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Allahabad High court verdict on kanyadaan

कन्यादान हिंदू शादियों में जरूरी है या नहीं? क्या कहता है कानून

कन्यादान करना हिंदू शास्त्रों में महादान माना गया है, लेकिन क्या कानून भी इसे उतना ही महत्व देता है? इलाहाबाद हाई कोर्ट का एक फैसला यह समझाता है कि कन्यादान के लिए कानूनन क्या प्रावधान हैं। 
Editorial
Updated:- 2024-04-09, 14:08 IST

कन्यादान का अर्थ क्या है? हिंदू शादियों में होने वाला यह संस्कार बहुत जरूरी माना जाता है। राजा जनक ने भी सीता माता का कन्यादान किया था। हिंदू रीति-रिवाजों के हिसाब से देखें, तो इसे महादान माना जाता है। पर मौजूदा समय में ऐसे कई रीति-रिवाज हैं जिन्हें लेकर लोग सवाल करने लगे हैं। कई ऐसे रीति-रिवाज हैं जिन्हें समय के साथ-साथ लोग निभाना छोड़ रहे हैं। इनमें से एक कन्यादान बनता जा रहा है। अब कई लोगों की मान्यता यह है कि वो अपनी बेटी को दान नहीं करेंगे। ऐसी कई शादियां हो रही हैं जिनमें कन्यादान नहीं किया जाता। 

ऐसे ही एक शादी थी आशुतोष यादव की जिन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अर्जी दी थी कि उनकी शादी में कन्यादान नहीं हुआ और अपने ससुराल वालों के खिलाफ किए एक केस में इस बात को भी रखा गया। आशुतोष ने कोर्ट से परमीशन मांगी कि उनकी शादी में कन्यादान नहीं हुआ इस बात को साबित करने के लिए वो कुछ गवाह बुलाना चाहते हैं। 

इस पूरे घटनाक्रम में जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की बेंच ने हियरिंग में कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट में सिर्फ 'सप्तपदी' (अग्नि के सात फेरे लेना) ही शादी का मुख्य रिवाज माना जाता है। इसमें कन्यादान का प्रावधान नहीं है। इसी कारण धारा 311 CrPC (क्रिमिनल प्रोसीजर कोड- Criminal Procedure Code) के तहत कन्यादान की पुष्टी करने के लिए विट्नेस को बुलाना जरूरी नहीं है। 

इसे जरूर पढ़ें- शादी में कन्यादान को क्यों कहा जाता है महादान, जानें इसका महत्व 

कानूनन जरूरी नहीं है कन्यादान करना

हमारे संविधान में हिंदू मैरिज एक्ट भी मान्य है जिसके तहत अगर हिंदू रीति-रिवाजों से किसी की शादी हुई है, तो सात फेरे और सिंदूर की रस्म मान्य है। हमने इसके बारे में एडवोकेट और लीगल काउंसिल सिद्धार्थ चंद्रशेखर के अनुसार, हिंदू मैरिज एक्ट में कन्यादान नाम शब्द ही नहीं है। इस एक्ट की धारा 7 कहती है कि हिंदू शादियां धार्मिक रिवाज से होती हैं और पवित्र अग्नि के इर्द-गिर्द सात फेरे लेने के बाद ही इस शादी को पूरा माना जाता है। 

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kanyadaan rituals

सांतवे फेरे के बाद भारत का कानून दूल्हा-दुल्हन को पति-पत्नी मान लेता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि शादी को रजिस्टर करवाने की जरूरत नहीं पड़ती। विदेश के वीजा, मकान की रजिस्ट्री, लोन आदि के काम में रजिस्टर्ड मैरिज की जरूरत पड़ सकती है।  

क्या है हिंदू मान्यता के हिसाब से कन्यादान का महत्व?

हिंदू शादी में कन्यादान कितना जरूरी है उसे जानने के लिए हमने ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से बात की। कन्यादान को लेकर उन्होंने कहा, "शास्त्र में कन्यादान को महादान माना गया है क्योंकि इससे बड़ा कोई दान नहीं माना जाता है। जो माता-पिता विधि-विधान के साथ कन्यादान करते हैं। उन्हें वैकुंठ धाम मिलता है। वहीं दूसरी तरफ जब राजा दक्ष ने अपनी पुत्री सती का कन्यादान नहीं किया था, तो उसे उसका अंजाम भुगतना पड़ा था। इसलिए कन्यादान करना जरूरी है। अगर कन्या के माता-पिता नहीं हैं, तो परिवार के किसी भी सदस्य के द्वारा कन्यादान किया जा सकता है।"  

kanyadaan ritual and women empowernment

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मॉर्डन शादियों में कन्यादान के बदल रहे हैं मायने 

आपको एक्ट्रेस दीया मिर्जा की शादी याद है? उनकी शादी को बहुत मॉर्डन और सशक्त माना जाता है। उन्होंने अपनी शादी में महिला पंडित को बुलाया था और कन्यादान की रस्म को भी नहीं किया था। उनका मानना है कि कन्यादान का रिवाज पुराना है और यह महिलाओं को किसी वस्तु की तरह दिखाता है। ऐसा ही आलिया भट्ट के मोहे (Mohey) वाले विज्ञापन में दिखाया गया था जिसे सोशल मीडिया पर बहुत ट्रोल किया गया।  

दरअसल, कन्यादान को लेकर दो अलग तरह की राय बनती जा रही है। कुछ लोग मानते हैं कि कन्यादान पुराना रिवाज है जो महिलाओं के लिए दकियानूसी है। दूसरी ओर यह कहा जाता है कि कन्यादान से बढ़कर कोई दान नहीं होता और इसके बिना हिंदू शादी अधूरी है। दोनों ही पक्षों की अपनी अलग राय है, लेकिन सही मायने में शास्त्रों में कन्यादान का प्रावधान मिलता है और कानून में नहीं।  

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