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नमाज और कलमा में क्या होता है अंतर? जानिए मुसलमान इन्हें क्यों और कब पढ़ते हैं

इस्लाम धर्म में नमाज और कलमा का बहुत महत्व है, लेकिन क्या आपको दोनों के बीच का फर्क पता है? 
Editorial
Updated:- 2025-04-25, 13:20 IST

बीते सोमवार को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस टेरर अटैक में निर्दोष पर्यटकों की अपनी जान गंवानी पड़ी और उनका कसूर केवल इतना था कि वह हिंदू थे। आतंकियों ने कुछ पर्यटकों से कलमा पढ़ने को कहा और जो लोग ऐसा नहीं कर पाए उन्हें सरेआम गोली से उड़ा दिया। उस समय असम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य ने अपनी जान कलमा पढ़कर बचाई। इस आतंकी घटना के बाद सभी के मन में सवाल है कि आखिर इस्लाम में कलमा क्या है और इसकी अहमियत क्या है, कलमा और नमाज में कितना फर्क है और दोनों को कब पढ़ा जाता है?

नमाज और कलमा(Kalma And Namaz Meaning)

आमतौर पर इस्लाम में कलमा और नमाज दोनों का अपना अलग-अलग महत्व है। कलमा हमें बताता है कि हमारा ईमान किस पर है और नमाज हमें सिखाती है कि उस ईमान पर चलना कैसे है। 

कलमा क्या है?(What is Kalma)

कलमा का मतलब होता है कि घोषणा करना। यह बताता है कि इंसान अल्लाह पर भरोसा रखता है और पैगंबर मुहम्मद को उसका सच्चा भेजा हुआ रसूल मानता है। इस्लाम की नींव कलमा-ए-तैय्यब से ही रखी जाती है। जब कोई इस्लाम को कुबूल करता है, तो कलमा पढ़ना पड़ता है। कलमा एक मुसलमान की आस्था, समर्पण और पहचान का प्रतीक है। 

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कलमा के प्रकार(Different Types Of Kalmas)

Namaz vs Kalma in Islam

इस्लाम में 6 तरह के कलमा बताए जाते हैं। ये कलमा कुरान की विभिन्न आयतों और पैगंबर मुहम्मद की बातों से लिए गए हैं। आमतौर पर मदरसों में बच्चों को प्रारंभिक धार्मिक शिक्षा के रूप में पढ़ाया जाता है।

कलमा तय्यब (पवित्रता)

इस्लाम में पहला कलमा तय्यब के नाम से जाना जाता है और यह घोषणा करता है कि अल्लाह के अलावा कोई सच्चा ईश्वर नहीं है और पैगंबर मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं। 

कलमा शहादत (गवाही)

इस्लाम में दूसरा कलमा विश्वास और स्वीकृति को दर्शाता है। यह घोषणा करता है कि अल्लाह के सिवा कोई मबूद नहीं, वो अकेला है और उसका कोई शरीक नहीं और मैं गवाही देता हूं कि हज़रत मुहम्मद सलल्लाहो अलैहि वसल्लम अल्लाह के नेक बन्दे और आखिरी रसूल है।

कलमा तमजीद (महिमा)

यह कलमा अल्लाह की महिमा का वर्णन करता है। यह घोषणा करता है कि अल्लाह की महिमा है और तमाम तारीफें अल्लाह ही के लिए हैं। अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और अल्लाह सबसे बड़ा है। अल्लाह के अलावा कोई शक्ति और कोई ताकत नहीं है।

कलमा तौहीद (एकता)

यह कलमा अल्लाह की एकता में विश्वास को मजबूत करता है। यह घोषणा करता है कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, वह एक है और उसका कोई साझीदार नहीं, सबकुछ उसी का है और सारी तारीफें उसके लिए ही हैं। वही जिंदा करता है और वही मारता है। अल्लाह मौत से पाक है। अल्लाह के हाथ में हर तरह की भलाई है और वह हर चीज पर कादिर है। 

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कलमा इस्तगफर (क्षमा मांगना)

यह कलमा अल्लाह से क्षमा मांगता है और अपने गलत काम को लेकर पश्चाताप करता है। यह याद दिलाता है कि अल्लाह से अपने तमाम गुनाहों की माफी मांगना है, जो जान-बूझकर, भूल-चूक में किए हैं। निश्चित रूप से, अल्लाह छिपे हुए रहस्यों को जानने वाले, गलतियों को छिपाने वाले और पापों को माफ करने वाले हैं। अल्लाह के अलावा कोई शक्ति या ताकत नहीं है, जो बहुत बुलंदी वाला हो। 

कलमा रद्द-ए-कुफ्र (अविश्वास को त्यागना)

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यह कलमा अल्लाह के प्रति अविश्वास को त्याग देता है और पूरी तरह से उनके सामने समर्पित हो जाता है। यह घोषणा करता है कि ऐ अल्लाह! मैं तेरी पनाह मांगता हूं, इस बात से कि मैं जान-बूझकर किसी को तेरा साझीदार बनाऊं। मैं उस गुनाह की माफी मांगता हूं, जिसका मुझे इल्म नहीं। मैं उससे तौबा करता हूं और कुफ्र और बुतपरस्ती, झूठ और चुगली, बदचलनी, घिनौना काम और हर तरह की नाफरमानी से नाखुश होकर मैं तेरी रजा के आगे झुक जाता हूं। 

कलमा कब पढ़ा जाता है?(Method of Performing Kalma)

कलमा पढ़ने का कोई समय नहीं होता है,लेकिन मुसलमान नमाज के बाद कलमा बार-बार दोहराते हैं। 

कलमा से नमाज कितनी अलग है?(Key Differences Between Namaz and Kalma)

नमाज मुसलमानों के लिए दिल और रूह की आवाज है। यह अल्लाह से दुआ मांगने, उनकी तारीफ करने और अपने गुनाहों की माफी मांगने का सबसे पाक तरीका है। नमाज इस्लाम के 4 बुनियादों स्तंभों में से एक है। दिन में पांच बार नमाज पढ़ी जाती है। नमाज में कुरान की आयतों को पढ़ा जाता है। नमाज खड़े होकर, झुककर, सिर झुकाकर और बैठकर पढ़ी जाती है।

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