HZ Exclusive: एक समय था जब सिर्फ बेटों को पिता के कारोबार को संभालने के काबिल समझा जाता था। पारले एग्रो की सीईओ शौना चौहान की कहानी इसी रूढ़िवादी सोच का मुंहतोड़ जवाब देती है। बचपन से पिता को देख उन्होंने बिजनेस के गुर प्राप्त करने शुरू कर दिए थे। उसी का परिणाम है कि वो आज इतने बड़े मुकाम को शानदार तरीके से संभाल रही हैं।
हरजिंदगी हिंदी के साथ दिए इंटरव्यू में उन्होंने अपनी पूरी जर्नी साझा की है जो काफी इंस्पायरिंग है। आइए हम भी पढ़ते हैं उनका सफरनामा।
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शौना चौहान बताती हैं, "जब मैं पैदा हुई तब कुछ समस्याएं थी। मेरी मां मेरे साथ अस्पताल के कमरे में लेटी थी और मेरे पिता मेरे नाम के साथ फॉर्म भरने के लिए बाहर निकले। यहीं से मेरा नाम शौना पड़ा लेकिन मेरे पिता ने शौना को "Schauna" लिखा। यह एक आयरिश शब्द है जिसका अर्थ है छोटा और बुद्धिमान।
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शौना चौहान कहती हैं, "मैं 10 साल की उम्र में बोर्डिंग स्कूल चली गई थी। मुझे घर की बहुत याद आती थी, मैं रोती थी और अपने परिवार को फोन करके कहती थी कि मैं घर वापस आना चाहती हूं। मैंने बोर्डिंग से पढ़ाई की और उसके बाद विश्वविद्यालय गई। इसके बाद मैं पारिवारिक व्यवसाय में शामिल होने के लिए वापिस लौट आई। मेरी मां हमेशा मेरी ताकत रही हैं। मुझे सही मूल्य देने और बेहतर इंसान बनाने के लिए लगातार प्रोत्साहित किया।" आज शौना चौहान खुद मां बन चुकी हैं और उनके बेटे का नाम जहान है।
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करियर की शुरुआत के बारे में पूछे जाने पर शौना चौहान कहती हैं, "मैंने बहुत कम उम्र से पिता के पास खड़ा होकर उन्हें काम करते हुए देखा, ट्रेवल किया और मीटिंग में हिस्सा भी लिया। कुछ इस तरह मैंने व्यवसाय को सीखना और समझना शुरू किया। मुझे कुछ साल लगे लेकिन मैंने अपने सीखने के सारे स्टेप्स का पूरा आनंद लिया। उस समय मेरा एकमात्र लक्ष्य कारोबार को अच्छे से समझना था।"
"मैं भाग्यशाली हूं कि हमारे पास पहले से ही अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर मिला। हमारी कंपनी पहले से ही उपभोक्ताओं की पसंद है। कंपनी की विरासत संभालना आसान लगता है लेकिन यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। आपसे लोगों को बहुत अपेक्षा होती है जो सबसे बड़ी चुनौती होती है। बहरहाल मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण पहलू था पिता से सीखना जिसने मुझे आत्मविश्वासी बनाया।" - शौना चौहान
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अपने संघर्षों के बारे में बात करते हुए शौना चौहान कहती हैं, "ईमानदारी से मेरे पास पेशेवर रूप कोई संघर्ष नहीं था क्योंकि मैं शुरुआत से कड़ी मेहनत करना पसंद करती हूं। हां, मेरे लिए एक चुनौती थी कि मैं अपने बेटे जहान के साथ क्वालिटी टाइम कैसे बिताऊ। जब वह छोटा था तो तब तक नहीं सोता नहीं था जब तक मैं घर नहीं आ जाती थी। एक मां के रूप में यह कठिन था। मुझे काम और जहान के बीच सही संतुलन बनाना था इसलिए मैं अपनी सभी व्यापारिक यात्राओं पर उसे अपने साथ ले जाने लगी और इस कदम से सारी परेशानी हल हो गई।"
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किसी कंपनी का सीईओ बनना अपने आप में एक बड़ी बात है। शौना चौहान कहती हैं, "मेरे जीवन के सबसे गौरवपूर्ण क्षणों में से एक था जब मुझे सीईओ के रूप में नियुक्त किया गया। इस पद को संभालने के बाद सबसे बड़ा परिवर्तन टाइम मैनेजमेंट से जुड़ा रहा। पहले भी मैं कंपनी के निर्माण और विकास के काम कर रही थी लेकिन पद मिलने के बाद व्यावसायिक कार्यक्रमों में मेरा उपस्थित रहना जरूरी हो गया। इसके बाद मेरा शेड्यूल पहले से बिजी हो गया और मल्टी-टास्किंग भी क्योंकि अब मैं एक मां होने के साथ-साथ सीईओ भी हूं।"
शोना चौहान ने कहा, "मुझे लगता है कि कार्यस्थलों पर महिलाओं के खिलाफ एक पूर्वाग्रह है। शिक्षा युवा लड़कियों और महिलाओं के आत्मविश्वास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और इसका अभाव महिलाओं के बोलने या कठिन परिस्थितियों में प्रतिक्रिया करने के तरीके को प्रभावित करता है। मैंने लड़कियों को शिक्षा से वंचित देखा है। आप कौन हैं और आप जीवन में क्या हासिल करना चाहते हैं इसे परिभाषित करने के लिए शिक्षा शुरुआती बिंदुओं में से एक है।"
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शोना चौहान कहती हैं, "मेरा मानना है कि यदि आप काम करने में सक्षम हैं तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप पुरुष हैं या महिला। हमे खुद के लिए बात करनी चाहिए और इस जागरूकता की शुरुआत युवावस्था से होनी चाहिए। लड़कों और लड़कियों को समानता मिलनी चाहिए और उन्हें अपनी पूरी क्षमता हासिल करने के लिए लैंगिक पूर्वाग्रहों व प्रतिबंधों से मुक्त करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। लड़कियों को शुरुआत से ही बोल्ड होना, जोखिम उठाना और स्वतंत्र रहना सीखना चाहिए। साथ शिक्षा के अवसर भी सामान मिलने चाहिए।"
पारिवारिक माहौल बच्चों को बहुत प्रभावित करता है। ऐसे में माता-पिता को अपने बच्चों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। शौना कहती हैं, "मेरा बेटा प्री-किंडरगार्डन में बार्बी को स्कूल ले जाता था। मैंने कभी भी खिलौनों को लिंग के आधार पर नहीं बांटा। आज जब वह रोता है तो मैं उसे 'लड़के रोते नहीं' जैसी कोई बात नहीं कहती।"
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शौना कहती हैं, "परिवार को कामकाजी महिलाओं के काम से जुड़ी यात्राओं जैसी जिम्मेदारियों के वक्त साथ देना चाहिए। अगर वह कोई ऐसा कोर्स करना चाहती है जो उसे अपने करियर में आगे बढ़ने में मदद करे तो उसका समर्थन करें ताकि वह इसे कर सके। समर्थन, जिम्मेदारियों को साझा करें और प्रोत्साहित करें।"
शौना ने कहा, "हमारी आवाज ही शक्ति है और यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम जो चाहते हैं उसे समान रूप से प्राप्त करने के लिए हम अपनी आवाज उठाएं। अपने लिए आवाज उठाएं, खुद की सराहना करें और खुद का धन्यवाद करें और श्रेय भी दें।
शौना चौहान द्वारा बताई गई बातों से हर महिला को सिख लेनी चाहिए जो काफी प्रेरणादायक है।
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Photo Credit: HerZindagi
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