भारत की पहली महिला दास्तांगो फौजिया, झेलना पड़ा था लोगों का विरोध

फौजिया दास्तांगो ने 2006 से पेशेवर दस्तंगोई के तौर पर पूरे भारत के साथ दुनिया भर में 500 से अधिक शो किया है। अपनी कहानियों के माध्यम से लैंगिक रूढ़िवाद को तोड़ने का प्रभावी काम कर रही हैं।

indias first woman dastangoi fauzia

फौजिया दास्तांगो भारत की पहली महिला दस्तंगो हैं और दास्तांगोई 16 वीं सदी की मौखिक कहानी कहने की एक कला है। आमतौर पर, मनोरंजन के लिए, दास्तांगोई में समाज की मौजूदा हालत, राजनीतिक गतिविधी की प्रासंगिकता को जोड़ा जाता है। फौजिया ने इस भारतीय कला को जिंदा रखने के लिए कई बार विरोधाभासी विचारधारा का भी सामना किया है। फौजिया से बात चीत में पता चला कि इन्होंने अपने क्षेत्र में काम करने के लिए महिला होने की वजह से गैर बराबरी का एहसास किया है। साहित्य और कला के इस क्षेत्र में जहां सबके हुनर को परखा जाता है कुछ एक मर्तबा हुनर में अव्वल होने के बाद भी उन्होंने अपनी पहचान की वजह से मुश्किलों का सामना किया है।

भारत में दास्तांगोई का चलन

असल में दास्तांगोई की कला मुगल काल में भारत आई थी और यह 19 वीं शताब्दी में अपने चरम पर पहुंच गई थी। यह आर्ट फॉर्म लखनऊ की सड़कों पर भी लोकप्रिय था जहाँ उन दिनों इसका गर्मजोशी के साथ स्वागत किया जाता था।

India's first woman dastango wikipedia, India's first woman dastango, storytelling dastangoi,

दास्तांगोई की कहानियाँ आम तौर पर इतिहास, पौराणिक कथाओं और लोककथाओं से ली जाती हैं। कहानियों को एक गीतकार द्वारा बताया जाता है, जिसे दस्तंगो कहा जाता है, जो एक हारमोनियम और एक ढोलक के साथ भी हो सकता है और अपनी मधुर आवाज में बयां करने की खूबसूरत कला। दास्तांगो अपनी आवाज और चेहरे के भाव का इस्तेमाल कहानी के पात्रों को जीवंत बनाने के लिए करता है। दास्तांगोई बेहद तजरबाकार कला के रूप में जाना जाता है और इसे सीखने में कई साल लग सकते हैं। असल में दस्तंगो को कहानी की गहरी समझ होनी चाहिए और वह कहानी को इस तरह से बताने में सक्षम होना चाहिए कि वह श्रोताओं को आकर्षित करने और उनकी रुचि बनाए रखे और फौज़िया इस कला में माहिर हैं।

इसे भी पढ़ें: कौन हैं भारत की पहली हिजाब इंफ्यूलेंसर रमशा सुल्तान, रूढ़िवादी सोच को देती हैं मुंहतोड़ जवाब

दास्तांगोई के जरिए लैंगिक रूढ़िवाद को तोड़ रहीं हैं फौजिया

फौजिया दास्तांगो ने 2006 से पेशेवर दास्तांगोई के तौर पर शो कर रही हैं। फौजिया पूरे भारत और दुनिया भर में 500 से अधिक शो कर चुकि हैं, साथ ही कई पुरस्कार और सम्मान भी जीत चुकि हैं और उन्हें भारत की सबसे प्रतिभाशाली दस्तंगो में से एक माना जाता है। आइए करीब से जानते हैं फौज़िया दास्तांगो की कहानी, जो अपनी कहानियों के माध्यम से लैंगिक रूढ़िवाद को तोड़ने का प्रभावी काम कर रही हैं।

फौजिया बचपन से ही कला और थिएटर के क्षेत्र में गहरी रुचि रखती थीं। इन्होंने अपनी स्कूल के नाटकों में सीखना और भाग लेना जारी रखा था, लेकिन कुछ समय तक परिवार की जिम्मेदारियों की वजह आर्ट फॉर्म को आगे नहीं बढ़ा सकीं। बाद में, उन्होंने एक शिक्षिका के तौर पर प्रशिक्षण हासिल किया और कई सालों तक काम किया, शिक्षा को तलवार का ढ़ाल बना कर खुद को और परिवार का समर्थन किया।

दास्तांगोई करने से पहले क्या करती थी फौजिया

फौजिया ने जामिया मिलिया इस्लामिया से समाजशास्त्र में स्नातक की डिग्री और बाद में शिक्षा योजना और प्रशासन में मास्टर डिग्री हासिल कर रखी है। हालांकि, 2006 में एक प्रदर्शन हुआ, जब वह दयाल सिंह कॉलेज में दास्तांगोई प्रदर्शन देखने गईं और उन्हें इस आर्ट फॉर्म से मानो प्यार हो गया। तब से, इन्होंने इस आर्ट फॉर्म को सीखने और अभ्यास करने के लिए खुद को दास्तांगोई के लिए समर्पित कर दिया। एक दस्तंगो (कहानीकार) बनने के अपने जुनून को आगे बढ़ाने के लिए स्टेट काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एससीईआरटी) में लेक्चरर के तौर पर अपनी स्थायी नौकरी छोड़ दी। इस प्रक्रिया में, फौज़िया भारत की पहली महिला दस्तंगो भी बन गई हैं।

इसे भी पढ़ें: पंच से तोड़ी परंपरा, शक्ति से तोड़ीं बेड़ियां...और मेहरून्निसा बन गईं देश की पहली महिला बाउंसर

फौजिया को उर्दू भाषा, साहित्य और दास्तांगोई कला में गहरी रुचि रही है। वह पुरानी दिल्ली की पहाड़ी भोजला में पैदा हुई और अपनी जिंदगी का ज्यादातर वक्त वहीं बिताया, जो संयोग से कभी मीर बाकर अली, आखिरी महान दस्तंगो का घर हुआ करता था। आपको बता दें, शब्द "दास्तांगोई" फारसी शब्द "दास्तान" से लिया गया है जिसका अर्थ है "एक कहानी" और "गोई" जिसका अर्थ है "बताना"। यह आर्ट फॉर्म, जो भारतीय उपमहाद्वीप में 16वीं शताब्दी का है, 1928 में मीर बाकर अली की मृत्यु के साथ दास्तांगोई कला गुमनामी में चला गया, जब कि कुछ साल पहले इस कहानी कहने की परंपरा को फिर से जिंदा करने की कोशिश किए जा रहे हैं।

फौजिया ने दास्तांगोई से हासिल की हैं ये उपलब्धियां

फौजिया ने अपने प्रदर्शन के माध्यम से महिला-केंद्रित मुद्दों को उठाने के लिए कोशिश किया है, जबकि दूसरे सामाजिक मुद्दों को भी कवर किया है। हाल ही में, इन्होंने शांति के लिए सूफी रूट कॉन्सर्ट का उद्घाटन किया, जो अपनी तरह का पहला और सफल सूफी संगीत समारोह था, जिसकी अध्यक्षता संगीतकार ए.आर. रहमान ने की थी, और फौजिया को प्रसिद्ध कवि, गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर के साथ पेश होने का मौका भी मिला है। इनकी मशहूर प्रदर्शन हैं, जैसे: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल, ओल्ड वर्ल्ड थिएटर फेस्टिवल, कुमाऊं लिटरेरी फेस्टिवल, बुकारू चिल्ड्रन लिटरेचर फेस्टिवल, महिंद्रा सनतकदा फेस्टिवल, लखनऊ लिटरेचर फेस्टिवल, जश्न-ए-रेख्ता और कई अन्य छोटे- बड़े प्रदर्शन में शामिल हो चुकि हैं।

meet first indias woman dastangoi fauzia

फौजिया दास्तांगो की कहानियाँ अक्सर सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को उठाती हैं। वह अपनी कहानियों का इस्तेमाल लोगों को शिक्षित करने और जागरूक करने के लिए करती बैं। वह मानती हैं कि दास्तांगोई एक सशक्त तरीका है जिसका इस्तेमाल दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने के लिए किया जा सकता है।

अगर आपको हमारी स्टोरी से जुड़े आपके कुछ भी सवाल हैं, तो वो आप हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे अपने सोशल मीडिया हैंडल पर शेयर करना न भूलें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए हर जिंदगी से जुड़े रहें।

Image credit: Instagram

HzLogo

HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!

GET APP