Hz Exclusive: कैसे शीरोज कैफे से मिलती है एसिड अटैक सर्वाइवर्स के हौसलों को उड़ान

छांव फाउंडेशन के डायरेक्टर आशीष शुक्ला से खास बातचीत में पता चला की किस तरह एसिड अटैक सर्वाइवर्स को शीरोज हैंगआउट कैफे से सहायता मिल रही है। 

 
what is the story behind sheroes cafe in hindi

अगर आपकी सफलता की राह में कोई परेशानी आ जाए तो आप उसे खत्म करने का पूरा प्रयास करती होंगी क्योंकि अगर कुछ पाने का जुनून होता है तो किसी प्रकार की परेशानी आपके रास्ते में बाधा नहीं बन सकती है। शीरोज हैंगआउट कैफे इसी जुनून की कहानी को दर्शाता है।

हमारे देश की ऐसी कई एसिड अटैक सर्वाइवर हैं जो अपने दर्द का बखान करने की जगह आगे बढ़ने की पूरी कोशिश कर रही हैं। छांव फाउंडेशन एक ऐसी फाउंडेशन है जो एसिड अटैक सर्वाइवर्स को स्वास्थ्य, कानूनी सहायता, कई प्रकार की ट्रेनिंग और रोजगार भी देती है।

छांव फाउंडेशन के द्वारा एसिड अटैक सर्वाइवर्स को रोजगार प्रदान करने के लिए शीरोज कैफे को शुरू किया गया है। यह कैफे कैसे शुरू हुआ और इससे कैसे लड़कियों को फायदा मिल रहा है इन सभी विषयों पर हरजिंदगी हिंदी ने बात की छांव फाउंडेशन के डायरेक्टर आशीष शुक्ला से

कब शुरू हुआ शीरोज कैफे?

when sheroes cafe started

छांव फाउंडेशन ने शीरोज कैफे की शुरुआत साल 2014 में की थी। सबसे पहला शीरोज कैफे आगरा में खोला गया था। इसके बाद लखनऊ और नोएडा में भी इस कैफे को शुरू किया गया।

आपको बता दें कि इन सभी कैफे में कुल 30 लड़कियां एसिड अटैक सर्वाइवर हैं। इस कैफे से उन सभी को रोजगार मिल रहा है। छांव फाउंडेशन के डॉयरेक्टर आशीष शुक्ला ने इंटरव्यू में हमें बताया कि इस कैफे में रोजगार प्राप्त करके ये सभी एसिड एटैक सर्वाइवर समाज में एक बार फिर से सभी को यह संदेश दे रही हैं कि जिन अपराधियों ने उनके साथ ऐसी घटना की है, उससे इनके हौसले टूटे नहीं हैं।

वह खुद से आज भी किसी भी कार्य को करने में सक्षम हैं जितनी पहले हुआ करती थी और अपने पैरों पर खड़े होकर वह समाज में आम लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर सकती हैं।

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क्या है इस कैफे का उद्देश्य?

what is the motive of sheroes cafe

आशीष शुक्ला ने हमें यह भी बताया कि इस कैफे का उद्देश्य एसिड अटैक सर्वाइवर को सिर्फ रोजगार देने तक सीमित नहीं है बल्कि उन्हें मोटिवेट करना और उनकी पहचान को बनाए रखना भी है। आपको बता दें कि छांव फाउंडेशन एसिड अटैक सर्वाइवर को इस कैफे में रोजगार देने के अलावा कई सारे अन्य क्षेत्रों में काम करने की पूरी ट्रेनिंग भी देती है।

उन्होंने बताया कि इससे समाज में सभी को यह संदेश भी मिल रहा है की जिन अपराधियों ने उनके साथ ऐसी घटना की है वह उनसे डरकर अपने घरों में नहीं बैठी हैं।

इस कैफे में काम करके एसिड अटैक सर्वाइवर उस हादसे से खुद को उभार पाती हैं जिस हादसे की वजह से वह कई महीनों और सालों तक अपने चेहरे को आईने में भी नहीं देखना पसंद करती थीं।

आशीष शुक्ला ने यह भी बताया कि जब लड़कियों पर एसिड अटैक होता है तो वह घर से बाहर निकलना भी छोड़ देती हैं लेकिन इस कैफे में अब ये लड़कियां अपने चेहरे को छुपा कर नहीं, बल्कि सबके सामने आकर और जमकर मेहनत भी करती हैं।

छांव फाउंडेशन ने की मदद

छांव फाउंडेशन ने इन एसिड अटैक सर्वाइवर्स को एक मजबूत सहारा दिया है। यह फाउंडेशन अलग-अलग स्थानों पर हुए एसिड अटैक के बारे में जानकारी एकत्रित करती है और फिर उन लड़कियों से मिलकर उन्हें मोटिवेट भी करती है।

इसके साथ-साथ उनकी कानूनी रूप से केस को लड़ने में भी सहायता करती है। आपको बता दें कि यह फाउंडेशन एसिड अटैक सर्वाइवर्स के ट्रीटमेंट में भी आर्थिक मदद करती है क्योंकि एसिड अटैक के बाद सर्जरी और ट्रीटमेंट काफी महंगे भी होते हैं।

इस फाउंडेशन ने एडिट अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की भी मदद की थी। आपको याद दिला दें कि लक्ष्मी अग्रवाल के ऊपर फिल्म 'छपाक' भी बनाई गई थी जिसे लोगों से बहुत सहराना भी मिली थी। यही नहीं साल 2013 में दिल्ली में 'Stop Acid Attack' अभियान की शुरुआत भी की गई थी। इस अभियान की वजह से बिना पहचान पत्र के एसिड की बिक्री पर रोक भी लगाई गई।

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अभी भी है बदलाव की जरूरत

छांव फाउंडेशन के डायरेक्टर आशीष शुक्ला के अनुसार आज भी हमारी सरकार को कई सारे प्रयास करने की जरूरत है ताकि एसिड अटैक सर्वाइवर्स को अच्छी जिंदगी मिल सके और वह आगे बढ़ पाएं।

कई परिवार एसिड अटैक सर्वाइवर्स को आज भी घर से बाहर तक निकलने की अनुमति नहीं होती है और इस कारण से महिलाएं खुद से भी घृणा करने लगती हैं।('बेटियों के साथ होने वाले अपराधों के लिए जिम्मेदार है प्रशासन'-निर्भया की मां)

इन सभी बेड़ियों को तोड़कर आगे निकलने के लिए अभी भी कई सारे प्रयास करने बाकी हैं जो समाज में सभी को एक साथ मिलकर करने होंगे ताकि एसिड अटैक सर्वाइवर्स अपने आप से नफरत करने की जगह अपराधियों का डटकर सामना कर सकें।

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image credit-Travel advisor/facebook/zomato

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