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HZ Exclusive: LGBTQ+ कम्युनिटी की स्वतंत्रता, प्राथमिकताएं और अधिकारों के बारे में बातचीत के कुछ अंश

LGBTQ+ कम्युनिटी के लिए न जाने कितने क़ानून बनाए गए हैं, जिनके बारे में इसी कम्युनिटी के लोगों को ही शायद नहीं पता होता है। उनके बारे में गहराई से यहां विस्तार से जानें।
Editorial
Updated:- 2023-07-03, 16:18 IST

हमारे देश में LGBTQ+ कम्युनिटी कई क़ानून और नियम बनाए गए हैं, लेकिन शायद इस कम्युनिटी के ही कई ऐसे लोग होंगे जिन्हें अपने अधिकारों की सही जानकारी नहीं होगी। हमारा समाज इतना शिक्षित होने के बाद भी इस कम्युनिटी के लोगों को अलग नजरिए से देखता है और अपना जीवन खुलकर जीने की आजादी के बारे में अभी भी कई सवाल इनके सामने अक्सर आते हैं।

कभी ट्रांसजेंडर पर्सन का आधार कार्ड ही नहीं बन पाता है तो कभी उसे बीमार होने पर सिर्फ इस वजह से सही चिकित्सा नहीं मिल पाती है कि उसका जेंडर क्या बताया जाए। वजह चाहे जो भी हो लेकिन सही कानूनों और उनके अधिकारों के बारे में सभी को जानकारी होनी चाहिए, जिससे उन्हें जीवन जीने की स्वतंत्रता मिले और एक सशक्त समाज की परिभाषा में वो खरे उतर सकें। 

LGBTQ+ कम्युनिटी के अधिकारों से जुड़े कुछ सवालों के जवाब जानने के लिए हमने HZ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में  Yash, OHOQ के Founder and CEO और Rahul Sangwan, Advocate, Supreme Court of India से बात की। आइए उनसे जानें इस कम्युनिटी से जुड़ी कुछ समस्याओं और उनके अधिकारों के बारे में विस्तार से। 

आपके अनुसार LGBTQ+ कम्युनिटी के लिए क़ानून कैसे बदल रहे हैं?

how laws are changing for lgbtq community

सुप्रीम कोर्ट के वकील राहुल का कहना है कि हमें समझने की जरूरत है कि यह एक न्यायपालिका संचालित लड़ाई है। देखा जाए तो अभी तक 30 सालों में  सरकार ने समुदाय के लिए कोई कदम नहीं उठाया। सरकार ने कभी इस लड़ाई में मान्यता नहीं दी।

बल्कि कम्युनिटी के लोगों ने खुद ही अपने हक़ के लिए लड़ाई शुरू की। साल 2009 में धारा 377 को हटाया गया और साल 2013 में दोबारा यह धारा लगाई गई। साल 2014 में NALSA  आने के बाद ट्रांसजेंडर कम्युनिटी को थर्ड जेंडर की मान्यता दी गई। इसके बाद नवतेज सिंह जौहर के केस में साल 2018 में धारा 377 को पूरी तरह से हटा दिया गया। देखा जाए तो हमेशा कम्युनिटी ने ही अपने लिए लड़ाई की और उन्हें कभी भी सरकार का साथ नहीं मिला। 

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what are the laws for lgbtq

कम्युनिटी के कई लोगों को आज भी अपनी आइडेंटिटी के लिए संघर्ष करना पड़ता है, उन्हें कैसे सपोर्ट किया जा सकता है?

OHOQ के Founder and CEO यश का कहना है कि जब हम कम्युनिटी के अधिकारों और कानूनों की बात करें तो इसके लिए अधिकारों की लड़ाई की  शुरुआत 1990 में हुई और 2018 में सेक्शन 377 को मान्यता मिली और मुख्य रूप से Queer Relationship को कानूनी मान्यता मिली। हालांकि इसके पहले कुछ कम्युनिटी थीं जैसे हिजरा या किन्नरों का समाज जिन्हें देश में इसलिए इज्जत दी जाती थी, क्योंकि किसी भी शुभ काम में इनका आना अच्छा माना जाता था जैसे शादी-विवाह आदि।

लेकिन उन्हें इससे आगे बढ़कर समाज में कोई और स्थान नहीं दिया जाता था। जब उनके हक के लिए लड़ाई शुरू हुई तो कम्युनिटी के लिए कुछ कानून बनाए गए जैसे 2014 में NALSA आया, 2019 में ट्रांसजेंडर प्रोटेक्शन बिल आया जिसमें बहुत सी बातें बोली गईं जैसे ट्रांसजेंडर्स के साथ भेदभाव न करना, उन्हें घर देना और उनके लिए हेल्थ सर्विसेस देना। यदि हम कानून की बात करें तो  LGBTQ+ कम्युनिटी के लिए कई तरह के बदलाव देखे जा सकते हैं और बहुत जल्द ही हम समाज में भी बदलाव देखेंगे। 

इसे जरूर पढ़ें: LGBTQIA क्या है? इस कम्युनिटी में किस-किस तरह के लोग होते हैं शामिल

LGBTQ+ कम्युनिटी के कुछ विशेष अधिकारों के बारे में बताएं 

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राहुल बताते हैं कि यदि हम LGBTQ+ कम्युनिटी के अधिकारों की बातकरें तो हमें इस कम्युनिटी के लिए किसी विशेष क़ानून के बजाय ह्यूमन राइट्स के बारे में बात करनी चाहिए। एक भारत का नागरिक होने के कारण जो भी मानवाधिकार एक आम व्यक्ति को दिए गए हैं वही मानवाधिकार Queer समुदाय के हैं।

यदि उनके विशेष अधिकारों की बात करें तो साल 2019 के बाद ये क़ानून बनाया गया कि LGBTQ+ कम्युनिटी का कोई भी व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति के अनुसार ट्रांसजेंडर सर्टिफिकेट के लिए अप्लाई कर सकता है।

इसके अलावा कोई भी ट्रांसजेंडर पर्सन अपनी सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी के बाद आप लीगल जेंडर चेंज का सर्टिफिकेट ले सकता है। ये ऐसे अधिकार हैं जो मानवाधिकारों के साथ कम्युनिटी को दिए गए हैं। इसके अलावा एक और अधिकार उन्हें मिला है कि कम्युनिटी के लोग किसी के साथ भी रह सकते हैं और किसी से भी प्रेम कर सकते हैं। हालांकि अभी भी उनके लिए वैवाहिक समानता की लड़ाई जारी है। 

यश आपको OHOQ फाउंडेशन शुरू करने के लिए प्रेरणा कहां से मिली?

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OHOQ फाउंडेशन के फाउंडर यश बताते हैं कि जब वो 19 साल के थे तब समाज में इस कम्युनिटी के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी। उस समय घर में किसी ने उनके बारे में बताया और उस समय यश को एक बड़ा निर्णय लेना था और इसके लिए लड़ाई लड़ने के लिए हिम्मत लानी थी।

उस समय चीजों को समझने का नजरिया बहुत कम था और उन्हें कुछ ऐसा नहीं दिखा जो उनके हिसाब से हो। उस समय उन्हें लगा कि कैसे वो अगर खुद को Queer बोलते हैं तो उन्हें समाज की नज़रों का सामना करना पड़ेगा और उनके साथ भेद-भाव होगा। तब उन्हें लगा कि इससे अच्छा तो किसी के सामने अपनी पहचान लाई ही ना जाए। लेकिन उस समय यश को अपने परिवार का साथ मिला और उन्हें लगा कि उनकी ही तरह और भी लोग हो सकते हैं जिन्हें समाज में अपनी पहचान सामने लाने की जरूरत है।

तभी यश को लगा कि उन्हें ऐसे लोगों की कहानी बाहर लानी चाहिए जो Queer हैं और जीवन में बहुत अच्छा कर रहे हैं। उस समय उन्हें लगा कि ऐसे किसी ग्रुप की शुरुआत करनी चाहिए। अगर हम भारत की संस्कृति की बात करें तो वो काफी अलग है, हम परिवार और समाज में भरोसा करते हैं, लेकिन Queer कम्युनिटी की एक अलग पहचान है जिसे आगे लाने की जरूरत है।  

इसे जरूर पढ़ें: Haqse: ट्रांसजेंडर्स की सुरक्षा के लिए भारत में बनाए गए हैं ये कानून

हेल्थ केयर एक्सेस के लिए LGBTQ+ कम्युनिटी के क्या अधिकार हैं ?

राहुल बताते हैं कि ट्रांसजेंडर एक्ट में अभी भी कुछ खामियां हैं जिसे बदलने की जरूरत है। आप खुद ट्रांसजेंडर सर्टिफिकेट भले ही ले सकते हों, लेकिन ट्रांसमैन या ट्रांसवूमन सर्टिफिकेट लेने के लिए अभी भी बहुत कोशिशें करनी पड़ती हैं।

जब कम्युनिटी की हेल्थ केयर एक्सेस की बात करें तो जब भी कहीं इलाज कराने के लिए आधारकार्ड की जरूरत होती है तब उनके लिए मुश्किल होता है। यश बताते हैं कि कानून का एक्सेस कई लोगों तक नहीं हैं और न जाने कितनी बार कम्युनिटी के लोगों को अपनी HIV जैसी मेडिसिन भी छोड़नी पड़ती है, क्योंकि लोग आज भी समाज में इस कम्युनिटी को लेकर सेंसटिव नहीं हैं।

हमारे एजुकेशन सिस्टम में भी जागरूकता नहीं है। मेडिकल टेक्स्ट बुक भी ऐसे लिखी जाती हैं जिसमें सिर्फ महिलाओं और पुरुषों के बारे में ही बताया जाता है और ट्रांसजेंडर के लिए कुछ नहीं बताया जाता है। न जाने कितनी बार कम्युनिटी के लोगों को अपने वैक्सीनेशन और दवाएं छोड़नी पड़ती हैं। इन सभी चीजों में जागरूकता लाने के लिए हमें समाज की सोच के साथ मेडिकल और एजुकेशन पॉलिसी में भी बदलाव लाने की जरूरत है। 

LGBTQ+ कम्युनिटी के लोगों के बारे में, उनके अधिकारों के बारे में और उनके कानूनों के बारे में समाज को जागरूक करने की आवश्यकता है और समाज की सोच बदलने की जरूरत है। 

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