घास, फटी बनियान से लेकर टैम्पोन तक...Mensuration Hygiene पर महिलाओं ने तय किया इतना लंबा सफर

आज की जनरेशन की महिलाएं और लड़कियां पीरियड्स में डिस्पोजेबल सैनिटरी पैड, टैम्पून और मेन्स्ट्रुल कप्स का इस्तेमाल करती हैं। लेकिन, क्या आपने कभी अपनी दादी-नानी से पूछा है कि वह पीरियड्स में क्या इस्तेमाल करती थीं। अगर नहीं, तो आइए यहां दादी-नानी से जानते हैं कि उन्होंने अपने पीरियड्स में किस चीज का इस्तेमाल किया है।  
menstrual hygiene in india

Menstrual Hygiene Day 2025: मेंसुरेशन यानी पीरियड्स, इस पर हम जितना आज खुलकर बात कर पाते हैं, उतना कुछ समय पहले तक करना मुश्किल था। एक लंबे समय तक पीरियड्स को शर्म, गंदगी और अपवित्रता से जोड़कर देखा गया है। कुछ लोग तो पीरियड्स को छूआछूत की तरह भी ट्रीट करते थे। ऐसा हम नहीं बिल्कुल भी नहीं कह रहे हैं, बल्कि यह बातें हमने अपनी दादी-नानी से सुनी हैं।

कमाल की बात यह है कि पीरियड्स को टैबू या छिपाकर रखने वाली चीज दशकों पहले नहीं, 21वीं सदी में भी समझा गया है। यही वजह है कि एक लंबे समय तक टीवी पर सैनिटरी नैपकिन की एड में ब्लड का रंग नीला देखने को मिलता था।

पीरियड्स को लेकर हमारे आस-पास और समाज में कई तरह के मिथ्स फैले हुए हैं। इन्हीं मिथ्स और भ्रांतियों की वजह से महिलाओं ने एक लंबे समय तक शर्म और अलगाव झेला है। शिक्षा और जागरुकता की कमी की वजह से आधी से ज्यादा महिलाओं को यह भी नहीं पता था कि पीरियड्स में स्वच्छता बनाकर रखनी होती है या अपना ध्यान भी रखना होता है। लेकिन, समय के साथ जिस तरह से शिक्षा और जागरुकता बढ़ी तो पीरियड्स से जुड़े मिथ्स और भ्रांतियां भी धुंधली पड़नी शुरू हो गईं।

पीरियड्स से जुड़े इन्हीं मिथ्स को दूर करने के लिए दुनियाभर में मेंस्ट्रुल हाइजीन डे सेलिब्रेट किया जाता है। इस मेंस्ट्रुल हाइजीन डे पर हम आपके सामने तीन जनरेशन की महिलाओं की पीरियड्स और पीरियड प्रोडक्ट्स पर राय लेकर आए हैं।

Mensuration Hygiene पर महिलाओं ने तय किया इतना लंबा सफर

traditional sanitary pads

क्या आपने कभी सोचा है कि हम जितनी आसानी से सैनिटरी पैड, टैम्पून या मेंस्ट्रुल कप का इस्तेमाल करते हैं, उसके पीछे कितना लंबा और मुश्किल सफर रहा है। हमारी दादी-नानी ने पीरियड्स में पैड, टैम्पून या कप नहीं, बल्कि घास, राख, फटी बनियान या साड़ी जैसी चीजों का इस्तेमाल किया है। आप अगर यंग जनरेशन गर्ल हैं, तो यह सोचकर शॉक हो रही हैं होंगी कि कोई पीरियड्स में घास-राख या फटी साड़ी या बनियान का कैसे इस्तेमाल कर सकता है, तो बता दें कि यह हम नहीं बल्कि तीन जनरेशन की महिलाओं ने हमारे साथ शेयर किया है।

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  • पीरियड्स और पीरियड प्रोडक्ट्स को लेकर मैंने अपनी नानी सुदेश मल्होत्रा, जो कि 78 साल की हैं तो उनका कहना था कि उन्होंने पूरी जिंदगी टैम्पून या कप तो छोड़िए सैनिटरी पैड का भी इस्तेमाल नहीं किया। यहां तक कि उन्होंने आज तक हाथ में सैनिटरी पैड लेकर भी नहीं देखा है। हालांकि, उन्होंने घास या राख का तो नहीं किया, लेकिन उन्होंने फटी पुरानी साड़ी या बनियान का इस्तेमाल किया है।

  • इसी तरह पीरियड्स और पीरियड प्रोडक्ट्स को लेकर जब अपनी दादी शालिनी टंडन, जो 80 साल की हैं उनसे बात की तो उनका कहना था कि उनकी शादी से पहले कई दोस्त थीं जो आर्थिक तौर पर संपन्न परिवारों से नहीं आती थीं, तो वह भूसी या सूखी घास का इस्तेमाल करती थीं। वहीं, पीरियड्स के दिनों में वह घर में एक कमरे में ही रहती थीं और कुछ तो घर से बाहर बने कमरों या झोपड़ी में भी रहती थीं।

  • सैनिटरी पैड और अन्य पीरियड प्रोडक्ट्स पर जब अपनी मम्मी कोमल टंडन से बात की तो उनकी बातों ने हैरान कर दिया। उनका कहना था कि जब वह स्कूल में थीं, तो उनकी दोस्त हर महीने बुखार की छुट्टी कहकर छुट्टी लेती थी। एक बार सब सहेलियां मिलकर उस दोस्त के घर गईं, तो पता लगा कि स्कूल ड्रेस पर ब्लड स्टेन न आ जाए इसलिए वह हर महीने 3-4 दिन स्कूल से छुट्टी ही ले लेती थी। लेकिन, सैनिटरी पैड का इस्तेमाल नहीं करती थी और अपने पापा की फटी बनियान की कई तय बनाकर ही पीरियड्स में यूज करती थी।

क्या है सैनिटरी पैड का इतिहास?

history of sanitary pads

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो चीन में महिलाएं कपड़े की थैली में रेत लपेटकर पैड की तरह इस्तेमाल करती थीं। वहीं, Flow: The Cultural Story Of Menstruation किताब में ऐसा लिखा है कि अमेरिका में औरतें भैंस की खाल और काई से पैड बनाती थीं। वहीं, भारत में महिलाओं ने भूसा, सूखी घास और कपड़े में रुई की परतें लपेटकर उसे पैड की तरह इस्तेमाल किया है। कई बार तो औरतें इन कपड़ों को फेंकती भी नहीं थीं और धोकर दोबारा इस्तेमाल कर लेती थीं। यह सिर्फ अनहाइजनिक नहीं, बल्कि हेल्थ से खेलने वाला भी था।

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मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो, साल 1890 में पहली बार डिस्पोजेबल पैड बाजार में देखने को मिले थे। हालांकि, यह पहले अजीब और चिपचिपे तरह के होते थे। लेकिन, बदलते समय से सैनिटरी पैड में रूई और फेदर्स का इस्तेमाल होने लगा।

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Image Credit: Freepik and Herzindagi

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