ओडिशा प्राचीन मंदिरों और रंगीन त्योहारों की भूमि है, जो अपनी समृद्ध संस्कृति, परंपरा और विरासत के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है। ओडिशा की खूबसूरती देखने दूर-दूर से पर्यटक यहां आते हैं और इसकी खूबसूरती का बखान पूरे देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक भी किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं ओडिशा में एक ऐसा त्यौहार मनाया जाता है जिसमें लड़कियों के मासिक धर्म या पीरियड्स शुरू होने का जश्न मनाया जाता है। वहां के लोग नारीत्व को ईश्वर का आशीर्वाद मानकर त्यौहार की तरह मनाते हैं। इस त्यौहार को राजा परबा या मिथुना संक्रांति कहा जाता है, जो चार दिनों का त्योहार है, जिसमें एक लड़की के नारीत्व में पहला कदम मनाया जाता है। आइए जानें इस त्यौहार के बारे में।
राजा शब्द संस्कृत शब्द राजस से आया है, जिसका अर्थ है मासिक धर्म, और मासिक धर्म करने वाली महिला को रजस्वला के नाम से जाना जाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार, देवी पृथ्वी, जिसे भगवान विष्णु का संघ भी माना जाता है, त्योहार के पहले तीन दिनों में एक लड़की मासिक धर्म से गुजरती है। राजा परबा का पहला दिन साजबाज़ होता है। यह तैयारी का दिन होता है, जब रसोई सहित पूरे घर को अच्छी तरह से सफाई की जाती है। तीन दिनों के लिए घर पर सिल बट्टे पर मसाले पीसे जाते हैं। जबकि बाकी सभी तैयारी के लिए वहां के स्थानीय लोग खासतौर पर पुरुष कड़ी मेहनत करते हैं, महिलाएं आराम से बैठती हैं और आराम करती हैं। ये पूरा समय लड़कियों के खुद को लाड़ करने का समय होता है। महिलाएं नए कपड़े, सुंदर आभूषण पहनती हैं और पैरों पर आलता लगाती हैं।
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त्योहार के पहले दिन को पिली राजा कहा जाता है, दूसरे को मिथुन संक्रांति जिसे बारिश की शुरुआत के निशान भी कहा जाता है, तीसरे दिन को बस्सी राजा के रूप में जाना जाता है और आखिरी और चौथे दिन को वसुमती स्नान कहा जाता है। चार दिन, महिलाओं को हल्दी के लेप से स्नान कराया जाता है। फिर, उन्हें ताजे फूलों और आभूषणों के साथ अलंकृत किया जाता है। बाद में, भगवान जगन्नाथ की पत्नी, भूदेवी का औपचारिक स्नान होता है, जो उत्सव को पूरा करता है।
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इस पर्व के लिए घर की साफ-सफाई की जाती है। बाग-बगीचों में झूले लगाए जाते हैं। पहले तीन दिनों तक महिलाएं व्रत रखती हैं। इन दिनों में काट-छांट और जमीन की खुदाई नहीं की जाती है और सबसे ख़ास इस मौके पर गीत-संगीत कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। महिलाएं मिलजुलकर नृत्य करती हैं और त्यौहार का भरपूर मज़ा उठाती हैं।
अपने मासिक धर्म के दिनों में पृथ्वी के प्रति सम्मान के चिह्न के रूप में, जुताई, बुवाई जैसे सभी कृषि कार्य तीन दिनों के लिए निलंबित कर दिए जाते हैं। यह विचार पृथ्वी को किसी तरह की चोट न पहुंचाने को बढ़ावा देता है। धरती मां को माता का रूप मानते हुए उसे सम्मान दिया जाता है। जैसा कि यह महिलावाद का उत्सव है, बहुत सारा ध्यान युवा महिलाओं पर होता है। इस दिन रस्सी के झूलों पर झूलते हुए युवा लड़कियां लोक गीतों का आनंद लेती हैं।
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