हाइपोथायरायडिज्म एक हार्मोनल विकार है जो, खराब लाइफस्टाइल के कारण किसी को भी अपनी चपेट में लेता है। इसमें थायराइड ग्रंथि, थायराइड हार्मोन का उत्पादन कम करती है। अब तक हम जानते थे कि यह बीमारी सिर्फ बड़ों को होती है लेकिन आपको बता दें कि यह जन्मजात भी होती है। भारत में हर साल लगभग 3.02 मिलियन बच्चे प्रीमैच्योर जन्म लेते हैं, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है। प्रीमेच्योरिटी के साथ कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं जुड़ी होती हैं, जिनमें से एक प्रमुख समस्या जन्मजात हाइपोथायराइडिज्म है।
इसे अक्सर एक छुपे हुए खतरे के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इसके लक्षण सामान्य होते हैं और अन्य स्थितियों के लक्षणों से मिल सकते हैं। अगर समय रहते इसे न पहचाना जाए, तो यह नवजातों के शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित कर सकता है। सही समय पर इलाज से दीर्घकालिक विकास में देरी को रोका जा सकता है और इन बच्चों का स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है। डॉक्टर टी.जे.एंटनी, निदेशक, नवजात शिशु रोग, पीडियाट्रिक केयर, मेदांता, गुड़गांव ने इस बारे में जानकारी साझा की है।
जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म क्या है और क्यों होता है?
जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म एक ऐसी स्थिति है जिसमें थायराइड ग्रंथि पर्याप्त मात्रा में थायराइड हार्मोन का उत्पादन नहीं करती है। ये हार्मोन मस्तिष्क के विकास, वृद्धि और मेटाबॉलिज्म के लिए जरूरी होते हैं।यह स्थिति थायराइड ग्रंथि के अविकसित होने, हार्मोन उत्पादन में दोष या आयोडीन की कमी के कारण हो सकती है। अगर इसका इलाज नहीं किया जाता, तो इससे शिशु को खाने पीने में समस्या, सुस्ती, पीलिया और ग्रोथ में दिक्कत हो सकती है। समय के साथ यह मानसिक विकलांगता और शारीरिक वृद्धि में रुकावट का कारण बन सकता है,इसलिए इसे जल्द से जल्द पहचानना और इलाज करना जरूरी है।
जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म का पता केसै चलता है?
जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म के कुछ शुरुआती लक्षण जैसे लंबे समय तक पीलिया, भूख की कमी,आवाज में खराश हो सकते हैं। जन्म के पहले 24 से 72 घंटों के अंदर टीएसएच का पता लगाने के लिए हील-प्रिक ब्लड टेस्ट किया जाता है। वैश्विक स्तर पर जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म नवजातों में 0.05 फीसदी मामलों में होता है। हालांकि, भारत में इसके मामले अधिक देखने को मिलते लगभग 0.1 फीसदी नवजात इससे प्रभावित होते हैं।
जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म के कुछ शुरुआती लक्षण जैसे लंबे समय तक पीलिया,
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जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म का इलाज कैसे किया जाता है?
हाइपोथायरायडिज्म का पता चलते ही इसका,इलाज लेवोथायरोक्सिन से किया जाता है।, यह जो शरीर में हार्मोन की कमी को पूरा करता है। यह सरल और प्रभावी उपचार है, जो जितना जल्दी शुरू किया जाए उतना बेहतर होता है। ऐसा करने से बच्चे की सामान्य वृद्धि औरमानसिक विकास सुनिश्चित किया जा सके। यह इलाज बच्चों में कमजोरी, सुस्ती, और भूख की कमी जैसी समस्याओं को हल करने में मदद करता है।
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