Congenital Hypothyroidism: क्या बच्चों में जन्म से हो सकता है थायराइड? एक्सपर्ट से जानें

जन्मजात हाइपोथायराइडिज्‍म एक छुपे हुए खतरे के रूप में जाना जाता है। इस बीमारी का पता लगाने के लिए जन्म के पहले 24 से 72 घंटों के अंदर हील-प्रिक ब्लड टेस्ट किया जाता है।
  • Aiman Khan
  • Editorial
  • Updated - 2025-01-24, 16:45 IST
image

हाइपोथायरायडिज्म एक हार्मोनल विकार है जो, खराब लाइफस्टाइल के कारण किसी को भी अपनी चपेट में लेता है। इसमें थायराइड ग्रंथि, थायराइड हार्मोन का उत्पादन कम करती है। अब तक हम जानते थे कि यह बीमारी सिर्फ बड़ों को होती है लेकिन आपको बता दें कि यह जन्मजात भी होती है। भारत में हर साल लगभग 3.02 मिलियन बच्चे प्रीमैच्योर जन्म लेते हैं, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है। प्रीमेच्योरिटी के साथ कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं जुड़ी होती हैं, जिनमें से एक प्रमुख समस्या जन्मजात हाइपोथायराइडिज्‍म है।

इसे अक्सर एक छुपे हुए खतरे के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इसके लक्षण सामान्य होते हैं और अन्य स्थितियों के लक्षणों से मिल सकते हैं। अगर समय रहते इसे न पहचाना जाए, तो यह नवजातों के शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित कर सकता है। सही समय पर इलाज से दीर्घकालिक विकास में देरी को रोका जा सकता है और इन बच्चों का स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है। डॉक्टर टी.जे.एंटनी, निदेशक, नवजात शिशु रोग, पीडियाट्रिक केयर, मेदांता, गुड़गांव ने इस बारे में जानकारी साझा की है।

जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म क्या है और क्यों होता है?

hypothyroidism in child

जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म एक ऐसी स्थिति है जिसमें थायराइड ग्रंथि पर्याप्त मात्रा में थायराइड हार्मोन का उत्पादन नहीं करती है। ये हार्मोन मस्तिष्क के विकास, वृद्धि और मेटाबॉलिज्म के लिए जरूरी होते हैं।यह स्थिति थायराइड ग्रंथि के अविकसित होने, हार्मोन उत्पादन में दोष या आयोडीन की कमी के कारण हो सकती है। अगर इसका इलाज नहीं किया जाता, तो इससे शिशु को खाने पीने में समस्या, सुस्ती, पीलिया और ग्रोथ में दिक्कत हो सकती है। समय के साथ यह मानसिक विकलांगता और शारीरिक वृद्धि में रुकावट का कारण बन सकता है,इसलिए इसे जल्द से जल्द पहचानना और इलाज करना जरूरी है।

जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म का पता केसै चलता है?

जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म के कुछ शुरुआती लक्षण जैसे लंबे समय तक पीलिया, भूख की कमी,आवाज में खराश हो सकते हैं। जन्म के पहले 24 से 72 घंटों के अंदर टीएसएच का पता लगाने के लिए हील-प्रिक ब्लड टेस्ट किया जाता है। वैश्विक स्तर पर जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म नवजातों में 0.05 फीसदी मामलों में होता है। हालांकि, भारत में इसके मामले अधिक देखने को मिलते लगभग 0.1 फीसदी नवजात इससे प्रभावित होते हैं।

जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म के कुछ शुरुआती लक्षण जैसे लंबे समय तक पीलिया,


इसे भी पढ़ें-HMPV के बीच गुलियन बेरी सिंड्रोम की दस्तक, जानें कारण, लक्षण और बचाव के उपाय

जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म का इलाज कैसे किया जाता है?

newborn-baby-hypothyroid

हाइपोथायरायडिज्म का पता चलते ही इसका,इलाज लेवोथायरोक्सिन से किया जाता है।, यह जो शरीर में हार्मोन की कमी को पूरा करता है। यह सरल और प्रभावी उपचार है, जो जितना जल्दी शुरू किया जाए उतना बेहतर होता है। ऐसा करने से बच्चे की सामान्य वृद्धि औरमानसिक विकास सुनिश्चित किया जा सके। यह इलाज बच्चों में कमजोरी, सुस्ती, और भूख की कमी जैसी समस्याओं को हल करने में मदद करता है।

इसे भी पढ़ें-स्मोकिंग से फेफड़े ही नहीं, किडनी को भी हो सकता है नुकसान

इस आर्टिकल के बारे में अपनी राय भी आप हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। साथ ही, अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो, तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।

Image Credit- Freepik

HzLogo

HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!

GET APP