किया, जिसके फलस्वरूप उन्होंने विजय प्राप्त की। मां विंध्यवासिनी धाम में हर दिन पवित्र होता है, लेकिन नवरात्रि के दौरान इसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है।
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नवरात्रि में मां की पूजा नवदुर्गा के रूप में की जाती है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि के पावन पर्व पर मां धरती अपने भक्तों के निकट आती हैं और उन्हें सुख-शांति का आशीर्वाद देती हैं। काशी और प्रयाग के मध्य स्थित विंध्याचल धाम सदियों से देवी भक्तों के लिए आस्था का केंद्र रहा है। मां विंध्यवासिनी के धाम में आने वाले भक्तों की आस्था कभी व्यर्थ नहीं जाती। यहां आकर जो भी भक्त अपनी मनोकामना लेकर मां के चरणों में प्रणाम करते हैं, मां उनकी हर मुराद पूरी करती हैं।
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मंदिर में दिन-रात चलने वाली भक्ति की धारा अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष, इन चारों पुरुषार्थों को प्राप्त कराती है। मां की कृपा से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। बिना किसी विशेष मंत्र-तंत्र के, मां सिर्फ भक्तों की भावनाओं को समझकर उनकी मदद करती हैं। यही बात मां के धाम को खास बनाती है। यहां अगर आप सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं, तो मां विंध्यवासिनी मंदिर में पूजा-पाठ करने से उत्तम फलों की प्राप्ति हो सकती है।
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Image Credit- HerZindagi
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