
भारतीय संस्कृति और हिन्दू विवाह परंपरा में बेटी को देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। जब कोई बेटी विवाह के बाद अपने पैतृक घर की चौखट या दहलीज को पार करके विदा होती है तो यह केवल एक भौतिक प्रस्थान नहीं होता बल्कि एक युग का समापन और नए जीवन का आरंभ होता है। विदाई से ठीक पहले बेटी द्वारा घर की दहलीज की पूजा करना एक अत्यंत भावुक और महत्वपूर्ण रस्म है। यह रस्म उस घर के प्रति बेटी का अंतिम सम्मान, आभार और आशीर्वाद देने का प्रतीक है जहां उसका बचपन बीता है। इसके अलावा, इस रस्म को निभाने के और भी कई कारण हैं जिनके बारे में आइये जानते हैं वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से।
हिन्दू धर्म में घर की दहलीज को अत्यंत पवित्र माना जाता है, जहां वास्तु पुरुष और मां लक्ष्मी का वास होता है। विदाई के समय बेटी द्वारा इस दहलीज की पूजा करने का अर्थ है कि वह अपने जीवन की सबसे बड़ी पूंजी समृद्धि, सुख और सौभाग्य को अपने मायके में स्थायी रूप से स्थापित करके जा रही है।

यह रस्म सुनिश्चित करती है कि उसके जाने के बाद भी मायके में कभी धन-धान्य और खुशियों की कमी न हो। माना जाता है कि दहलीज वह स्थान है जहाँ घर के पितरों का भी वास होता है। बेटी दहलीज को पूजकर अनजाने में हुई किसी भी गलती या भूल के लिए अपने पितरों से क्षमा मांगती है।
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साथ ही, उनसे अपने नए जीवन के लिए आशीर्वाद प्राप्त करती है। यह रस्म भावनात्मक रूप से एक बंधन को समाप्त कर दूसरे बंधन को स्वीकार करने की प्रार्थना है। वहीं, वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर की दहलीज पर राहु का वास माना जाता है जो बाधाओं और दुर्भाग्य का कारक हो सकता है।
दहलीज की पूजा, विशेष रूप से हल्दी और कुमकुम का उपयोग करके राहु के नकारात्मक प्रभावों को शांत करती है। यह सुनिश्चित करती है कि बेटी के जाने के बाद घर में किसी तरह की अशुभता या दुःख का प्रवेश न हो।

दहलीज घर में सकारात्मक ऊर्जा के प्रवेश का मुख्य द्वार है। बेटी द्वारा इस पर हल्दी, कुमकुम और जल अर्पित करने से यह स्थान शुद्ध और सक्रिय हो जाता है। यह एक 'सुरक्षा कवच' की तरह काम करता है जो घर के अंदर सुख-शांति और समृद्धि के निरंतर प्रवाह को बनाए रखता है।
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दहलीज के पास चावल से भरी कलश को पलटना और उस पर पैर रखकर बाहर निकलना भी इसी परंपरा का हिस्सा है। यह रस्म प्रतीकात्मक रूप से यह दर्शाती है कि बेटी अपने शुभ कदम और लक्ष्मी रूपी धन को पीछे छोड़कर जा रही है ताकि मायके का भंडार हमेशा भरा रहे।
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