हिन्दू धर्म में जिस प्रकार कई देवी देवताओं की पूजा का विधान है, उसी तरह कई मन्त्रों एवं स्तोत्रों का अपना अलग महत्त्व है। कई मन्त्रों के उच्चारण से जहां एक तरफ घर में सकारात्मकता का वातावरण बनता है वहीं स्तोत्रों के पाठ से किस्मत बदल जाती है और घर धन -धान्य से परिपूर्ण हो जाता है। ऐसा ही एक स्तोत्र है आदित्य ह्रदय स्तोत्र। इसका सीधा सम्बन्ध सूर्य देव से है।
कहा जाता है कि प्रकाश और ऊष्मा दोनों ही सूर्य देव की अंतर्निहित विशेषताएं हैं, इसलिए आप सूर्य को समर्पित इस पवित्र स्तोत्रम का पाठ करके खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से सक्रिय कर सकते हैं। यही नहीं मुख्य रूप से रविवार के दिन इसका पाठ करने और सूर्य को जल अर्पित करने से व्यक्ति का भाग्य बदल जाता है और घर में सुख समृद्धि आती है। आइए नई दिल्ली के जाने माने पंडित, एस्ट्रोलॉजी, कर्मकांड,पितृदोष और वास्तु विशेषज्ञ प्रशांत मिश्रा जी से जानें आदित्य हृदय स्तोत्रम का जाप करने के फायदों के बारे में।
कैसे हुआ इस स्तोत्र का प्रादुर्भाव
वाल्मीकि रामायण के अनुसार “आदित्य हृदय स्तोत्र” अगस्त्य ऋषि द्वारा भगवान् श्री राम को युद्ध में रावण पर विजय प्राप्ति हेतु दिया गया था। कहा जाता है आदित्य हृदय स्तोत्र का नित्य पाठ करने से जीवन के अनेक कष्टों का एकमात्र निवारण होता है। इसके नियमित पाठ से मानसिक कष्टों से मुक्ति और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
सूर्य को है समर्पित
हिन्दुओं में सूर्य देवता की पूजा पूरे श्रद्धा भाव से करने का विधान है और सूर्य को ग्रहों का राजा माना गया है। सूर्य समस्त संसार के लिए ऊर्जा का केंद्र और प्रकाश का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। कहा जाता है कि सूर्य की पूजा से मनुष्यों को विशेष लाभ मिलता है। नवग्रहों में भी सूर्य को सबसे विशिष्ट स्थान प्राप्त है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को पिता, पुत्र, प्रसिद्धि, यश, तेज, आरोग्यता, आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति का कारक माना गया है। सूर्य की आराधना से व्यक्ति को सूर्य के समान तेज और यश की प्राप्ति होती है। सूर्य को मजबूत करने के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना सर्वोत्तम माना जाता है। यदि इस स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन सुबह किया जाए तो मनुष्य के जीवन में बहुत जल्दी ही सकारात्मकता देखने को मिलती है
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सूर्य को जल का अर्ध्य दें
कहा जाता है कि सूर्य हमारे जीवन में रोशनी का संचार करता है इसलिए सूर्य को नियमित रूप से जल का अर्ध्य देते हुए " ॐ सूर्य देवाय नमः " का जाप करते हुए आदित्य ह्रदय स्तोत्र का जाप करें।
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आदित्य ह्रदय स्तोत्र के लाभ
- कहा जाता है कि जो व्यक्ति आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करता है उसके जीवन में कभी भी निराशा नहीं आती ही। कठिन से कठिन परिस्थितियों का सामना भी हंसते हुए कर सकता है।
- इसका पाठ करने से व्यक्ति का मनोबल मजबूत होता है और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। चाहे कोई भी क्षेत्र हो उसे सफलता हासिल होती है।
- यदि आपके घर में नकारात्मकता का वास होने लगा है और आपके आत्मविश्वास में कमी आ रही है, तो प्रातः स्नान आदि से निवृत्त होकर सूर्य देवता को जल दें और आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करें।
- इस स्तोत्र के परिणामस्वरुप आपको हर एक क्षेत्र में सफलता मिलेगी और भाग्योदय होगा। वैसे तो इस स्त्रोत का पाठ आपको नियमित रूप से करना चाहिए, लेकिन इसे रविवार के दिन अवश्य ही करना फलदायी होता है।
क्या है आदित्य ह्रदय स्तोत्र
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् । रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् । उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम् । येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् । जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥
सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम् । चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥5॥
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् । पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: । एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि: ॥7॥
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥8॥
पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: । वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥9॥
आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान् । सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥10॥
हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान् । तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥
हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: । अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥12॥
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: । घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥
आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:। कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥14॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: । तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥
नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: । ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥16॥
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: । नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥17॥
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: । नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे । भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने । कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥20॥
तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे । नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥
नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: । पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥22॥
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: । एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23॥
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च । यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥24॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च । कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम् । एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥
अस्मिन् क्षणे महबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि । एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा ॥ धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान् ॥28॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् । त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम् । सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥
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