कुमकुम का इस्तेमाल हर पूजा और अनेकों विधियों में होता है और कुमकुम एक बहुत ही पवित्र वस्तु मानी जाती है। पर क्या आपने कभी सोचने की कोशिश की है कि आखिर कुमकुम बनता कैसे है? कुमकुम का महत्व कई कारणों से माना जाता है। अगर साहित्य की मानें तो कुमकुम को बच्चे के पैदा होने और मातृत्व के सुख से जोड़कर देखा गया है। कुमकुम को देवताओं को अर्पण किया जाता है और सुहागिनों के लिए इसकी मान्यता बहुत है।
कुमकुम को ज्यादा शुद्ध माना जाता है और सिंदूर उसका ही थोड़ा और ज्यादा मॉडिफाइड रूप होता है जिसमें थोड़े से केमिकल्स भी होते हैं। इसी तरह लिक्विड सिंदूर आदि भी कुमकुम के मुकाबले उतने अच्छे नहीं माने जा सकते क्योंकि इनमें बहुत सारे केमिकल्स मौजूद होते हैं जो स्किन के लिए अच्छे नहीं होते।
ऐसे में क्यों ना हम आज कुमकुम के बारे में ही बात करें कि आखिर ये बनता कैसे है और इसके बारे में कई अन्य फैक्ट्स जानने की कोशिश करें। तो चलिए आज आपके साथ शेयर करते हैं कुमकुम की कहानी।
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कुमकुम जिसमें कोई भी केमिकल्स ना हो वो दो चीज़ों से बनाया जा सकता है। पहला केसर और दूसरा हल्दी। अब क्योंकि केसर बहुत ज्यादा महंगा होता है इसलिए अधिकतर हल्दी की मदद से ही कुमकुम को बनाया जाता है। कुमकुम नेचुरल मटेरियल होता है जिसमें 95% हल्दी (हल्दी को धूप में सुखाकर पीसकर निकाला हुआ शुद्ध पाउडर ना कि खाने में मिलने वाला पाउडर) और 5% लाइम स्टोन (कम अमाउंट में slaked lime जिसे चूना पाउडर और Calcium hydroxide भी कहा जाता है।) इस्तेमाल होता है।
कुमकुम में लाल रंग इसे बनाने के प्रोसेस के कारण आता है। हल्दी पाउडर में लाइम को मिलाया जाता है और इसे सूखने दिया जाता है। अब क्योंकि किसी भी तरह का केमिकल रिएक्शन हल्दी का रंग बदलने में कारगर होता है और लाइम स्टोन पाउडर का pH लेवल हल्दी से अलग होता है इसलिए रिएक्शन शुरू होता है और ये ब्राउन और रेड रंग का हो जाता है। ये एक अल्कलाइन सॉल्यूशन बन जाता है जिससे आपको वो गहरे लाल रंग का कुमकुम मिलता है।
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कुमकुम और सिंदूर को भारत के कई हिस्सों में एक ही समझा जाता है, लेकिन सही मायनों में ये दोनों ही अलग हैं। कुमकुम एक तरह का नेचुरल सब्सटेंस है जिसे रोली भी कहा जाता है और क्योंकि इसमें केमिकल्स बहुत कम होते हैं इसलिए ये माथे पर ठंडक का अहसास देता है और लोगों को हल्दी चेहरे पर लगाने जैसी जलन महसूस नहीं होती।
कुमकुम वैसे केमिकल्स से भी बनता है और आजकल मिलावटी कुमकुम की भरमार है क्योंकि इसे ज्यादा आसानी से बनाया जा सकता है, लेकिन प्योर कुमकुम आपको किसी भी तरह की जलन नहीं करेगा।
अब बात करते हैं सिंदूर की जिसे कई लोग कुमकुम भी कहते हैं, लेकिन ये दोनों ही अलग प्रोडक्ट्स हैं। सिंदूर असल में पीले रंग का होता है जो हनुमान जी पर चढ़ाया जाता है, हालांकि कई लोग लाल रंग के कुमकुम को भी सिंदूर ही कहते हैं और ये अंतर अलग-अलग प्रांत के हिसाब से है। सिंदूर भी प्योर और केमिकल वाला दोनों हो सकते हैं। आजकल मिलने वाले लिक्विड सिंदूर में बहुत तरीकों के केमिकल मिलाए जाते हैं और उन सबकी तुलना में कुमकुम को ज्यादा बेहतर माना जाता है।
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सबसे ज्यादा शुद्ध कुमकुम केसर से बना हुआ माना जाता है। क्या आप जानते हैं कि मां वैष्णो देवी को चढ़ावे में केसर की पत्तियां भी चढ़ाई जाती हैं। कई जगहों पर ये कुमकुम मिलता है, लेकिन इसकी शुद्धता का पता लगाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। कुमकुम बहुत ही अच्छा ऑप्शन है अगर आपको लगता है कि आपको पूजा-पाठ आदि में इसे इस्तेमाल करना है।
शरीर पर इस्तेमाल करने के लिए भी ऑर्गेनिक कुमकुम ज्यादा बेहतर होता है।
कुमकुम से एक मिथक सबसे ज्यादा जुड़ा है कि इसमें गुड़हल के फूलों को मिलाया जाता है और उसके कारण ही इसका रंग लाल होता है। ऐसा बिल्कुल नहीं है, हो सकता है कि आजकल मार्केट में मिलने वाले कुमकुम में कुछ हद तक गुड़हल मिलाकर उसे रंग देने की कोशिश की गई हो, लेकिन फिर भी इसका असली प्रोसेस वैसा ही होगा।
कुमकुम को घर पर भी बनाया जा सकता है। इसके लिए ये सामग्री चाहिए-
विधि-
आप कोशिश करें कि ऐसा कोई कुमकुम ना खरीदें जिसमें बहुत तेज़ गंध आ रही हो। ये केमिकल खुशबू होगी। कई जगह अलग-अलग रंगों के कुमकुम भी मिलने लगे हैं। आप कुमकुम खरीदते समय उसके डिब्बे पर इंग्रीडिएंट्स लिस्ट को चेक कर लें जिसमें मरक्युरी या लेड जैसे केमिकल्स तो नहीं हैं।
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