किसी महिला के लिए सुहाग चिन्हों का क्या महत्व होता है? यहां मैं धार्मिक महत्व नहीं बल्कि सामाजिक महत्व की बात कर रही हूं। मेरे हिसाब से ये पूरी तरह से महिला पर निर्भर करता है कि वो अपने सुहाग चिन्हों को लगाए या फिर नहीं। पर मॉरल पुलिसिंग के दौर में ये समझना मुश्किल है कि वाकई महिलाओं की कोई अपनी राय है या नहीं। हाल ही का एक मामला ले लीजिए। महिला दिवस के कार्यक्रम में भाजपा सांसद को महिला का बिंदी ना लगाना इतना बुरा लगा कि उन्होंने सबके सामने उसपर चिल्ला दिया।
बिंदी ना लगाने को लेकर जिस तरह का कमेंट किया गया वो भी बहुत आपत्तिजनक था। सरेआम महिला की इस तरह से बेइज्जती करने को लेकर विपक्षी पार्टी ने हंगामा भी शुरू कर दिया है, लेकिन राजनीति की इस लड़ाई में असली मुद्दा अभी भी पीछे है। क्या किसी महिला का इस तरह से अपमान करना सही है?
"बिंदी लगाओ, तुम्हारा पति जिंदा है या नहीं..." ऐसा कमेंट कहां तक सही है?
महिला दिवस के कार्यक्रम में भाजपा सांसद सभी स्ट्रीट वेंडर्स से मिल रहे थे। उसी बीच वो एक महिला के स्टॉल पर गए। वहां उनकी नजर स्टॉल में मौजूद सामान की जगह महिला के चेहरे पर पड़ी जिसने बिंदी नहीं लगा रखी थी। महिला का बिंदी ना लगाना सांसद जी को इतना बुरा लगा कि उन्होंने सबके सामने महिला को डांट दिया। सांसद जी ने अपनी स्थानीय भाषा में कहा, "पहले बिंदी लगाओ, तुम्हारा पति जिंदा है या नहीं? जरा भी कॉमन सेंस नहीं है।"
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"Wear a Bindi first. Your husband is alive, isn't he. You have no common sense": #BJP MP to woman vendor,
— Nayini Anurag Reddy (@NAR_Handle) March 9, 2023
Enraging to witness the impudence of this BJP MP from #Karnataka on #WomensDay. Can he tolerate, if someone talks this way to his mother, wife or sister? Shameful pic.twitter.com/QFlyhvpLgT
इस घटना का वीडियो वायरल हो रहा है और उसे लेकर ही कांग्रेस पार्टी के एक नेता ने सांसद जी की तुलना ईरान के अयातुल्लाह से कर दी। आपको बता दें कि ईरान में अयातुल्लाह खामेनेई एक कट्टरपंथी नेता के तौर पर मशहूर हैं। उनका काम ही महिलाओं पर पाबंदियां लगाना और मॉरल पुलिसिंग करना है।
जाहिर सी बात है कि महिला दिवस के मौके पर किसी महिला का ऐसा अपमान गलत है। उस स्ट्रीट वेंडर को इतने लोगों के सामने इस तरह से डांटने का हक सांसद जी को किसने दिया ये तो नहीं पता, लेकिन इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि ये किस्सा आम सामाजिक सोच को दिखाता है।
इससे पहले कि मैं आगे कुछ लिखूं मैं आपसे कुछ सवाल पूछना चाहती हूं...
- क्या उस स्ट्रीट वेंडर की कोई गलती आपको समझ आ रही है?
- क्या उस महिला का बिंदी ना लगाना इतनी बड़ी बात थी कि उसे ऐसे डांटा जाए?
- क्या उसकी अपनी मर्जी नहीं पूछी जानी चाहिए?
- सुहाग चिन्हों की इतनी जरूरत जब उस महिला को नहीं महसूस हुई तो सांसद जी को क्यों?
- आखिर क्यों मॉरल पुलिसिंग समाज में इतनी विख्यात है?
- आखिर महिलाओं के बिंदी ना लगाने से किसी पुरुष को इतनी समस्या क्यों हो रही है?
- क्या सांसद जी को महिला के स्टॉल पर जाकर सामान पर ध्यान नहीं देना चाहिए था?
- क्या वाकई महिला की इतनी बड़ी गलती थी कि उसकी बेइज्जती हो?
इन सभी सवालों के जवाब साधारण से हैं। इस पूरी घटना की कोई जरूरत नहीं थी। महिला की अपनी मर्जी भी मायने रखती है कि उसे बिंदी लगानी है या नहीं। मॉरल पुलिसिंग के कई किस्से हमें गाहे-बगाहे देखने को मिल ही जाते हैं। महिलाओं को ये सिखाया जाता है कि उन्हें किस तरह का व्यवहार करना चाहिए, किसके साथ घूमना चाहिए, कहां रहना चाहिए और कैसे कपड़े पहनने चाहिए। मॉरल पुलिसिंग के रूप अनेक हो सकते हैं, लेकिन इसका तरीका बिल्कुल एक जैसा ही होता है। कोई पुरुष किसी महिला को ये समझाता है कि वो जो कर रही है वो गलत है। जिस तरह से वो रह रही है वो गलत है।
क्या किसी महिला का अपने हिसाब से जीना गलत है?
हो सकता है मेरा ये सवाल आपको बचकाना लगे, लेकिन यकीन मानिए जिस तरह के हालात चल रहे हैं, इस सवाल को वाजिब ही समझा जाएगा। हम 2023 के फरवरी महीने को पार कर चुके हैं और अब भी देश के किसी कोने में कोई सांसद ये सोचता है कि महिला का बिंदी लगाना ही उसकी पहचान है। जिस महिला की यहां बात हो रही थी वो अपना काम बखूबी कर रही थी और खुद सक्षम थी। वो अपने घर को चलाने के लिए पैसे कमा रही थी। उसकी आत्मनिर्भरता को देखने की जगह सिर्फ उसके माथे की बिंदी देखी गई।
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सबसे अजीब बात तो ये है कि इस घटना को महिला दिवस के दिन अंजाम दिया गया। उस स्थल पर जहां महिलाओं का सम्मान होना था, वहां किसी महिला को बिंदी ना लगाने पर सबके सामने डांटा गया। हम यही मान सकते हैं कि बतौर समाज हम फेल हुए हैं। हम आज भी उस मानसिकता को सही मानते हैं जहां महिलाओं की शादी, उनका पति, उनकी बिंदी, सिंदूर आदि बहुत जरूरी मानते हैं।
हमारी गंगा-जमुनी तहजीब को लेकर तारीफों के पुल बांधे जाते हैं, लेकिन वहीं किसी महिला का महिला दिवस के दिन अपमान किया जाता है। गंगा को मइया कहने वाले लोग बिना किसी बात के किसी लड़की को झड़प देते हैं। कहने को तो हमारे देश में मिट्टी को भी पूजा जाता है, लेकिन घर की स्त्री के साथ क्या-क्या किया जाता है वो तो आप देख ही रहे हैं। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की लिस्ट में भारत बहुत ऊपर है और इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारी बेइज्जती हो चुकी है।
इतनी बातों को छोड़ किसी महिला के माथे की बिंदी ही किसी सांसद को दिखती है। भले ही वो बिंदी महिला की सुरक्षा कर पाए या नहीं, भले ही उसके घर में खाना पहुंचा पाए या नहीं, भले ही महिला का खुद मन ना हो बिंदी लगाने का, लेकिन बिंदी होनी चाहिए।
आपके हिसाब से क्या ये बात वाजिब थी? इस पूरे मामले में आपकी क्या राय है? क्या बिंदी वाकई में इतनी जरूरी है? अपने जवाब हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।