
हिंदू धर्म में देवता और राक्षसों की कहानी अक्सर हमने किताबों में पढ़ा है। साथ ही इनका वर्णन हमारे पुराणों में भी होता है, लेकिन कई सारे राक्षस गण ऐसे हैं, जिन्हें भय को दूर करने के लिए पूजा जाता है। भैरवनाथ और काल भैरव की पूजा भी होती है। देश में कई सारी जगहें ऐसी हैं जहां पर इनके मंदिर स्थित हैं। ऐसा कहा जाता है कि इनके दर्शन के बिना आपकी यात्रा पूरी नहीं मानी जाएगी, लेकिन दोनों की पूजा का अर्थ और इसका महत्व अलग है। ऐसा इसलिए क्योंकि काल भैरव और भैरवनाथ दोनों में अंतर होता है? आइए आर्टिकल में आपको विस्तार से बताते हैं कि इनमें क्या अंतर है। साथ ही इनकी उत्पत्ति कैसे हुई?
काल भैरव, भगवान शिव के उन रूपों में से एक हैं जो समय (काल) और मृत्यु के स्वामी कहलाते हैं। काल का अर्थ है समय और भैरव का अर्थ है भय का नाश करने वाला। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने अहंकार में आकर स्वयं को सृष्टि का सर्वोच्च कहा, तब भगवान शिव ने अपने क्रोध से काल भैरव को उत्पन्न किया था। उन्होंने ब्रह्मा जी का एक सिर काटकर उन्हें अहंकार से मुक्त किया। इसलिए काल भैरव को दंडनायक, धर्मपालक, और काशी के रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है। उनका वाहन काला कुत्ता (श्वान) होता है, जो वफादारी और सतर्कता का प्रतीक है। ऐसा कहा जाता है कि काशी विश्वनाथ के दर्शन से पहले अगर आप काल भैरव के दर्शन नहीं करते हैं, तो आपकी यात्रा पूरी नहीं होती है। साथ ही आप भगवान शिव के विश्वनाथ रूप के दर्शन नहीं कर पाते हैं।

भैरवनाथ को भी भगवान शिव का ही स्वरूप माना जाता है, लेकिन उनका चरित्र भक्ति और शिक्षा से अधिक जुड़ा है। कथाओं के अनुसार, भैरवनाथ माता वैष्णो देवी के भक्त थे, परंतु अहंकारवश उन्होंने माता की शक्ति को परखने की भूल की। माता वैष्णो देवी ने अपने रक्षक भैरव बाबा का अंत किया, लेकिन फिर उन्हें क्षमा करके आशीर्वाद दिया कि उनके दर्शन के बिना किसी की यात्रा पूर्ण नहीं होगी। इसलिए जब भी लोग माता वैष्णों देवी के दर्शन के लिए जाता है, तो भैरव बाबा के दर्शन जरूर करता है। इसके बिना आपकी यात्रा अधूरी मानी जाती है। साथ ही आपके भी सही से पूरे नहीं होते हैं।

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जहां काल भैरव भय, अनुशासन और धर्म की रक्षा का प्रतीक हैं, वहीं भैरवनाथ भक्ति और अहंकार पर विजय का संदेश देता है। दोनों ही रूप हमें यह सिखाते हैं कि अहंकार का अंत निश्चित है, और सच्ची भक्ति ही मोक्ष का मार्ग है। इसलिए दोनों की उपासना से व्यक्ति को शक्ति, सुरक्षा और आध्यात्मिक संतुलन जैसी चीजों को सीखना चाहिए।
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Image Credit- herzindagi
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