इत्र के इतिहास को लेकर दो पंक्ति है कि-
'शब्दों से चित्र बनता हूं,
जज्बातों से मित्र बनता हूं
जिस की खुशबू कभी कम न हो,
तजुर्बो से ऐसी इत्र बनता हूं!
इत्र! जिसकी खुशबू के दीवाने कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि करोड़ों लोग हैं। आज भी कोई सामने से सुगंधित इत्र लगाकर गुज़रता है तो आसपास की जगहें भी महक उठती है।
लेकिन अगर आपसे यह सवाल किया जाए कि इत्र भारतीय समाज का हिस्सा कैसे बनी तो फिर आपका जवाब क्या होगा? अगर आपको पास इस सलवा का जवाब नहीं है तो इस लेख में हम आपको इत्र के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं। इस लेख में यह भी बताने जा रहे हैं कि यह भारत में कैसी पहुंची और मुग़ल सम्राट किस इत्र की खुशबू को सबसे अधिक पसंद करते थे। आइए जानते हैं।
इत्र की शुरुआत कहां से हुई थी?
इत्र की शुरुआत कहां से हुई थी यह बेहद ही दिलचस्प कहानी है। कहा जाता है कि हज़ार साल पहले से भी सुमेर निवासी अपने शरीर पर चमेलील, लिली, शराब आदि चीजों ओ रगड़ा करते थे ताकि शरीर से कोई गंध न आए।
धीरे-धीरे सुमेर निवासी फूलों और पत्तों को पीसकर शहरी में लगाने लगे और देखते ही देखते इसका चलन बढ़ाने लगा। कहा जाता है कि सुमेर कबीले का मालिक जहां-जहां जाते थें वो फूलों को पीसकर शरीर पा लगाते थे।
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ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में इत्र का जिक्र
माना जाता है कि भारत में इत्र बनाने की परंपरा आज से नहीं बल्कि कई वर्षों से चली आ रही है। कहा जाता है कि भारतीय ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में भी इत्र का नाम उल्लेखित हैं। प्राचीन समय में सौंदर्य के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता था। प्रचीन काल में इत्र को बनाने के लिए पौधे, पत्ते, छल आदि चीजों का इस्तेमाल होता था। (परफ्यूम खरीदने के टिप्स)
माना जाता है कि प्राचीन काल में इत्र गंध और भस्म से मन और आत्मा को संवारने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता था। उस समय तुलसी, केसर, इलायची, लौंग आदि से इत्र को तैयार किया जाता है।
इत्र और मुग़ल सम्राट का का रिश्ता
इत्र का संबंध मुग़ल काल से भी जोड़कर देखा जाता है। कई लोगों का मानना है कि गुलाब से सुगंधित इत्र बनाने की कला नूरजहां की मां अस्मत बेगम के शुरू की थी। धीरे-धीरे बढ़ाने लगा और मुग़ल सम्राट भी इसका इस्तेमाल करने लगे। बाबर से अकबर और अकबर से लेकर जहांगीर और औरंगजेब तक इत्र का इस्तेमाल करते थे। (घर पर ऐसे बनाएं परफ्यूम)
कहा जाता है कि भारत में इत्र लगाने और व्यापार करने का चलन सबसे अधिक मुग़ल काल में ही देखा गया था। माना जाता है कि प्राचीन काल से लेकर मध्यकाल में भी हिलामय के रास्ते इत्र का व्यापार होता था। कई लोगों का मानना है कि चीन, जापान, अफगानिस्तान के अलावा अन्य खाड़ी देशों के साथ मध्य काल में इत्र का व्यापार होता था।
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कन्नौज को इत्र नगरी क्यों बोला जाता है?
कहा जाता है कि भारत में जब भी महक का जिक्र होता है तो कन्नौज शहर को ज़रूर याद किया जाता है। यह शहर इत्र की बेहतरीन खुशबू के लिए पूरी दुनिया में फेमस है। माना जाता है कि यह से इत्र खाड़ी देशों में भी जाता है।
कहा जाता है कि यहां आज से नहीं बल्कि 600 साल से भी अधिक प्राचीन तकनीक से इत्र तैयार किया जाता है। कई लोगों का मानना है कि यह बहुत पहले फारसी कारीगर इत्र बनाने थे।
कन्नौज एक ऐसा शहर है जहां आज भी जैसमिन, खस, कस्तूरी, चंदन और कई फूलों से इत्र बनाती है और देश के साथ-साथ विदेश में भी भेजा जाता है।
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