हिंदू धर्म में हर एक पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। किसी भी महीने में एक बार पूर्णिमा तिथि होती है और पूरे साल में 12 तिथियां होती हैं। हर एक महीने की पूर्णिमा का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि किसी भी महीने में इस तिथि को किया गया पूजन विशेष रूप से फलदायी होता है।
इन्हीं पूर्णिमा तिथियों में से आश्विन महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व बताया गया है। इसे कोजारी पूर्णिमा, आश्विन पूर्णिमा और शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को आश्विन पूर्णिमा कहा जाता है।
इसे लोग रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा तिथि के दिन यदि लोग विशेष रूप से पूजन और कथा का पाठ करते हैं तो उन्हें कई समस्याओं से मुक्ति मिलती है। आइए ज्योतिर्विद पं रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें जानें आश्विन पूर्णिमा की कथा और इसके महत्व के बारे में।
आश्विन पूर्णिमा की तिथि
इस साल आश्विन महीने की पूर्णिमा तिथि 9 अक्टूबर को पड़ेगी।
पूर्णिमा तिथि आरंभ - 9 अक्टूबर, प्रातः 03:44:06 से
पूर्णिमा तिथि समापन -10 अक्टूबर, दोपहर 02:26:43 तक
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आश्विन पूर्णिमा का महत्व
ज्योतिष के अनुसार पूरे साल में पड़ने वाली सिर्फ यही एक ऐसी पूर्णिमा तिथि होती है जिसमें चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से युक्त होता है। इसे शरद पूर्णिमा भी कहा जाता है और इस दिन चंद्रमा की रोशनी कई गुणों से युक्त होती है।
अश्विन पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा की किरणों से अमृत बरसता है और इसका अमृत पान व्यक्ति को रोगों से मुक्ति दिलाता है। इसी वजह से लोग इस दिन चंद्रमा की रोशनी में खीर रखते हैं और इसमें चंद्रमा की किरणे पड़ने पर खीर अमृत के सामान बन जाती है।
इस दिन के व्रत को आश्विन पूर्णिमा व्रत के साथ कोजागर व्रत और कौमुदी व्रत भी माना जाता है। इस दिन एक व्रत कथा का पाठ समस्त पापों से मुक्ति के द्वार खोलता है।
आश्विन पूर्णिमा व्रत कथा
आश्विन पूर्णिमा की एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक साहूकार था उसकी की दो बेटियां महीने में आने वाली प्रत्येक पूर्णिमा तिथि को व्रत किया करती थीं। इन दोनों बेटियों में बड़ी बेटी हर पूर्णिमा का व्रत पूरे विधि-विधान से करती थी, लेकिन छोटी बेटी व्रत के सभी नियमों का ठीक से पालन नहीं करती थी।
साहूकार की दोनों बेटियां धीरे -धीरे बड़ी होने लगीं और उनका विवाह हो गया। बड़ी बेटी के घर एक सही समय पर स्वस्थ संतान का जन्म हुआ। छोटी बेटी को भी संतान हुई लेकिन, उसकी बेटी की संतान होने के तुरंत बाद ही उसकी मृत्यु ही जाती थी। जब छोटी बेटी के साथ ऐसा दो से तीन बार हो गया तो उसने एक ब्राह्मण को बुलाकर अपनी पूरी व्यथा सुनाई और इसका उपाय बताने के लिए भी कहा।
उसकी सारी बात सुनकर और कुछ प्रश्न पूछने के बाद ब्राह्मण ने उससे कहा कि तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो, इस कारण तुम्हे व्रत का पूरा फल नहीं मिल रहा है और तुम्हें अधूरे व्रत का दोष लग रहा है। ब्राह्मण की बात सुनकर छोटी बेटी ने पूर्णिमा व्रत पूरे विधि-विधान से करने का निश्चय किया।
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आश्विन पूर्णिमा आने से पहले ही साहूकार की छोटी बेटी ने एक बेटे को जन्म दिया लेकिन उसकी तुरंत मृत्यु हो गई। इस पर उसने अपने बेटे शव को एक चौकी पर रखकर उसे कपड़े से ढक दिया। जैसे ही बड़ी बहन उस चौकी पर बैठी और मरे हुए बच्चे पर उसका स्पर्श हुआ वो जीवित होकर रोने लगा। तब बड़ी बहन क्रोधित होकर बोलने लगी कि उस पर अभी हत्या का कलंक लग जाता।
इस पर छोटी बहन ने उत्तर दिया, यह बच्चा मरा हुआ ही था लेकिन आपके व्रत और तप के प्रभाव से आपके भीतर के तेज ने उसे जीवित कर दिया। छोटी बहन को अपनी गलतियों का एहसास हो गया और उसने बड़ी बहन की ही तरह विधि के साथ पूर्णिमा का व्रत आरंभ कर दिया।
चूंकि उस दिन आश्विन महीने की पूर्णिमा तिथि थी इसीलिए इस कथा का पाठ विशेष रूप से फलदायी माना जाने लगा। ऐसा माना जाता है कि जिस प्रकार मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु ने साहूकार की बेटी की कामना पूर्ण कर उसके जीवन को सौभाग्य से भर दिया वैसे ही हम पर भी कृपा करें।
जो व्यक्ति पूरे विधि विधान के साथ आश्विन पूर्णिमा में व्रत और उपवास करने के साथ यहां बताई कथा का पाठ करता है, उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर जरूर शेयर करें और इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिंदगी के साथ।
Image Credit: unsplash.com
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