आए दिन सुप्रीम कोर्ट में मेडिकल प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन को लेकर कोई ना कोई केस सुनने में आ ही जाता है। आखिर सुप्रीम कोर्ट को किसी महिला की प्रेग्नेंसी से क्या काम? दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई तब होती है जब महिला की प्रेग्नेंसी 24 हफ्ते से ज्यादा हो जाती है क्योंकि तब मानवाधिकार सामने आ जाते हैं। पर वह महिला जो प्रेग्नेंट है उसके अधिकारों का क्या होगा? अधिकतर लोगों को इसके बारे में पता नहीं होता कि भारत में किस तरह के अबॉर्शन राइट्स हैं और किस कानून के अंतरगत वह आते हैं।
भारत में किस तरह के अबॉर्शन राइट्स महिलाओं को मिलते हैं और अजन्मे बच्चे के क्या अधिकार होते हैं? यह समझने के लिए हमने पीएस लॉ एडवोकेट एंड सॉलिसिटर की एडवोकेट पार्टनर प्रीति सिंह से बात की। उन्होंने हमें विस्तार से अबॉर्शन राइट्स के बारे में बताया।
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट
भारत में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (MTP Act 1971) को ही अबॉर्शन के केस में कानूनन सही माना जाता है। इस एक्ट में अलग-अलग तरह के नियम और कायदे बताए गए हैं जिनके तहत प्रेग्नेंसी को खत्म किया जा सकता है। 2021 से पहले MTP एक्ट के सेक्शन 3 (2) के आधार पर 20 हफ्तों तक की प्रेग्नेंसी को ही टर्मिनेट करने की सुविधा दी गई थी। हालांकि, बाद में इसमें प्रावधान बदला और इस अवधि को बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दिया गया।
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इस एक्ट में भी कोई भी महिला बिना डॉक्टरी सलाह के अपने आप प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट नहीं कर सकती है। उदाहरण के तौर पर अगर मेडिकल टर्मिनेशन 12 हफ्तों के अंदर होता है, तो यहां एक डॉक्टर की सलाह लगेगी और अगर 12 से 20 हफ्तों तक की प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करना है, तो दो डॉक्टरों की सलाह लगती थी।
हालांकि, 2021 तक ऐसे कई मामले सामने आए थे जहां 20 हफ्तों से ज्यादा की प्रेग्नेंसी को डॉक्टरी सलाह के बाद टर्मिनेट करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इजाजत दी थी। ऐसे में इस एक्ट में 2021 में बदलाव किए गए।
2021 के बाद से प्रेग्नेंसी को अबॉर्ट करने के ये हैं नियम
अब अगर मां चाहे, तो 20 हफ्तों तक की प्रेग्नेंसी को एक डॉक्टर की सलाह पर टर्मिनेट किया जा सकता है। इसके साथ ही, अब कानूनन 24 हफ्तों की प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की सुविधा दी जाने लगी है। हालांकि, 20 हफ्तों से ऊपर की प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने की इजाजत सिर्फ कुछ ही मामलों में दी गई है जैसे अगर किसी शादीशुदा महिला को उसके पति ने छोड़ दिया है, किसी महिला के साथ यौन अपराध हुआ है जिसके कारण प्रेग्नेंसी हुई है आदि। 24 हफ्तों की प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने से पहले लीगल सलाह ले लेना बेहतर होता है।
शुरुआत में इस एक्ट में सिर्फ शादीशुदा महिलाओं का ही जिक्र था, लेकिन 29 सितंबर 2022 में यह फैसला लिया गया कि बिन ब्याही महिलाओं के पास भी समान अधिकार होने चाहिए।
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24 हफ्तों से ज्यादा की प्रेग्नेंसी करनी हो टर्मिनेट तो?
देश में कुछ मामले ऐसे भी आए हैं जहां सुप्रीम कोर्ट ने प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने की इजाजत दी है। ऐसे मामलों में महिला के मौलिक अधिकारों को ध्यान में रखकर फैसले लिए गए हैं। अधिकतर मामलों में महिला और बच्चे की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को देखते हुए ही ऐसे फैसले लिए गए हैं।
इसलिए शुरुआत से लेकर अब तक भारत में अबॉर्शन लॉ काफी बदल गए हैं। हां, 12 हफ्तों से कम वक्त की प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने का फैसला डॉक्टरी सलाह पर लिया जा सकता है और इसे कानूनी तौर पर अपराध नहीं माना जाता है, लेकिन 20 हफ्तों के बाद बच्चे को मौलिक अधिकारों को भी ध्यान में रखा जाता है और इसलिए इससे ज्यादा वक्त की प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करना अपराध माना जाता है। यह सिर्फ मां के लिए नहीं बल्कि प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने में मदद करने वाले डॉक्टर के लिए भी अपराध ही है।
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