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क्या मेरी टूटी चप्पल मेरा नसीब, मेरी किस्मत को डिफाइन करेगी? शायद अब तक का मेरा सबसे बड़ा प्रोजेक्ट मेरी नाक के नीचे से किसी और को दे दिया गया है। मेहनत मेरी, आइडिया मेरा और नाम किसी और का। बस एक छोटी सी बात के लिए।
आपको याद है ना क्या हुआ मेरे साथ?
मिलिंद सर क्लाइंट्स के साथ मीटिंग रूम में बैठे थे, मैंने कांच के पीछे से झांककर देखा तो अरविंद लैपटाप को घूरते हुए नजर आया।
"इस बेवकूफ को सामने लिखा हुआ भी कुछ समझ नहीं आएगा", मैंने सोचा। ये अच्छी-खासी डील को बर्बाद करने की बात है।
मैं बेबस मीटिंग रूम के बाहर खड़ी थी। किसी और की चप्पल पहनकर चली जाऊं मीटिंग में? शीतल ने शादी के बाद नौकरी छोड़ दी थी और उसके जाने के बाद हमारे फ्लोर पर मेरे अलावा महज दो और लड़कियां स्टाफ में थी। रुक्मणी जी, जो अकाउंट्स में थी, वो मुझसे काफी लंबी थी और लिपिका, वो कहीं दिखाई ही नहीं दे रही थी।
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"सात सौ लोगों में सिर्फ 3 फीमेल स्टाफ! हद है।" वैसे तो कई रोज़ मैं, रुक्मणि और लिपिका इस बात की चर्चा करते हैं, लेकिन आज जब मुझे पर्सनली इस बात ने इफेक्ट किया तो मामला अलग ही लगा।
"लिपिका? कहां है तू?" मैंने फोन मिलाकर लिपिका से पूछा।
"अगर घर से निकली नहीं तो मेरे लिए एक चप्पल ले आना, मेरी चप्पल टूट गई और मेरी प्रेजेंटेशन खतरे में है" इसके साथ मैंने पूरा मामला लिपिका को समझाया।
"तेरा दिमाग खराब है?" लिपिका को बात घुमा-फिराकर करने की आदत नहीं है। "तूने उस प्रोजेक्ट पर इतनी मेहनत की है, आफताब को क्रेडिट कैसे लेने दे सकती है तू? मेरी मान, तू अंदर जा, और अपनी प्रेजेंटेशन दे। बाकी जो होगा देखा जायेगा।"
लिपिका ने ढाढस बंधाया और इसका असर ये हुआ कि मैं अपनी टूटी चप्पल को किक करके, सीधे मीटिंग रूम की ओर बढ़ी।
ठक-ठक
मैंने कांच का दरवाज़ा खटखटाया और अन्दर घुस गई। मिलिंद सर मुझे ऊपर से नीचे तक देख रहे थे, और जब मेरे नंगे पैरों पर उनकी नज़र पड़ी तो जैसे उन्हें मिर्गी का दौरा पड़ गया। गुस्से में वो अपनी कुर्सी से उठ खड़े हुए।
"आरती! व्हाट आर यू डूइंग हियर?"
मैंने मिलिंद सर को नजरअंदाज करके, सीधे क्लाइंट्स की तरफ देखा।
"गुड मॉर्निंग, मेरे नाम आरती अवस्थी है, मै यहां चोपड़ा एंड चोपड़ा में सीनियर डिजाइनर हूं। और मैंने ही आपकी खानदानी हवेली को एक शानदार होटल में तब्दील करने का डिजाइन बनाया है जो कि मुझे विश्वास है आपको पसंद आएगा"
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"अगर ये डिजाइन तुम्हारा है तो इसे ये आदमी क्यों प्रजेंट कर रहा था? आप लोग क्या इस डील को सीरियसली ले रहे हैं? मिस्टर मिलिंद?" बोलने वाला टेबल के आखिर में बैठा एक काफी हैंडसम सा आदमी था। गहरी काली आंखें और काले बालों में एक चमकती सलेटी रंग की पट्टी। किसी मिल्स एंड बून नवल का हीरो लग रहा था ये आदमी। रईसी तो आवाज़ में ही टपक रही थी। अगर आपसे आरती की कहानी की चौथा एपिसोड मिस हो गया हैं तो इस लिंक को क्लिक करके पढ़ें। क्या शादी में पुरानी, रूढ़िवादी सोच बदलने का टाइम आ गया है? - Hello Diary
"नहीं-नहीं मिस्टर गोयनका, आप गलत समझ रहे है। आपकी टीम के साथ सारी प्रिलिमनरी प्रेजेंटेशन में आरती ही बैठी थी। वो तो आज... वो बात ये हुई की... "
"मुझे आपके बहानो में कोई इंट्रेस्ट नहीं, मिस आरती, क्या आप अपनी प्रेजेंटेशन देना चाहेंगी?" शिखर गोयनका सीधे मुझसे बात कर रहे थे।
शहर के जाने माने इंडस्ट्रियलिस्ट, बिज़नेस लीडर, और एलिजिबल बैचलर की लिस्ट में नंबर वन, शिखर गोयनका से मिलने के सपने ना जाने कितनी लड़कियां देखती है पर मैं यहां उनके सामने खड़ी उनसे बातें कर रही होंगी, मुझे नहीं पता था।
"ज़रूर"
मैंने प्रेजेंटेशन शुरू किया, एक-एक डिज़ाइन, एक-एक आइडिया, शेखर गोयनका के सवाल के जवाब, सब कुछ मेरे उंगलियों पर थे। ये सब एक घंटे तक चलता रहा।
मिलिंद सर और आफताब चुपचाप मुझे और मिस्टर गोयनका को देख रहे थे।
"ओके, मिस आरती, मैं आपके डिजाइन से खुश हूं। जो मैंने चेंजेज मांगे है वो आप इंकॉर्पोरेट कर लीजिए। यूं आर गुड। मिलिंद यूं अर लकी टू हैव हर। कांग्रेचुलेशन आरती, डील तुम्हारी हुई। और हां, अब हर मीटिंग मैं तुम होनी चाहिए।"
मिस्टर गोयनका मुझसे हाथ मिला रहे थे, बात करते-करते उनकी नजर मेरे पैरों पर पड़ी। थोड़े से मुस्कुराए और बोले.......
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"मैं सत्रह साल का था और मेरी इन्वेस्टर्स के साथ एक बहुत ज़रूरी मीटिंग थी। रास्ते में मेरी शर्ट पर किसी ने स्याही गिरा दी। शर्ट बदलने का समय नहीं था, मेरे साथ जो लोग थे उन्होंने कहा मीटिंग में ऐसे गए तो गलत इंप्रेशन पड़ेगा। मत जाओ। पता है मैंने क्या किया? शर्ट को उल्टा किया और चला गया मीटिंग में। और पता है प्रेजेंटेशन के अंत में मैंने क्या कहा? मैंने बोला, मैंने अपनी शर्ट उल्टी पहनी है और अगर आप लोगों को इसका एहसास नहीं हुआ तो समझ लीजिए कि मेरा बिजनेस आइडिया कमाल का है। इन्वेस्टर्स को मेरी बात पसंद आयी और रेस्ट इस आल हिस्टरी। समझी मिस आरती?" अगर आपसे आरती की कहानी का पाचवां एपिसोड मिस हो गया हैं तो इस लिंक को क्लिक करके पढ़ें। अपनी ज़िन्दगी जीने का हक क्या सिर्फ लड़के को है? : Hello Diary
मैं बात समझ गई थी।
"ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है", मैंने मुस्कुराकर कहा।
"अल्लामा इक़बाल! वाह! डिजाइन और शायरी दोनों का शौक है? गुड!" ये कहकर शिखर गोयनका बाहर चले गए। उनकी टीम भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ी। कमरे में अब मैं, मिलिंद सर और आफताब बचे थे।
"वाह आरती! तुमने तो..." आफताब मुझे मुबारकबाद दे रहा था कि इतने में...
"आफताब तुम बाहर जाओ" मिलिंद सर ने कड़क होकर कहा।
"आरती," मिलिंद सर ने मुझे सीधे देखते हुए कहा, "आज तुमने मेरी बात काटकर अच्छा नहीं किया। तुम खुद को क्या समझ रही हो?"
"पर सर, डील क्रैक हो गई! ये प्रोजेक्ट में करूंगी।"
"मैं नहीं, हम! चोपड़ा एंड चोपड़ा को मिली है ये डील। तुम यहां की एम्प्लोयी हो, कंपनी नहीं हो तुम। समझ में आया?"
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मिलिंद सर की बात मुझे बिल्कुल अच्छी नहीं लगी। इतनी बड़ी डील मिलने के बाद भी मुझे शाबाशी देने के बजाए मुझे खरी-खोटी सुनाई जा रही थी।
"अब जाओ और काम करो, मुझे पता है कैसे मिलती हैं इन लड़कियों को डील" मिलिंद सर ने मुझे दफा होने का इशारा किया। अगर आपसे आरती की कहानी की शुरुआत मिस हो गई हैं तो इस लिंक को क्लिक करके पढ़ें। शादी के लिए रिजेक्शन का हक क्या सिर्फ लड़के को है? : Hello Diary
आग-बबूला में बाहर तो आ गई, पर अब एक पल भी मुझे इस बकवास कंपनी में काम करने मन नहीं है।
इतनी बेइज्जती के बाद यहां काम करूं? या फिर छोड़ दूं। शिखर गोयनका से भी तो यही सीखा की खुद पर विश्वास रखना ज़रूरी है? या खून का घूंट पीकर ये प्रोजेक्ट ख़त्म कर लूं। इसमें मिस्टर गोयनका के साथ काम करने का मौका मिलेगा। हो सकता है वो ही कोई रास्ता सुझाए। आप बताइए कि मुझे इस बेइज्जती के बाद ये नौकरी करनी चाहिए या नहीं? इस लिंक पर क्लिक करके मुझेे सुझाव दें।
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