फिल्म जुबैदा एक आज़ाद ख्यालों वाली महिला की कहानी है जो अपने जीवन में सच्चे प्यार को महत्व देती है, लेकिन वह उसे पाने में असफल रहती है। यह फिल्म जुबैदा बेगम की जिंदगी पर आधारित है। आज हम आपको जुबैदा की कुछ बहुत खास बातें बताने जा रहे हैं। तो चलिए जानते हैं।
कौन हैं फिल्म के लेखक?
साल 2001 की यह फिल्म पूर्व जर्नलिस्ट और लेखक खालिद मोहम्मद की मां जुबैदा बेगम के जीवन पर आधारित है। इस फिल्म के किरदारों को लोगों ने बहुत पसंद किया। जुबैदा बेगम ने दो शादियां की थी।
उनकी पहली शादी से ख़ालिद नाम का एक बेटा हुआ था। आपको बता दें कि 'जुबैदा' श्याम बेनेगल की ट्रिलॉजी का अंतिम अध्याय है जो 'मम्मो' (1994) से शुरू हुआ और 'सरदारी बेगम' (1996) के साथ जारी रहा।
कैसी थी जुबैदा बेगम की जिंदगी?
1949 में महाराजा हनवंत सिंह को एक समारोह में आई नर्तकी से प्रेम हो गया जिसका नाम था जुबैदा।(जानें क्यों करिश्मा कपूर ने रेखा से डरते-डरते साइन की थी 'जुबैदा') उस समय महाराजा हनवंत की दो शादियां हो चुकी थी और जुबैदा भी तलाकशुदा और एक बच्चे की मां थी। तमाम विरोध के बावजूद महाराजा हनवंत ने जुबैदा से 17 दिसंबर साल 1950 में आर्य समाज मंदिर में शादी की।
जुबैदा ने हिंदू धर्म अपनाया और नया नाम रखा विद्यारानी। इसका विरोध उनके परिवार वालों ने किया और हनवंत सिंह को उम्मेद भवन में जुबैदा के साथ रहने की अनुमति नहीं मिली। ऐसे में वे दोनों मेहरानगढ़ फोर्ट में रहने लगे। इसके बाद इनके एक बेटे का भी जन्म हुआ था।
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कौन थी हनवंत सिंह की पहली पत्नी?
हनवंत सिंह का पहला विवाह साल 1943 में ध्रांगदा की राजकुमारी कृष्णा कुमारी से हुआ। वह जून 1947 में जोधपुर के महाराजा बने। हनवंत सिंह राजे-रजवाड़ों की धरती राजस्थान शाही परिवार से थे और वहीं कृष्णा कुमारी गुजरात की छोटी-सी रियासत की राजकुमारी थी। यह विवाह डेढ़ साल ही चल पाया थी कि हनवंत सिंह ने नर्तक जुबैदा बेगम से शादी कर ली थी।
इसके अलावा यह भी कई इतिहासकारों का कहना है कि साल 1948 में इंग्लैंड की सैंडा मैकायार्ज से हनवंत सिंह ने शादी कर ली थी। लेकिन डेढ़ साल बाद सैंडा इंग्लैंड लौट गई, महाराज उन्होंने मनाने पहुंचे लेकिन वो नहीं लौटी थी।
कैसे हुई जुबैदा बेगम की मृत्यु?
हनवंत सिंह कुशल पायलट थे। वह लंबे चुनाव अभियान के बाद 26 जनवरी को ज़ुबैदा के साथ अपने हवाई जहाज में सैर को निकले लेकिन कुछ समय बाद ही विमान क्रैश हो गया था। महाराजा और जुबैदा दोनों की मौत हो गई। साल 1952 में 28 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पार्टी बनाकर लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ा था लेकिन चुनावों के नतीजे हनवंत सिंह की मृत्यु के बाद आए।
वह लोकसभा और विधानसभा दोनों में विजयी रहे थे। उनकी मौत के कारण दोनों सीटों के लिए उपचुनाव हुए।(अमिताभ बच्चन ने छोड़ी फिल्म और विनोद खन्ना बन गए सुपरस्टार!) अपनी जीत भी ना देख पाने वाले महाराजा हनवंत के अधूरे ख्वाब को उनकी पत्नी कृष्णा कुमारी ने आगे बढ़ाया।
कृष्णा कुमारी ने बड़ी मुश्किल से राजपरिवार को राजमहल में चलने वाले धोखे और प्रतिघात के बीच संभाले रखा लेकिन आज भी इस बात पर लोग संदेह करते हैं कि आखिर कैसे हनवंत सिंह और जुबैदा की मौत अचानक से हो सकती है और किसी ने इसका कारण जानने का पूरा प्रयास नहीं किया।
फिल्म 'जुबैदा' भी है खास
इस फिल्म ने हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता था और फिल्म में लोगों ने करिश्मा के काम की खूब सराहना की थी। आपको बता दें कि उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (क्रिटिक) का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था। क्रिटिक्स ने इसे करिश्मा के करियर की शानदार परफॉर्मेंस में गिना था। इतना ही नहीं, श्याम बेनेगल की भी यह सबसे बेहतरीन फिल्म थी, जो कमर्शियल और पैरलल सिनेमा के करीब कहा गया था।
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