आज के समय में महिला सशक्तिकरण पर काफी जोर दिया जा रहा है। महिलाओं के हक को लेकर लोग सचेत हुए हैं और अब उन्हें भी समान अवसर दिए जाने लगे हैं। वहीं दूसरी ओर, महिलाओं ने भी अपने हुनर व काबिलियत का परिचय पूरे विश्व के सामने रखा है। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक इस बात का इतिहास गवाह है कि महिलाएं समाज में किसी ना किसी स्तर पर अपना पूर्ण योगदान देती आई हैं। साथ ही, आजादी की लड़ाई महिलाओं ने नीति-निर्माण में अहम भूमिका अदा की है।
जब हम भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों की बात करते हैं, तो ज्यादातर लोगों के दिमाग में महापुरुषों के नाम जैसे महात्मा, नेहरू आदि के नाम आते हैं। लेकिन बहुत कम लोग होंगे जिन्हें यह मालूम होगा कि इन पुरषों के अलावा कुछ महिलाएं ऐसी भी थी जिनका नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है, जिन्होंने भारत को आजादी दिलाने में अपनी एक अहम भूमिका अदा की है। अपने यकीनन रानी लक्ष्मीबाई के बारे में सुना होगा लेकिन आज हम आपको रानी अब्बक्का के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने पुर्तगालियों को हराकर एक मिसाल कायम की थी।
आखिर कौन हैं रानी अब्बक्का?
आप यकीनन रानी शब्द से वाकिफ होंगे और शायद आपने कई रानियों की कहानियां भी पढ़ी होंगी। लेकिन क्या आपको रानी अब्बक्का के बारे में पता है? अगर नहीं तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि रानी अब्बक्का तुलु नाडू (तटीय कर्नाटक) की रानी थीं, जिन्हें अब्बक्का महादेवी, रानी अब्बक्का चौटा के नाम से भी जाना जाता है। इनका जन्म उल्लाल के एक चौटा राजघराने में हुआ था।
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मातृवंशीय परंपरा के अधीन बनीं रानी
वह एक मातृवंशीय परंपरा का पालन करने वाले वंश से ताल्लुक रखता थीं। बता दें कि मातृवंशीय परंपरा प्राचीन समय की एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है, जहां पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को प्राथमिकता दी जाती थी। इसके तरह अब्बक्का के तिरुमला राय ने रानी अब्बक्का को उल्लाल नगर की रानी का ओहदा सौंपा था। इस दौरान रानी अब्बक्का ने समाज के नीति-निर्माण में अपनी एक अहम भूमिका अदा की है। (मुगल साम्राज्य की इन शक्तिशाली महिलाओं के बारे में कितना जानते हैं आप?)
पुर्तगालियों को किया पराजित
इतिहास के अनुसार 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों के साथ युद्ध किया और रानी ने अपनी चतुर रणनीति बनाकर उन्हें पराजय कर दिया। बता दें कि इस समय पुर्तगालियों ने गोवा पर आक्रमण कर उसपर अपना अधिग्रहण जमा लिया था। इसके बाद पुर्तगाली वहां के हिन्दू निवासियों पर अत्याचार किया करते थे। उसके बाद पुर्तगालियों ने मंगलौर यानि उल्लाल पर कब्जा किया और मंगलौर बंदरगाह को नष्ट कर दिया। यह रानी को कतई रास नहीं आया और उन्होंने पुर्तगालियों को हरा दिया।
रानी अब्बक्का को मिली 'अभय रानी' की उपाधि
यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि मंगलौर उर्फ उल्लाल की रानी रानी अब्बक्का को पहली भारतीय स्वतंत्रता सेनानी कहा जाता है। क्योंकि पुर्तगालियों ने उल्लाल शहर और वहां रहने वाले सभी लोगों को लगभग 4 साल परेशान किया लेकिन अंत में रानी उन्हें भगाने में कामयाब रहीं। उनका योगदान और साहस को भारत कभी नहीं भूल पाएगा। लेकिन आज उनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं दब गया है।
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उल्लाल नगर में आज भी किया जाता है याद
भले ही भारत उनके योगदान को भूल गया हो लेकिन आज भी उनके शहर मंगलौर यानि उल्लाल में उनके बलिदान को याद किया जाता है। हर वर्ष उनकी याद में वीर रानी अब्बक्का के नाम से उत्सव मनाया जाता है। साथ ही, यहां महिलाओं को रानी अब्बक्का के नाम से भी पुरस्कार भी दिया जाता है। इसके अलावा, यहां रानी के नाम से एक पत्थर की मूर्ति भी स्थापित की गई है।
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