प्रेग्नेंसी के दौरान मां और विकसित होते बच्चे के स्वास्थ्य को जांचने के लिए कई टेस्ट्स किए जाते हैं। खास तरह के टेस्ट्स मैटरनल मार्कर टेस्ट्स कहलाते हैं जो विकसित होते बच्चे में जिनेटिक और जन्मजात विकार की जांच करते हैं। आमतौर पर ये टेस्ट्स विकसित होते बच्चे में किसी तरह की क्रोमोसोमल असामान्यताओं की संभावना को जांचने के लिए किए जाते हैं। क्रोमोसोमल असामान्यताएं बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास पर असर डाल सकती हैं। इसलिए ये जरूरी है कि रूटीन चेकअप और टेस्ट्स हर ट्राइमेस्टर में किए जाएं ताकि बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर निश्चिंत हुआ जा सके और अगर कोई समस्या आए तो उसका रास्ता ढूंढा जा सके। डुअल और क्वाड्रपल मार्कर टेस्ट दोनों ही इस कारण से किए जाते हैं।
क्या होता है डुअल मार्कर टेस्ट?
डुअल मार्कर टेस्ट एक ब्लड टेस्ट होता है जो आमतौर पर प्रेग्नेंसी के 11वें से 13वें हफ्ते के बीच किया जाता है, जब मां अपने पहले ट्राइमेस्टर में होती है। ये टेस्ट आमतौर पर एनटी स्कैन के साथ किया जाता है। एनटी स्कैन की मदद से बच्चे की गर्दन के नीचे की स्किन में मौजूद फ्लूइड का पता लगाया जाता है। इन दोनों ही टेस्ट्स से ये पता लगाने में मदद मिलती है कि पैदा होने वाले बच्चे में किसी तरह की क्रोमोसोमल असमानता तो नहीं है।
क्या है क्वाड्रपल मार्कर टेस्ट?
यह प्रेग्नेंसी के 15वें और 20वें हफ्ते के बीच किया जाने वाला ब्लड टेस्ट होता है। डुअल मार्कर टेस्ट की तरह क्वाड्रपल मार्कर टेस्ट इस बात की जांच करता है और जानकारी देता है कि क्या प्रेग्नेंसी में बच्चा किसी जिनेटिक विकार के साथ पैदा हो सकता है।
सभी गायनेकोलॉजिस्ट ये सलाह देते हैं कि हर प्रेग्नेंसी के दौरान इन टेस्ट्स को किया जाना चाहिए।
डुअल और क्वाड्रपल मार्कर टेस्ट्स किन चीज़ों का पता लगाते हैं?
ये स्क्रीनिंग टेस्ट्स सफलतापूर्वक इन मेडिकल परिस्थितियों का पता लगाने के लिए किए जाते हैं:
1. न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स-
न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स में सबसे आम डिफेक्ट्स होते हैं स्पाइना बिफिडा और एनेन्सिफेली। एनेन्सिफेली (अभिमस्तिष्कता) में असल में बच्चे का दिमाग पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता है और बच्चे के बचने की गुंजाइश काफी कम हो जाती है। स्पाइना बिफिडा में स्पाइनल हड्डियां अजीब तरह की ओपनिंग के साथ होती हैं जो शरीर के निचले हिस्से को कंट्रोल करने वाली तंत्रिकाओं को नुकसान पहुंचा सकती हैं। इससे पैरों का लकवा, कमजोरी, ब्लैडर और मल त्याग पर संयम रखने की क्षमता नहीं रह जाती। मेटरनल सीरम टेस्ट प्रेग्नेंसी के दूसरे ट्राइमेस्टर में किया जाता है जो इस स्थिति का पता सार्थक तौर पर लगा सकता है।
2. डाउन सिंड्रोम-
ये एक क्रोमोसोमल असमानता है जो महत्वपूर्ण बौद्धिक विकलांगता पैदा करती है। डाउन सिंड्रोम एक जिनेटिक समस्या है जो तब होती है जब एक असमान्य सेल का विभाजन क्रोमोसोम 21 की अतिरिक्त कॉपी या फिर आधी कॉपी के तौर पर हो जाता है। ये अतिरिक्त जिनेटिक मटेरियल बच्चे में विकासात्मक परिवर्तन और शारीरिक परिवर्तन होते हैं। इससे कई डिफेक्ट्स होते हैं जैसे दिल से जुड़ी समस्याएं, देखने और सुनने की समस्या। डाउन सिंड्रोम की बेहतर समझ और शुरुआती हस्तक्षेप इस विकार के साथ बच्चों और वयस्कों के लिए जीवन की गुणवत्ता को बहुत बढ़ा सकते हैं और उन्हें जीवन को पूरा करने में मदद कर सकते हैं।
3. एडवर्ड सिंड्रोम-
एडवर्ड सिंड्रोम तब होता है जब क्रोमोसोम 18 से एक अतिरिक्त जिनेटिक मटेरियल आ जाता है। इस अतिरिक्त मटेरियल का बच्चे के विकास पर प्रभाव पड़ता है और बाहरी और आंतरिक शारीरिक विकार होते हैं। यह स्थिति शारीरिक अक्षमताओं जैसे दिल की बीमारी, पाचन तंत्र में विकार और विकास की कमी की ओर ले जाती है। एडवर्ड सिंड्रोम से पीड़ित अधिकांश बच्चे एक वर्ष से अधिक समय तक जीवित नहीं रहते हैं। और जो जीवित रहते हैं, उन्हें गंभीर मेडिकल और विकासात्मक समस्याएं होती हैं जिनके कारण उन्हें निरंतर देखभाल और ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
अगर रिजल्ट पॉजिटिव है तो क्या होता है?
डुअल और क्वाड्रॉपल मार्कर टेस्ट रिजल्ट में मां इन कैटेगरी में आएगी- स्क्रीन पॉजिटिव/ हाई रिस्क कैटेगरी या स्क्रीन निगेटिव/ लो-रिस्क कैटेगरी। अगर रिजल्ट में हाई रिस्क प्रेग्नेंसी आती है तो डॉक्टर ये सलाह देगा कि आप ज्यादा विकसित और इन्वेसिव टेस्ट्स जैसे सीवीएस सैंपलिंग और अमनिओसेंटेसिस आदि करवाएं। ये डायग्नोस्टिक इस बात का पता लगाने में सक्षम होंगे कि प्रेग्नेंसी पर असर पड़ा है या नहीं। कोरियोनिक विलस सैंपलिंग टेस्ट (सीवीएस) प्रेग्नेंसी की शुरुआत में ही करवाया जाता है 10वें से 13वें हफ्ते के बीच। अमनिओसेंटेसिस में यूट्रस से अमनियोटिक फ्लूइड को निकाला जाता है और उसे टेस्ट किया जाता है जिसके बाद आगे का निर्णय लिया जाता है। ये टेस्ट 14वें से 18वें हफ्ते के बीच किया जाता है।
डुअल मार्कर टेस्ट और क्वाड्रपल मार्कर टेस्ट दोनों ही आपको ये बताते हैं कि आपकी हाई रिस्क प्रेग्नेंसी है या फिर लो रिस्क प्रेग्नेंसी है। अगर नतीजों में हाई रिस्क प्रेग्नेंसी आती है तो आपको और ज्यादा डिटेल में बेहतर डायग्नोसिस करवाने होंगे।
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हाई रिस्क प्रेग्नेंसी से डील करने के लिए कौन से उपाय किए जाते हैं?
अगर डुअल और क्वाड्रपल मार्कर टेस्ट्स में हाई रिस्क प्रेग्नेंसी सामने आती है तो इसका मतलब ये होगा कि जो बच्चा पैदा होगा उसमें क्रोमोसोमल विकार होंगे। जहां क्रोमोसोमल असमानताओं के लिए कोई मेडिकल इलाज नहीं है वहीं बच्चे को खास विकासात्मक देखभाल और मेडिकल अटेंशन का फायदा मिल सकता है। ऐसे बच्चों को कई थेरेपी से फायदा मिलता है जैसे स्पीच थेरेपी, व्यावसायिक थेरेपी, भौतिक थेरेपी। डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को स्कूलों में खास शिक्षा की जरूरत भी होती है।
अगर आपको कोई समस्या है, तो डुअल और क्वाड्रॉपल मार्कर टेस्ट आपको इससे अवगत कराने में मदद करते हैं और आपको उस समस्या से लड़ने की तैयारी करने में सक्षम बनाते हैं। इससे आप खुद को और परिवार को स्थिति के बारे में शिक्षित कर सकते हैं और एक ऐसे बच्चे को संभालने के लिए बेहतर तैयारी कर सकते हैं। यह आपको मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से तैयार होने में भी मदद करता है। जब बच्चा आपके जीवन में आता है तो आपको उस पर एक सामान्य बच्चे की तुलना में अतिरिक्त ध्यान और देखभाल करने की आवश्यकता होती है।