विक्टिम ब्लेमिंग को लेकर फिर उठी आवाज़, जेएनयू में काउंसलिंग नोटिस में कही विवादित बात

विक्टिम ब्लेमिंग को लेकर जेएनयू में एक बार फिर से विवाद हुआ है। जानें आखिर क्यों ये चिंता का विषय है।

Shruti Dixit
jnu sexual harassment issue

अगर आपसे पूछा जाए कि भारत की कुछ बहुत बड़ी समस्याओं के बारे में बताएं तो शायद उनमें धर्म विरोध, अर्थव्यवस्था, गरीबी, यौन शोषण, हाइजीन की कमी आदि शामिल होंगी, लेकिन एक समस्या जो हमेशा देखी जाती है और उसे नजरअंदाज कर दिया जाता है वो है विक्टिम ब्लेमिंग की समस्या। दरअसल, भारत उन देशों में से एक है जहां यौन शोषण और रेप जैसे गंभीर मुद्दों के लिए भी लड़कियों को ही दोष दिया जाता है।

'लड़कियों को ये पता होना चाहिए कि कैसे रहना है, लड़की है तो रात में क्यों बाहर घूम रही थी, लड़की है तो उसे क्यों इतना पढ़ा रहे हो, लड़कियों की आज़ादी तो यही गुल खिलाएगी, बाहर जाती है लड़कों के साथ काम करती है तो ऐसा ही होगा, लड़कों की आदत ही होती है ऐसी', और दुनिया भर की बातें कही जाती हैं।

गाहे-बगाहे इस बारे में बात होती ही रहती है और अब एक बार फिर से ऐसा ही हुआ है। दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एक सर्कुलर जारी हुआ है जिसमें विक्टिम ब्लेमिंग की गई है। इसे लेकर छात्र विरोध कर रहे हैं और उस सर्कुलर का मुख्य उद्देश्य था यौन शोषण के बारे में जागरूक करना।

jnu victim blaming

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किस कारण सर्कुलर का हो रहा है विरोध?

जिस विवादित सर्कुलर की बात हो रही है उसे खासतौर पर यौन शोषण को ध्यान में रखकर बनाया गया था। इसमें लिखा था, 'आंतरिक शिकायतों की जांच करने वाली कमेटी का ध्यान इस बात पर गया है कि यौन शोषण के कई केस करीबी दोस्तों के बीच होते हैं। लड़के अधिकतर अपनी लिमिट क्रॉस कर देते हैं (कुछ बार जानकर तो कुछ बार अनजाने में) दोस्ती और यौन शोषण के बीच एक पतली रेखा होती है। लड़कियों को ये पता होना चाहिए कि वो रेखा कैसे खींची जाए (खुद के और अपने मेल दोस्तों के बीच) ताकि इस तरह के शोषण से बचा जा सके।'

इस पूरे सर्कुलर में ये बताया गया है कि कैसे यौन शोषण से बचें जबकि ये बात ध्यान दी जानी चाहिए कि आखिर कैसे यौन शोषण को रोका जाए।

blaming the victim

इसे लेकर JNUSU प्रेसिडेंट आइशी घोष ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को स्टेटमेंट भी दिया है। उस स्टेटमेंट में कहा गया है कि, 'जेएनयू में मौजूद ICC विक्टिम ब्लेमिंग की बात कर रही है जहां वो लड़कियों को एक मर्यादा रेखा खींचने को कह रही है ताकि वो अपने पुरुष दोस्तों द्वारा हैरेस ना हो। जेएनयू की इस कमेटी ने कई बार मोरल पुलिस बनने की कोशिश की है।'

यकीनन 2022 बस अब शुरू हो ही गया है और फिर भी विक्टिम ब्लेमिंग को लेकर बात होती ही रहती है। किसी लड़की की गलती निकालना इतना आसान लगता है और यहीं लड़कों को ये सिखाना भी जरूरी नहीं समझा जाता कि उन्हें कैसे व्यवहार करना है। लड़का है तो नशे में हो सकता है और उससे गलती हो गई जैसे एक्सक्यूज हम ही देते दिखते हैं। ये कहीं से भी सही नहीं है और महिला सशक्तिकरण के नाम पर होने वाली सारी बातों को ये झुठला देता है।

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लड़का अगर घर का कोई काम कर दे तो उसे ग्लैमराइज किया जाता है, जैसे घर उसका नहीं है, ऐसे ही लड़का अगर लड़कियों की इज्जत नहीं करे तो उसे नॉर्मल बताया जाता है और अगर कोई लड़का इज्जत करे तो उसे महान कहा जाता है। यही बेसिक अंतर है जो हमें समझने की जरूरत है। लड़कियों की इज्जत करना महानता का लक्षण नहीं नॉर्मल होने का लक्षण है और उसे नॉर्मल बनाने की जरूरत है।

जब तक ये छोटी सी बात किसी की समझ में नहीं आती है तब तक इस तरह के किस्से चलते ही रहेंगे।

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