औरंगजेब ने की थी इस शक्तिपीठ को तोड़ने की कोशिश, फिर हुआ कुछ ऐसा मंदिर के दर पर मुगल बादशाह को टेकने पड़े घुटने

ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसे कई मंदिर हैं जिन्हें तोड़ने या नष्ट करने की कोशिश की गई है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि औरंगजेब किस शक्तिपीठ को तोड़ने में असफल रहा था और क्यों मुगल बादशाह को मंदिर के दर पर घुटने टेकने पड़े थे।
Aurangzeb failed to destory Jeen mata mandir
Aurangzeb failed to destory Jeen mata mandir

भारत का इतिहास में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जिनके बारे में आज सुनकर हैरानी होती है। हमारे देश पर एक नहीं, कई शासकों ने सदियों तक राज किया है। इन्हीं में मुगल भी शामिल रहे हैं। मुगलों ने लगभग 300 सालों तक, भारत पर शासन किया था। लेकिन, सबसे क्रूर मुगल बादशाह की बात जब भी आती है तब लोगों की जुबां पर औरंगजेब का नाम आ जाता है। हाल ही में रिलीज हुई छावा फिल्म में औरंगजेब की क्रूरता की झलक देखने को मिली थी। जिसके बाद से औरंगजेब से जुड़े किस्से और कहानियां चर्चाओं का हिस्सा बन गए हैं। आज हम भी यहां औरंगजेब से जुड़ा एक किस्सा लेकर आए हैं, जिसमें मुगल बादशाह ने एक शक्तिपीठ को तोड़ने की कोशिश की थी।

इतिहास की एक कहानी प्रचलित है जिसमें ऐसा कहा जाता है कि मुगल बादशाह औरंगजेब ने राजस्थान के सीकर जिले में स्थित प्राचीन जीण माता जी मंदिर को तोड़ने का प्रयास किया था। यह मंदिर शक्तिपीठों में शामिल है और अरावली पर्वत श्रृंखला की तीन पहाड़ियों के बीच बना है। लेकिन, औरंगजेब माता के मंदिर को तोड़ने में नाकामयाब रहा था। प्रचलित कथाओं में ऐसा भी कहा जाता है कि औरंगजेब ने माता का चमत्कार देखकर मंदिर के दर पर आकर माफी भी मांगी थी। आइए, यहां जानते हैं कि यह कथा और कहानी क्या है।

औरंगजेब ने की थी शक्तिपीठ मंदिर तोड़ने की कोशिश

aurangzeb tried to demolish jeen mata mandir

राजस्थान के सीकर जिले में स्थित जीण माता जी मंदिर के पुजारियों और पब्लिक डोमेन में मौजूद जानकारी के मुताबिक, औरंगजेब ने माता के चमत्कार के आगे अपने घुटने टेक दिए थे। प्रचलित कथाओं के मुताबिक, औरंगजेब की सेना शेखावटी के मंदिरों को जब तोड़ना शुरू किया था तो लोगों ने परेशान होकर जीण माता से गुहार लगाई थी। ऐसा कहा जाता है कि जीण माता ने अपने भक्तों की गुहार सुनी और जब औरंगजेब की सेना शक्तिपीठ तोड़ने आई तो उनपर मधुमक्खियों का हमला हो गया। मधुमक्खियों ने औरंगजेब की सेना के सैनिकों को बुरी तरह से लहूलुहान कर दिया जिसके बाद वह वापस लौट गए।

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कथाओं और जानकारी के मुताबिक, औरंगजेब को जब यह बात पता लगी तो उसने जीण माता से माफी मांगी। इतना ही नहीं, औरंगजेब ने माता के मंदिर में चांदी का छत्र चढ़ाया था और अखंड ज्योत के लिए मुगल दरबार से तेल भेजने का वादा भी किया था। जीण माता जी के मंदिर में यह ज्योत आज भी जल रही है। प्रचलित कथा की वजह से जीण माता जी के मंदिर को भंवरों (मधुमक्खियों) की देवी भी कहा जाता है।

मंदिर में हैं औरंगजेब की सेना के ढोल-नगाड़े

Mughal emperor Aurangzeb

औरंगजेब के लश्कर में आगे चलने वाले ढोल-नगाड़े आज भी इस मंदिर में मौजूद हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब औरंगजेब जीण माता के मंदिर में नतमस्तक होकर गया तो उसने अपनी सेना के आगे चल रहे ढोल-नगाड़ों को भी माता के मंदिर के लिए छोड़ दिया था। कहा तो यह भी जाता है कि औरंगजेब ने देवी के मंदिर की सेवा के लिए एक सैनिक परिवार को भी यहीं छोड़ दिया था और आज भी इस परिवार के वंशज मंदिर की सेवा करते हैं।

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क्या है जीण माता मंदिर का इतिहास?

जीण माता जी मंदिर के निर्माण की तारीख किसी को भी नहीं पता है, इसे हजारों साल पुराना माना जाता है। मान्यता है कि मंदिर आज जिस स्टाइल में बना हुआ है, उसे पांडवों ने बनवाया था। इसके बाद मंदिर को कई बार दोबारा बनवाया जा चुका है।

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Image Credit: Herzindagi.Com

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