रामायण को हिंदू धर्म का सबसे पवित्र ग्रंथ माना जाता है। इसके सभी पात्रों का अलग महत्व है। प्रभु श्री राम को हम भगवान के रूप में पूजते हैं और माता सीता को भी उनके साथ हमेशा पूजा जाता है। माता सीता प्रभु श्री राम की अर्धांगिनी थीं और महाराज जनक की पुत्री थीं।
उन्हें लक्ष्मी जी का अवतार भी माना जाता है और ऐसा कहा जाता है कि जब विष्णु जी के अवतार के रूप में भगवान श्री राम ने धरती पर अवतार लिया तब माता सीता ने लक्ष्मी के अवतार के रूप में जन्म लिया।
उनकी महिमा ऐसी है कि आज भी प्रभु श्री राम से पहले देवी सीता का नाम लिया जाता है। यदि हम माता सीता के जन्म की बात करें तो आज भी उनके जन्म को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। सीता जी का जन्म एक रहस्य ही है। उनके जन्म से जुड़ी बातों का पता लगाने के लिए हमने ज्योतिर्विद पं रमेश भोजराज द्विवेदी जी से बात की। आइए जानें माता सीता के जन्म से जुड़े कुछ रहस्यों के बारे में।
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता सीता भगवान जनक को जमीन के नीचे मिली थीं। महर्षि वाल्मीकि जी की रामायण के अनुसार राजा जनक के समय में एक बार मिथिला राज्य में अकाल पड़ गया। ऋषियों ने राजा जनक से यज्ञ का आयोजन करने के लिए कहा जिससे वर्षा ही और उनका कष्ट दूर हो।
यज्ञ की समाप्ति के अवसर पर राजा जनक अपने हाथों से हल लेकर खेत जोत रहे थे तभी उनके हल का नुकीला भाग जिसे सीत कहते हैं किसी कठोर चीज से टकराया और हल वहीं अटक गया।
जब उस स्थान खुदाई हुई तब एक कलश मिला जिसमें एक सुंदर कन्या थी। राजा जनक ने उस कन्या को कलश से बाहर निकाला और उसे अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया। जनक की पत्नी उस समय निःसंतान थीं इसलिए बेटी को पाकर वो अत्यंत प्रसन्न हुईं।
चूंकि हल के उस हिस्से से टकराकर माता सीता मिलीं थीं जिसे सीत कहा जाता है, इसलिए ही उनका नाम सीता रखा गया। वहीं जनक पुत्री के रूप में उन्हें जानकी कहा गया।
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यदि माता सीता के जन्म की बात करें तो एक और प्रचलित कथा है जिस पर शायद ही यकीन हो। दरअसल रामायण के अनुसार रावण ने कहा था कि यदि उसके हृदय में अपनी पुत्री से विवाह की इच्छा उत्पन्न हो तो उसकी पुत्री ही उसकी मृत्यु का कारण बने।
इसी बात को सही साबित करने के लिए एक बार गृत्समद नाम के ऋषि देवी लक्ष्मी को पुत्री रूप में पाने के लिए हर दिन मंत्रोच्चार के साथ कुश के अग्र भाग से एक कलश में दूध की बूंदे डालते थे।
एक दिन जब ऋषि आश्रम में मौजूद नहीं थे तब रावण वहां आया और वहां मौजूद ऋषियों को मारकर उनका रक्त कलश में भर लिया। इस कलश को रावण ने अपने महल में छिपा दिया।
उस समय रावण की पत्नी मंदोदरीउस कलश को लेकर बहुत उत्सुक थी। एक दिन जब रावण महल में नहीं था तब मंदोदरी ने उस कलश को खोलकर देखा। मंदोदरी कलश को उठाकर उसमें रखा हुआ रक्त पी गईं जिससे वह गर्भवती हो गई।
मंदोदरी का यह भेद किसी को पता ना चले इसलिए वह लंका से बहुत दूर अपनी पुत्री को कलश में छुपाकर मिथिला भूमि में छोड़ आई। इस प्रकार सीता जी का जन्म हुआ और वो रावण की पुत्री होने के साथ उनकी मृत्यु का कारण भी बनीं।
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देवी सीता के जन्म की तीसरी कथा वेदवती नाम की एक ब्राह्मण कन्या से संबंधित है जिसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। इस कथा के के अनुसार एक समय वेदवती भगवान विष्णु को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थीं।
हिमालय पर भ्रमण करते हुए रावण की नजर वेदवती पर पड़ी और उसके मन में वेदवती से विवाह का विचार आया। वेदवती रावण से बचने के लिए उंचाई से कूद गईं और मृत्यु के समय वो रावण को श्राप दे गईं कि आगे के समय में वो पुनर्जन्म लेकर रावण की पुत्री बनेंगी और उसकी मृत्यु का कारण बनेंगी। माता सीता का जब जन्म हुआ तब अपनी मृत्यु के भय से रावण ने उसे धरती पर एक कलश में रखकर गाड़ दिया।
माता सीता का जन्म वास्तव में एक रहस्य ही है और उनके जन्म की सही कथा जो कुछ भी हो, लेकिन उन्हें श्री राम के साथ पूजा जाता है।
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