
आरव (थोड़ा गुस्से में):
"निशा, मैंने तुमसे कितनी बार कहा है कि अपने उन मेल-फ्रेंड्स से दूरी बना लो। शादी हो चुकी है हमारी, अब ये सब ठीक नहीं लगता।"
निशा (धीरे से, लेकिन दर्द से):
"लेकिन आरव, दोस्ती में गलत क्या है? मैं सिर्फ एक तस्वीर शेयर कर रही थी। उसमें कुछ भी गलत नहीं था।"
आरव (तेज आवाज में):
"गलत तो नजर आता है लोगों को! लोग क्या सोचेंगे तुम्हारे बारे में, हमारे बारे में?"
निशा (रुकते हुए, आंखों में आंसू भरकर):
"और तुम्हारी महिला मित्रों के बारे में लोग क्या सोचते होंगे? जब तुम उनसे मिलते हो, हसते-बोलते हो, तब तो तुम्हें कुछ गलत नहीं लगता।"
आरव (थोड़ा चुप होकर, पर फिर भी कठोर):
"वो अलग है... मैं जानता हूं अपनी हदें।"
निशा (साहस जुटाकर):
"और क्या तुम्हें लगता है कि मैं अपनी हदें नहीं जानती? आरव, शादी का मतलब ये नहीं कि मेरी दोस्तियां खत्म हो जाएं। रिश्ते भरोसे से चलते हैं, शक से नहीं।"

बस निशा के इतना बोलते ही आरव का गुस्सा इतना बढ़ गया कि उसने निशा के गालों पर जोर से .....
आगे लिखने की जरूरत नहीं है आप लोग समझ ही गए होंगी कि पति-पत्नी के बीच क्या हुआ होगा। ऐसा ही एक सवाल हमारे पास इस बार आया, जिसमें इंदौर की मनीषा को भी ऐसी ही एक उलझन में फंसा पाया गया। मनीषा ने हमसे एक सवाल किया, जिसका जवाब हमने क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. औजस्वी सिंह से पूछा -
कुछ दिन पहले न्यूज पेपर और न्यूज चैनलों पर ग्वालियर की खबर सुर्खियों पर थी, प्रेम विवाह करने के बाद पति ने पत्नी की सरे आम गोली मारकर हत्या कर दी थी। पति को शक था कि पत्नी का अफेयर चल रहा है । पत्नी ने अपने पुरुष मित्र के साथ एक तस्वीर सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर कर दी थी। इससे पति का शक यकीन में बदल गया और क्रोध में आकार उसने अपनी बीवी की हत्या कर दी।
इस खबर और मनीषा की परेशानी में एक बात कॉमन है और वो हैं 'शक'। डॉ. औजस्वी सिंह कहती हैं, "शक बहुत बड़ी बीमारी है। यह इंसान को हैवान बना देती है। पति-पत्नी के मध्य शक की कोई जगह नहीं होनी चाहिए, मगर आजकल ऐसे बहुत सारे केसेज आ रहे हैं, जहां शक की वजह से कोई बड़ा क्राइम हो जाता है।"

रिश्ता खत्म करना बहुत आसान है, मगर बनाना मुश्किल। शादी के शुरुआती दिनों में पति-पत्नी आपस में खुद को समझते हैं। यह प्रक्रिया अरेंज और लव मैरिज दोनों में होती है। ऐसे में दोनों एक दूसरे के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। ऐसे में दोनों के बीच यदि अचानक कोई तीसरा महत्वपूर्ण बनने लगे, तो झगड़े स्वभाविक हैं। डॉ. औजस्वी सिंह कहती हैं, " जब पति-पत्नी बिना आरोप लगाए अपने डर और असहजता पर खुलकर बात करते हैं, तो गलतफहमियां कम हो जाती हैं। चुपचाप शक पालने के बजाय बातचीत समझ और भरोसा पैदा करती है।"
अत: यही कहा जा सकता है, कुछ परिस्थितियों को भावनात्मक तरीके से संभालना चाहिए। उम्मीद है कि आपके ऊपर दिया गया सुझाव पसंद आया होगा। इस लेख को लाइक और शेयर करें। इसी तरी और भी आर्टिकल्स पढ़ने के लिए हरजिंदगी से जुड़ी रहें। आपकी भी यदि कोई ऐसी समस्या है, तो हमें anuradha.gupta@jagrannewmedia.com पर लिख भेजिए।
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