हिंदू समाज में शादी से जुड़ी कई प्रथाएं हैं जिनका सदियों से हमारे द्वारा अनुसरण किया जा रहा है। इनमें से न जाने कितनी प्रथाओं के बारे में विस्तार से जाने बिना ही हम उनका अनुसरण करते हैं और अपने जीवन में ढालते चले आ रहे हैं।
इन्हीं प्रथाओं में से एक है कन्यादान। कन्या दान का तात्पर्य होता है अपनी कन्या किसी और को देना। जहां तक इस प्रथा की उत्पत्ति का सवाल है तो वेदों में इसका जिक्र नहीं मिलता है, क्योंकि वेदों में कभी भी पुरुषों और महिलाओं में कोई अंतर नहीं किया जाता था।
वेदों के समय में स्त्री और पुरुष दोनों को एक सामान ही समझा जाता था, वेदों के समय में स्त्रियां स्वयंवर करती थीं और अपने जीवनसाथी का चुनाव खुद ही करती थीं, जो शादियां समानता के आधार पर ही होती थीं।
फिर मनुस्मृति के समय से कन्यादान की प्रथा का आरंभ हुआ और धीरे -धीरे यह बहुत ही महत्वपूर्ण प्रथा बन गई। आइए यहां नारद संचार के ज्योतिष अनिल जैन जी से जानें कि कन्यादान को महादान क्यों कहा जाता है और इसका महत्व क्या है।
कब हुई कन्यादान की प्रथा की शुरुआत
ऐसा माना जाता है कि मनु स्मृतियों का आरंभ हुआ तब उसमें 8 तरह की शादियों का वर्णन किया गया। जिसमें से एक सर्वप्रमुख ब्रह्म विवाह होता था। इस विवाह में लड़की का पिता अपनी कन्या के लिए एक सुयोग्य वर का चयन करता था और उसे कुछ स्वर्ण या पैसा देकर अपनी कन्या का दान उस पुरुष को करता था।
मनुस्मृति के समय समाज पुरुष प्रधान था और स्त्रियां पुरुषों पर निर्भर होती थीं। इसी वजह से यह नियम बना कि पिता किसी सुयोग्य वर का चयन करके अपनी कन्या का दान करेगा। उसी समय से शुरू हुई थी कन्यादान की प्रथा।
इसे भी पढ़ें: शादी में क्यों किया जाता है दूल्हे और दुल्हन का गठबंधन? जानें इसका महत्व
कन्यादान की प्राचीन कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि सबसे पहले दक्ष प्रजापति ने अपनी कन्याओं के विवाह में कन्यादान की प्रथा निभाई थी। दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 कन्याएं दान स्वरुप चन्द्रमा को सौंपी थीं जिससे कन्यादान की प्रथा का आरंभ हुआ।
इसे भी पढ़ें: हिंदू शादियों में हमेशा दुल्हन दूल्हे के बाईं ओर ही क्यों बैठती है? जानें कारण
Recommended Video
कन्यादान का महत्व
कन्यादान की प्रथा को विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब विवाह के दौरान कन्या का पिता विधि-विधान के साथकन्यादान की रस्म को निभाते हुए अपनी बेटी का हाथ वर को सौंपता है तो बेटी के ससुराल और मायके दोनों का ही भाग्य अच्छा बना रहता है।
इसी वजह से यह रस्म महत्वपूर्ण और आवश्यक मानी जाने लगी और इसे महादान के रूप में देखा जाने लगा।
कन्यादान को महादान क्यों कहा जाता है
विवाह के समय वर और वधु को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का रूप माना जाता है। ऐसे में लड़की का पिता अपनी लक्ष्मी स्वरूपा पुत्री को वर पक्ष को सौंप देता है। इसी वजह से कन्यादान को महादान माना जाता है। यदि कोई लक्ष्मी का दान करता है तो वह अपनी सुख समृद्धि का दान भी कर देता है तो इसी वजह से कन्यादान को महादान माना जाता है।
कन्यादान कैसे किया जाता है
कन्यादान की प्रथा अलग जगह पर अलग तरीके से निभाई जाती है। आमतौर पर इस प्रथा में वधू की हथेली को एक कलश के ऊपर रखा जाता है फिर कन्या का पिता वर की हथेली पर अपनी बेटी का हाथ रखता है उसके ऊपर बाद फूल, गंगाजल और पान के पत्ते रखकर मंत्रों का उच्चारण किया जाता है और हल्दी से कन्या के हाथ उसके माता-पिता पीले करते हैं।
मन्त्रों के उच्चारण के साथ माता-पिता अपनी बेटी के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं और हमेशा ख़ुशहाल जीवन की कामना करते हैं।
आज के समाज में कन्यादान भले ही कितना महत्वपूर्ण क्यों न हो, लेकिन एक पिता के लिए यह एक भावुक क्षण ही होता है क्योंकि वो अपने कलेजे के टुकड़े को दूसरे हाथों में सौंप देता है।
अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।
images: freepik.com
क्या आपको ये आर्टिकल पसंद आया ?
आपकी स्किन और शरीर आपकी ही तरह अलग है। आप तक अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी लाना हमारा प्रयास है, लेकिन फिर भी किसी भी होम रेमेडी, हैक या फिटनेस टिप को ट्राई करने से पहले आप अपने डॉक्टर की सलाह जरूर लें। किसी भी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, compliant_gro@jagrannewmedia.com पर हमसे संपर्क करें।