कहते हैं कि रमजान के महीने में अल्लाह की खूब रहमत बरसती है। बुराई पर अच्छाई हावी हो जाती है। इस महीने मुसलमान अपनी चाहतों पर नकेल कस सिर्फ अल्लाह की इबादत करते हैं। यूं तो एक दिन में पांच वक्त की नमाज़ अदा की जाती है,लेकिन रमज़ान के महीने में तरावीह की नमाज़ पढ़ना भी जरूरी होती है।
बता दें कि तरावीह की नमाज़ ईशा की नमाज़ के बाद पढ़ी जाती है, जिसमें 20 रकात होती हैं और हर दो रकात के बाद सलाम फेरा जाता है। तो चलिए विस्तार से जानते हैं कि तरावीह की नमाज़ कैसे अदा की जाती है और तरावीह की दुआ क्या है।
तरावीह एक अरबी भाषा का शब्द है जिसका मतलब होता है आराम और तेहेरना। कहा जाता है कि ईशा की नमाज़ के बाद पढ़ी जाती है, जिसमें 20 रकात होती हैं और हर 4 रकात के बाद तरावीह की दुआ पढ़ी जाती है। हालांकि, तरावीह की नमाज़ महिला और पुरुष दोनों पर फर्ज हैं, लेकिन महिला कुरान की 10 सुरतों वाली तरावीह पढ़ना सही माना जाता है। (नमाज़ अदा करने के फायदे)
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यह तो हम सभी को पता है कि तरावीह की नमाज़ पढ़ने में लगभग 2 घंटे लगते हैं, जिसे पूरे रमज़ान पढ़ना लाज़िमी हैं। मगर इसका सवाब तभी मिलता है, जब यह बिना किसी गेप के पढ़ी जाती हैं यानी हमें तरावीह रमज़ान के बीच में नहीं छोड़नी चाहिए। आइए अब जानते हैं कि तरावीह की नियत करने का सही तरीका क्या है। (दुनिया की सबसे पुरानी मस्जिद)
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नियत की मैंने दो रकात नमाज़ सुन्नत तरावीह, अल्लाह तआला के वास्ते, वक्त इशा का, पीछे इस इमाम के मुहं मेरा कअबा शरीफ़ की तरफ़, अल्लाहु अकबर कह कर हाथ बाँध लेना है फिर सना पढ़ेंगे !
नियत करती हूं मैं दो रकात नमाज़ सुन्नत तरावीह की, अल्लाह तआला के वास्ते, वक्त इशा का, मुहं मेरा मक्का कअबा की तरफ, अल्लाहु अकबर..फिर हाथ ऊपर करके नियत बांध लेते हैं।
तरावीह की नमाज़ पढ़ने का तरीका अलग-अलग हो सकता है। अगर आप किसी के पीछे तरावीह पढ़ रहे हैं तो इस नमाज़ में कुरान की तिलावत की जाती है। वहीं, अगर आप घर पर तरावीह पढ़ रहे हैं, तो दो-दो रकात में 30वे पारे की 10 सूरतें पढ़ी जाती हैं। (रमज़ान में क्या करना चाहिए और क्या नहीं)
जिस तरह रमज़ान में रोज़ा रखने की दुआ पढ़ना जरूरी है। उसी तरह तरावीह की दुआ पढ़ना भी लाज़िमी है। माह-ए-रमजान में तरावीह की दुआ के बहुत मायने हैं और अगर बिना दुआ के नमाज़ पढ़ी जाती है, तो तरावीह का सवाब कम मिलता है।
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सुबहान ज़िल मुल्कि वल मलकूत, सुब्हान ज़िल इज्ज़ति वल अज़मति वल हय्बति वल कुदरति वल किबरियाई वल जबरूत, सुबहानल मलिकिल हैय्यिल लज़ी ला यनामु वला यमुतू सुब्बुहून कुददुसुन रब्बुना व रब्बुल मलाइकति वर रूह, अल्लाहुम्मा अजिरना मिनन नारि या मुजीरू या मुजीरू या मुजीर
Subhana zil mulki wal malakut. Subhana zil izzati wal azmati wal haibati wal qudrati wal kibriya ay wal jabaroot. Subhanal malikil hayyil lazi la yanaamo wala yamato subbuhun quddusun rabbuna wa rabbul malaikati war ruh-allahumma ajirna minan naar ya mujiro ya mujiro ya mujeer.
हमें उम्मीद है कि आपको ये तमाम दुआएं समझ में आ गई होंगी। अगर आपको कोई और दुआ पूछनी है, तो हमें नीचे कमेंट करके बताएं।
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