भारत एक समृद्ध कला का देश है। यहां की मिट्टी में भी आपको कला की खुशबू आ जाएगी। पग-पग पर बदलती संस्कृतियां आपको हैरान कर देंगी और परंपराओं के बारे में तो पूछिए ही मत। भारत में हजारों साल पुरानी परंपराओं को आज भी वैसे ही निभाया जाता है, जैसे पहले के समय में निभाया जाता था। इन परंपराओं में भी आपको कला की झलक नजर आएगी। हां, वर्तमान समय में आधुनिकता की परत जहां हर चीज पर चढ़ गई है वहीं कुछ कलाएं ऐसी हैं, जो अब मॉडर्न हो चली हैं, वहीं कुछ ने दम तोड़ दिया है और विलुप्त हो गई हैं। मगर इन सभी के बीच बिहार का "छापा वर्क" आज भी उतने ही पारंपरिक ढंग से अपनी मौजूदगी की गवाही दे रहा है, जैसे सालों पहले उसका दबदबा था। जी हां, हम उसी छापा वर्क की बात कर रहे हैं, जिसके बिना आज भी बिहारी मुस्लमानों में निकाह की रस्म को अधूरा माना जाता है। जी हां, हम उसी छापा वर्क की बात कर रहे हैं, जो पटना से लेकर पाकिस्तान तक बहुत पसंद किया जाता है। हालांकि, वक्त के साथ इस कला को पहचानने वाली नजरें कम ही बची हैं, मगर यह आर्ट आज भी जिंदा है और बहुत ही खूबसूरत नजर आती है। आज हम आपको छापा वर्क से जुड़े कुछ बेहद रोचक तथ्य अपने आर्टिकल में बताएंगे, जिन्हें पढ़ने के बाद आप भी अपनी वॉर्डरोब में इन्हें जगह जरूर देंगी।
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क्या है बिहारी छापा वर्क
यह ब्लॉक प्रिंटिंग की तरह होता है, मगर इसमें स्याही की जगह गोल्ड, सिलवर और कॉपर जैसे चमकीले और भड़कीले फॉइल जैसे पदार्थ का प्रयोग किया जाता है। एक समय था जब केवल लाल और हरे रंग के कपड़ों पर ही छापा वर्क किया जाता था, मगर अब आपको ट्रेडिशनल और अंग्रेजी दोनों ही रंगों के कपड़ों में छापा वर्क मिल जाएगा। इसमें लकड़ी के ब्लॉक्स से कपड़े के ऊपर ठप्पा लगया जाता है। यह वर्क कपड़ों केवल तब तक रहता है, जब तक आप कपड़े को पानी में न भिगो दें। इतना ही नहीं, जो भी छापा वर्क वाले कपड़े पहनता है, उसकी चमड़ी तक में चमकीली-चमकीली छपाई नजर आने लग जाती हैं। मगर छापा वर्क वाले कपड़े पहनने के बाद महिला की खूबसूरती जो खिल कर आती है, उसकी गणना करना आसान नहीं होता है।
छापा वर्क का इतिहास
मारवा, बिहार और उत्तर प्रदेश में एक समुदाय को रंग्रेज कहा गया है। यह अरब और ईरान से आए हुए वो लोग हैं, जो भारत आकर भारतीय हो गए। इनमें अधिकतर मुसलमान धर्म के लोग हैं। यही लोग छापा वर्क करते हैं और सबसे ज्यादा छापा वर्क आपको बिहारशरीफ, औरंगाबाद, दरभंगा और पटना का सब्जीबाग में नजर आएगा। आपको बता दें कि आज भी बिहारी मुसलमानों में निकाह में दूल्हे के घर से दुल्हन के लिए ओरिजनल छापा वर्क वाला जोड़ा जाता है। यह साड़ी, शरारा या फिर लहंगा कुछ भी हो सकता है। यह हैंड प्रिंटेड छापा वर्क होता है। शादी में दुल्हन और दूल्हा पक्ष के भी सभी लोग छापा वर्क वाले कपड़े ही पहनते हैं।
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कैसे स्टोर करें छापा वर्क
छापा वर्क को बहुत लंबे वक्त तब आप कपड़ों में वैसे ही नहीं पाएंगी जैसे वो छपाई के वक्त आए थे। क्योंकि कपड़े पर जो छपाई की गई होती है, वह बदन में भी चिपकती है और वक्त के साथ हल्की पड़ती जाती है और खत्म भी हो जाती है। हां, आप 50 से 100 रुपये तक में किसी भी फैब्रिक पर यह वर्क करा सकती हैं और जी भरने के बाद कपड़े को धो लें और फिर से जब आपको यह प्रिंट करवाना है तो आप कपड़े में करवा सकती हैं।
वर्तमान में छापा वर्क आर्ट की हालत
फैशन के रंग ढंग से यह कला भी अछूती नहीं है। आपको आज बाजार में फॉइल प्रिंटिंग वाले बहुत सारे आउटफिट्स मिल जाएंगे। यह प्रिंटिंग परमानेंट होती है और छापा वर्क जैसी ही नजर आती है। आपको अच्छे-अच्छे ब्रांड में भी इस वर्क के आउटफिट्स मिल जाएंगे।
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