भारत में अलग-अलग भाषाओं में किताबें लिखी जाती हैं। हर साल हजारों की संख्या में किताबें पब्लिश होती हैं, जिन पर पाठकों की अपनी प्रतिक्रिया होती है। लेकिन कई बार लेखक कुछ ऐसा लिख जाते हैं, जिसके बाद भारी विवाद हो जाता है। भारत में ऐसा कई बार हुआ है कि किसी किताब के आने के बाद लेखक के खिलाफ लोगों का गुस्सा उमड़ पड़ा हो। ऐसे में इस तरह की विवादित किताबों पर सरकार बैन लगा देती है।
आज के इस आर्टिकल में हम आपको उन किताबों के बारे में बताएंगे जो किताबें हमारे देश में पूरी तरह से बैन हैं। ना आप इन किताबों को खरीद सकते हैं और ना ही इन्हें बेच सकते हैं। आइए जानते हैं कि इस लिस्ट में कौन-कौन सी किताबें शामिल हैं और उनके लेखकों के नाम क्या हैं।
द सतैनिक वर्सेस, सलमान रश्दी -
सलमान रश्दी दुनिया के सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक हैं। द सतैनिक वर्सेस उनकी चौथी पुस्तक है, जिसे भारत में बैन कर दिया गया था। आपको बता दें कि भारत में विवादित होने के बावजूद भी इस किताब को यूके में बहुत सराहा गया है, इसके अलावा इस किताब को बुकर प्राइज के लिए नॉमिनेट भी किया गया था।
1988 में इस किताब को 'व्हिटब्रेड नॉवल ऑफ द ईयर' पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। यह किताब किसी धर्मगुरु पर लिखी गई है, जिस कारण एक धर्म विशेष ने इसका जमकर विरोध किया। भारत के अलावा सलमान रश्दी की यह पुस्तक कई इस्लामिक देशों में भी बैन की गई है।
द फेस ऑफ मदर इंडिया, कैथरीन मेयो -
यह किताब भारत में आजादी के संघर्ष के दौरान एक अंग्रेज ने लिखी थी। इस किताब के विरोध का मुख्य कारण यह है कि कैथरीन मेयो ने किताब में भारत के खिलाफ कई आपत्तिजनक बातें लिखी हैं। कैथरीन ने किताब में भारत की संस्कृति और यहां के पुरुषों कमजोर लिखा है।
इसके अलावा ब्रिटेन की नजर से भारत को खुद के शासन के लिए अयोग्य और पिछड़ा हुआ बताया है। जिस कारण यह किताब भारत में पूरी तरह से बैन है, इसके अलावा आप इस किताब को किसी और देश से भी इम्पोर्ट नहीं करा सकते। हालांकि अंग्रेजों के समय में कई ब्रिटेन के कई लेखकों ने अपने लेखन से भारत को पिछड़ा हुआ दिखाने की कोशिश करी है।
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द रामायण ऐज टोल्ड बाई ऑब्रे मेनन -
ऑब्रे मेनन भारत के प्रसिद्ध लेखकों में से एक माने जाते हैं पर 1954 में आई उनकी पुस्तक 'द रामायण ऐज टोल्ड बाई ऑब्रे मेनन' को क्रिटिसिजम का सामना करना पड़ा। इस किताब में रामायण का उपहास उड़ाया गया है। लेखक ने रामायण के पात्रों पर सटायर लिखे थे, इसके अलावा किताब में कई बार भगवान राम का भी मजाक बनाया गया था।
1956 तक जब यह किताब आम लोगों के बीच में पहुंची तो इसपर जमकर विरोध हुआ, जिसके चलते इस किताब को भारत में बैन कर दिया गया।
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जिन्ना: इंडिया-पार्टिशन-इंडेपेंडेंस, जसवंत सिंह -
2009 में पब्लिश हुई किताब 'जिन्ना: इंडिया-पार्टिशन-इंडेपेंडेंस' को भारत में तुरंत बैन कर दिया गया। इस किताब में जसवंत सिंह ने विभाजन के लिए पंडित जवाहारलाल नेहरू और सरदार पटेल को जिम्मेदार ठहराया है, वहीं जिन्ना को किताब में हीरो की तरह दिखाने की कोशिश की है। जिन्ना को इस तरह से ग्लोरीफाई करने के कारण इस किताब को तत्कालीन सरकार ने तुरंत बैन करवा दिया। आज भी इस किताब के पढ़े जाने पर बैन लगा हुआ है।
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द पॉलिएस्टर प्रिंस, हमीश मैक्डॉन्डल -
1998 में छपी यह किताब धीरूभाई अंबानी की बायोग्राफी थी। इस किताब को फेमस ऑस्ट्रेलियन जर्नलिस्ट हमीश मैक्डॉन्डल ने लिखा था। जिसमें हमीश ने यह दावा किया था कि यह किताब लिखने से पहले उन्होंने अंबानी के सभी करीबी नेताओं से इंटरव्यू लिए थे।
इस किताब में अंबानी के सरकार में प्रभाव को बताने की कोशिश की गई है। जिस कारण अंबानी परिवार की इमेज खराब करने के इल्जाम में इस किताब को बैन कर दिया गया।
इन किताबों के अलावा भी कई और अन्य किताबें हैं जो भारत में बैन की गई हैं। इनमें 'तस्लीमा नसरीन' की लज्जा, राम स्वरूप की 'अंडरस्टैंडिंग इस्लाम थ्रो हदीस', वेंडी डोनिगर की 'द हिंदूज एन अल्टरनेटिव हिस्ट्री' और डी एच लॉरेंस की लेडी चैटर्लीज़ लवर जैसी पुस्तकें शामिल हैं। आपको हमारा यह आर्टिकल अगर पसंद आया हो तो इसे लाइक और शेयर करें साथ ही ऐसी जानकारियों के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी के साथ।