भारत को अगर मंदिरों और देवी-देवताओं का स्थान कहा जाए तो गलत नहीं होगा। यहां उत्तर से लेकर दक्षिण तक अलग-अलग भगवानों के मंदिर मौजूद हैं और उनमें अलग तरह से पूजा की जाती है। लेकिन उत्तर और दक्षिण के मंदिरों की एक ख़ास बात उनकी अलग संरचना भी है।
आप में से ज्यादातर लोगों ने ये ध्यान जरूर दिया होगा कि उत्तर और दक्षिण के मंदिर दिखने में अलग तरह के होते हैं और उनकी संरचना कुछ विशेष होती है। हम मंदिरों के देखते ही समझ जाते हैं कि ये उत्तर भारत का मंदिर है या दक्षिण भारत का। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन मंदिरों की संरचना में इतना अंतर क्यों होता है और कैसे ये एक-दूसरे से अलग होते हैं।
भारतीय मंदिर की वास्तुकला की प्रमुख शैलियां
हमारे देश में मंदिर वास्तुकला की दो प्रमुख शैलियों का चलन है। इसमें उत्तर भारत के मंदिरों में नागर और दक्षिण भारत में द्रविड़ियन शैली प्रचलित है। वहीं तीसरी शैली, वेसर शैली, नागर और द्रविड़ शैली की वास्तुकला का मिश्रण है। आमतौर पर भारत के मंदिरों की संरचना में इन्हीं शैलियों का इस्तेमाल होता है जो दिखने में एक दूसरे से अलग होती हैं।
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उत्तर भारत मंदिरों की संरचना
यदि हम उत्तर भारत के मंदिरों की बात करें तो ये मंदिर नागर शैली में बने होते हैं जिनकी ऊंचाई धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। ये कम वृद्धि वाले गेट से शुरू होती है और अभयारण्य वाले ऊंचे टावर की ओर बढ़ती है।
आमतौर पर उत्तर भारत के सभी मंदिरों की संरचना इसी शैली का अनुसरण करती है। उत्तर भारत में नागर शैली में बने मंदिरों के गर्भगृह के ऊपर एक रेखीय शिखर होता है। मंदिर का शिखर उत्तरी भारत के मंदिरों की मुख्य पहचान है।
नागर शैली में शिखर अपनी ऊंचाई के क्रम में ऊपर की ओर पतला होता जाता है। इन मंदिरों में मंदिर में सभा भवन और प्रदक्षिणा-पथ भी होता है जो भक्तों की परिक्रमा का क्षेत्र होता है।
दक्षिण भारतीय मंदिरों की संरचना
दक्षिण भारत में अधिकांश मंदिर गोपुरम अत्यधिक अलंकृत होते हैं और आकृतियों से भरे हुए होते हैं। दक्षिण भारत के ज्यादातर मंदिर द्रविड़ शैली से बने होते हैं। इस शैली से बने मंदिर की मूल आकृतियां पांच प्रकार की होती हैं जिसमें वर्गाकार, आयताकार, अंडाकार, वृत्त और अष्टास्र शामिल हैं। इनमें से वर्गाकार को आमतौर पर कूट और चतुरस्त्र भी कहा जाता है। आयताकार को आयत्रस्त्र कहा जाता है अंडाकार को गजपृष्ठीय कहते हैं। आमतौर इस शैली के मंदिरों संरचना उसमें विराजमान देवी-देवताओं के मूर्तरूप के अनुसार होती है।
नागर शैली किन मंदिरों में मौजूद है
नागर’ शब्द नगर से बना है। यह संरचनात्मक मंदिर स्थापत्य की एक शैली है जो प्राचीन काल में हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत तक के क्षेत्रों में प्रचलित थी। इसे 8वीं से 13वीं शताब्दी के बीच उत्तर भारत में मौजूद शासक वंशों ने बनवाया था। नागर शैली की पहचान मुख्य रूप से समतल छत से उठती हुई शिखर की संरचना तक होती है। उत्तर भारत के लगभग सभी मंदिर इसी शैली में बने हैं। इस शैली के मंदिरों में खजुराहो के मंदिर, पुरी का जगन्नाथ मंदिर और मोढेरा सूर्य मंदिर शामिल हैं।
द्रविड़ शैली किन मंदिरों में मौजूद है
कृष्णा नदी से लेकर कन्याकुमारी तक ज्यादातर मंदिर द्रविड़ शैली के हैं। इस शैली में मंदिरों की स्थापना 8वीं शताब्दी में हुई और सुदूर दक्षिण भारत में इसकी दीर्घजीविता 18वीं शताब्दी तक रही।
द्रविड़ शैली की पहचान चहारदीवारी, प्रवेश द्वार, वर्गाकार या अष्टकोणीय गर्भगृह, पिरामिडनुमा शिखर, मंडप, विशाल संकेन्द्रित प्रांगण तथा अष्टकोण मंदिर संरचना होती हैं। पल्लव वंश के लोगों ने द्रविड़ शैली को जन्म दिया। इस शैली के प्रमुख मंदिर मदुरै का मीनाक्षी मंदिर, तमिलनाडु का रामेश्वरम मंदिर शामिल हैं। दक्षिण भारत के सभी मंदिरों की संरचना इसी शैली में है और इन्हों मंदिरों से मिलती-जुलती है।
दरअसल, उत्तर भारत और दक्षिण भारत के मंदिरों के बीच मुख्य अंतर उनकी संरचना ही है और ये अपनी अलग शैलियों की वजह से एक-दूसरे से अलग दिखते हैं।
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