
दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में ऐसी कई जनजातियां हैं, जिनकी परंपराएं सुनकर लोग हैरान रह जाते हैं। इन्हीं में से एक है चीन का लाहू जनजाति, जो अपने अनोखे रीति-रिवाजों के लिए जाना जाता है। यहां की महिलाएं शादी से पहले सिर मुंडवाती हैं, और अंतिम संस्कार में लोग जोड़े में ही शामिल होते हैं। इन परंपराओं के पीछे गहरी सोच और जिंदगी में बैलेंस बना रहे, इसका संदेश छिपा है।
आज हम आपको लाहू जनजाति (Lahu Tribes) के अनोखे रिवाजों के बारे में आपकाे विस्तार से जानकारी देने जा रहे हैं। आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से -
आपको बता दें कि लाहू जनजाति चीन की 56 जातीय समूहों में से एक है। इनकी आबादी करीब 5 लाख के आसपास है। ये ज्यादातर युन्नान (Yunnan) में रहते हैं। कुछ लाहू लोग थाईलैंड और वियतनाम में भी बसे हुए हैं। बहुत पुराने समय में ये लोग किंगहाई झील (Qinghai Lake) के पास रहते थे, लेकिन बाद में ये युन्नान आकर बस गए।
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अब आप सोच रही होंगी कि लाहू शब्द का मतलब क्या है? तो हम आपको बता दें कि लाहू का मतलब बाघ (Tiger) होता है। पहले लाहू लोग बाघ का शिकार करने के लिए फेमस थे, इसलिए इन्हें बाघ से जुड़ा समुदाय कहा गया। कुछ लोगों का ये भी मानना है कि लाहू का मतलब एकता और खुशी से जुड़ा हुआ है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये लोग हमेशा मिल-जुलकर रहना पसंद करते हैं।
लाहू समाज की ये परंपरा बहुत अलग है। यहां की लड़कियां शादी से पहले सिर मुंडवाती हैं। पहले के समय में जब लाहू लोग घुमंतू जीवन (एक जगह से दूसरी जगह घूमकर रहने वाला जीवन) जीते थे, तब महिलाएं और पुरुष दोनों सिर मुंडवाते थे, ताकि सफाई बनी रहे और शिकार के दौरान परेशानी न हो। धीरे-धीरे ये रिवाज सिर्फ शादी करने वाली महिलाओं से जुड़ गया। अब शादी से पहले दुल्हन सिर मुंडवाकर गंजी हो जाती हैं।
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इसका मतलब ये होता है कि अब वो अपनी पुरानी लाइफ को पीछे छोड़कर नई जिंदगी की शुरुआत कर रही हैं और अपने पति के प्रति पूरी तरह से समर्पित है। हालांकि आजकल सभी लड़कियां पूरा सिर नहीं मुंडवाती, कुछ केवल थोड़े बाल कटवाकर इस रिवाज को निभाती हैं।
लाहू समाज में महिलाओं और पुरुषों दोनों को समान अधिकार दिए जाते हैं। बेटियां अपनी मां की प्रॉपर्टी संभालती हैं और बेटे अपने पिता की। बच्चों का सरनेम (नाम) मां या पिता दोनों में से किसी का भी हो सकता है। इस तरह ये समाज बराबरी और संतुलन बनाए रखता है।
लाहू जनजाति के लोग मानते हैं कि जन्म और मृत्यु आपस में जुड़े होते हैं। उनके अनुसार जब कोई मरता है तो कहीं न कहीं कोई और जन्म लेता है। इसी सोच की वजह से यहां अंतिम संस्कार में कोई अकेले नहीं जाता, बल्कि जोड़े में जाता है। उनका मानना है कि अगर कोई अकेला जाता है तो उसे मरे हुए व्यक्ति की आत्मा का असर लग सकता है। जोड़े में जाने का मतलब होता है संतुलन और सुरक्षा।
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इसके अलावा अंतिम संस्कार के समय घर की छत में एक छोटा छेद किया जाता है, ताकि आत्मा ऊपर जा सके। वहीं दूसरी ओर मरे हुए व्यक्ति के हाथ में सफेद धागा बांधा जाता है, जिसका दूसरा सिरा एक सूअर के गले में बंधा होता है। बाद में उस सूअर को पानी में डुबोया जाता है और केवल दूर के रिश्तेदार उसका मांस खाते हैं।
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Image Credit- Freepik/AI generated/Shutterstock
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