जहां तक सेक्शुअल ओरिएंटेशन की बात है तो वो सिर्फ आकर्षण का एक पैटर्न हो सकता है जो एक इंसान दूसरे इंसान की तरफ महसूस करता है। ये फिजिकल हो सकता है, इमोशनल हो सकता है या फिर रोमांटिक एक्शन के कारण भी हो सकता है। ऐसा आकर्षण विपरीत सेक्स (हेटरोसेक्शुअल), सेम सेक्स (होमो सेक्शुअल) या फिर दोनों तरह के जेंडर की तरफ (बाईसेक्शुअल) हो सकता है। सेक्शुअल ओरिएंटेशन और कुछ नहीं बल्कि एक साइको-इमोशनल एक्सपीरियंस है जिसे एक व्यक्ति महसूस करता है। ये अलग-अलग तरह की जेंडर आइडेंटिटी होती है जहां लोग खुद को पुरुष , महिला, ट्रांसजेंडर आदि के रूप में पहचानते हैं। टीनएज एक ऐसा समय होता है जहां लोग खुद को उनकी सेक्शुअल ओरिएंटेशन के तहत पहचानते हैं। कई टीन्स खुद को हेटरोसेक्शुअल ही मानते हैं, लेकिन उनकी भावनात्मक पहचान कुछ और भी हो सकती है।
सेक्शुअल ओरिएंटेशन के मामले में टीनएजर्स के सामने होती हैं ये मुश्किलें-
- क्योंकि टीनएजर्स अपने आकर्षण को लेकर कुछ कन्फ्यूज रहते हैं इसलिए कई बार उन्हें उनकी पसंद बताने में मुश्किल होती है। ये बातें वो अपने बड़ों से तो शेयर करते समय हिचकिचाते हैं।
- टीनएजर्स को कई बार ये पता भी नहीं होता है कि वो किसी और के प्रति क्यों आकर्षित हैं। ये सेम सेक्स या अपोजिट सेक्स या कई बार दोनों ही तरह के जेंडर के प्रति आकर्षण हो सकता है। कई बार टीनएजर्स को खुद भी नहीं पता होता कि वो इस तरह से क्यों आकर्षित होते हैं। वो शारीरिक तौर पर किसी एक जेंडर की तरफ आकर्षित हो सकते हैं और भावनात्मक तौर पर किसी दूसरे की तरफ आकर्षित हो सकते हैं या फिर दोनों चीज़ें किसी एक ही जेंडर की तरफ हो सकती हैं।
- ऐसे कन्फ्यूजन कई बार उन्हें परेशानी में डाल देते हैं और वो शारीरिक और मानसिक तौर पर परेशान रहने लगते हैं।
- कई बार ऐसे कन्फ्यूजन में जो मानसिक स्तिथि बनती है उसके कारण वो समझ नहीं पाते कि उनके लिए सही क्या है और गलत क्या है। हालांकि, यहां इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि ऐसे भावनात्मक विचारों को बल पूर्वक बदला नहीं जा सकता है।
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माता-पिता को ये समझना होता कि ये नॉर्मल साइकोलॉजिकल प्रक्रिया है जो एक इंसान अपनी जिंदगी में झेलता है। उन्हें अपने बच्चों को इसके लिए शिक्षा देनी चाहिए।
सही शिक्षा से बच्चे आत्म-संघर्ष, अनावश्यक डिप्रेशन और भ्रम यानी कन्फ्यूजन से दूर हो सकते हैं। हर व्यक्ति अपनी सेक्शुअल ओरिएंटेशन के बारे में समझने के लिए वक्त लेता है और ऐसा ही किशोरावस्था में भी होता है। उन्हें सपोर्ट मिलना चाहिए, उन्हें गाइडेंस मिलना चाहिए ताकि वो अपनी सेक्शुअल ओरिएंटेशन को समझ सकें।
सार (Conclusion)-
जहां तक सेक्शुअल ओरिएंटेशन की बात है तो कोई भी इंसान किसी भी तरह की कैटेगरी में हो सकता है और सबसे जरूरी ये है कि लोग ये मानें कि ये सिर्फ भावनात्मक लगाव है जो किसी और इंसान के प्रति हुआ है। इसके लिए खुद को दोषी ठहराने की जरूरत नहीं होती है और बल पूर्वक अपनी सोच बदलने की भी जरूरत नहीं होती है। ये बहुत आम है कि कोई इंसान कुछ अलग महसूस करे या फिर कन्फ्यूज हो। कोई भी किसी अन्य इंसान की सेक्शुअल ओरिएंटेशन के लिए उसे जज नहीं कर सकता है।
डॉक्टर सुप्रिया अरवारी (M.D, D.G.O) को उनकी एक्सपर्ट सलाह के लिए धन्यवाद।
Reference:
https://www.risas.org/poc/view_doc.php?type=doc&id=41179&cn=1310
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC2603519/