फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह संपन्न किया था और तभी से इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाने लगा। इस साल महाशिवरात्रि का महापर्व 26 फरवरी, दिन बुधवार को पड़ रहा है। जहां एक ओर इस दिन शिवलिंग पूजा एवं अभिषेक का विशेष महत्व माना गया है तो वहीं, दूसरी ओर इस दिन महाशिवरात्रि की व्रत कथा सुनना या पढ़ना भी बहुत शुभ माना जाता है। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं महाशिवरात्रि की व्रत कथा के बारे में।
महाशिवरात्रि व्रत कथा (Mahashivratri Vrat Katha 2025)
माता सती, जो प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं, भगवान शिव को बहुत पसंद करती थीं और उन्हें अपने जीवन साथी के रूप में पाना चाहती थीं। जब माता सती ने अपने पिता दक्ष से यह कहा कि वह भगवान शिव से विवाह करना चाहती हैं, तो दक्ष ने भगवान शिव का अपमान करते हुए उन्हें अपना दामाद बनाने से साफ मना कर दिया।
इसके बाद माता सती ने अपने पिता की बातों की परवाह किए बिना भगवान शिव से विवाह कर लिया। यह देखकर प्रजापति दक्ष बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने अपनी पुत्री सती को त्याग दिया। फिर एक दिन प्रजापति दक्ष ने एक बड़ा यज्ञ आयोजित किया, लेकिन उन्होंने उस यज्ञ में न तो भगवान शिव और न ही माता सती को आमंत्रित किया।
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माता सती ने भगवान शिव से जिद की और बिना उनकी अनुमति के यज्ञ में पहुंच गईं। वहां प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव के बारे में अपशब्द कहे और उनका अपमान किया। अपने पति के खिलाफ ऐसे शब्द सुनकर माता सती बहुत क्रोधित हुईं और उन्होंने अपने शरीर का त्याग कर दिया। इस दुखद घटना के बाद माता सती अगले जन्म में हिमालयराज की पुत्री के रूप में पार्वती के नाम से जन्मीं।
इस जन्म में माता पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने की इच्छा जताई, लेकिन भगवान शिव ने उन्हें मना कर दिया क्योंकि वह अभी भी मानवीय शरीर से बंधी हुई थीं। इसके बाद माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए घोर तपस्या की। उन्होंने 12,000 वर्षों तक अन्न और जल का त्याग करके कठिन तप किया। उनकी तपस्या से भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।
जिस दिन माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ, उस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव अपनी बारात लेकर माता पार्वती के घर पहुंचे और चंद्रभाल रूप में उनके साथ विवाह संपन्न किया। इस दिन की व्रत कथा सुनने से विवाह में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं और जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
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