आखिर सावन में ही क्यों खाया जाता है घेवर? जानें इस लजीज मिठाई से जुड़ा रोचक इतिहास

Ghevar History: सावन का महीना शुरू होते ही आपको भी घेवर खाने का तो मन करने ही लगा होगा, लेकिन आपने कभी सोचा है आखिर सावन के महीने में ही क्यों घेवर खाया जाता है। साथ ही, आखिर घेवर खाने की शुरुआत कैसे हुई और क्या है इसके पीछे का इतिहास। आज हम आपको इस लेख में इन्हीं बातों को विस्तार से बताने जा रहे हैं।
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सावन का महीना शुरू होते ही मौसम में भी परिवर्तन देखने को मिलता है। इस पावन महीने में व्यंजनों की महक, सुहावना मौसम और त्योहारों की रौनक देखने लायक होती है। इसके साथ ही यह पूरा महीना शिव भक्तों के लिए बेहद खास होता है। कांवड़ यात्रा और शिवजी की पूजा और बम बम बोले के जयकारों से माहौल बेहद खुशनुमा हो जाता है। इसके अलावा सावन के महीने में हलवाइयों की दुकानों से आने वाली घेवर की महक अपनी ओर खींचने पर मजबूर कर देती है। सुनहरे रंग के जालीदार चाशनी में डूबे हुए घेवर देखकर मन ललचाने लगता है। सावन के महीने में घेवर का प्रमुख महत्व होता है। यह मिठाई स्पेशल सावन के महीने में ही बनती है। हरियाली तीज और रक्षाबंधन की तो यह पारंपरिक मिठाई है, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है आखिर सावन महीने में ही क्यों घेवर बनाया जाता है। साथ ही, कैसे इस मिठाई का प्रचलन शुरू हुआ। आखिर इसके पीछे क्या वजह है, तो आज हम आपको घेवर के मानसून में बनने की वजह और इसका रोचक इतिहास बताने जा रहे हैं।

सावन में ही क्यों बनता है घेवर?

ऐसा कहा जाता है कि मानसून सीजन में वातावरण में काफी नमी होती है। साथ ही, इस मौसम में वात और पित्त की समस्या भी बहुत देखने को मिलती है। ऐसे में मावा और बाकि अन्य चीजों से बनने वाली मिठाइयों की तुलना में घेवर को घी, चाशनी और नींबू की अम्लीयता से फर्मेंट करके तैयार किया जाता है। ऐसे में यह सभी चीजें मिलकर शरीर में वात और पित्त को शांत रखने में मदद करती हैं। ऐसे में यदि हम मानसून सीजन में पड़ने वाले सावन के महीने में एक निश्चित मात्रा में घेवर का सेवन करते हैं तो इससे शरीर में किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होगी।

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घेवर से जुड़ा रोचक इतिहास

घेवर का सेवन काफी प्राचीन काल से चला आ रहा है। ऐसे में इसके इतिहास को लेकर भी अलग-अलग तरह के मत हैं। कुछ फूड हिस्टोरियन्स के अनुसार घेवर मिठाई भी पर्शिया से मुगलों के साथ भारत पहुंची थी। इसके अलावा कई मत इसके ईरानी मूल से भी जुड़ा होने की बात कहते हैं। ऐसे में घेवर के इतिहास को लेकर अभी तक कोई ठोस सबूत नहीं हैं। इसके अलावा घेवर का ताल्लुक राजस्थान के राजघरानों से भी जुड़ा है। इसी के चलते राजस्थान का प्रमुख पर्व हरियाली तीज के मौके पर सिंजारे में और वैसे भी घेवर जरूर घरों में लाया जाता है। ऐसे में घेवर की उत्पत्ति राजस्थान से भी बताई जाती है।

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बताया जाता है आमेर के राजा राजधानी जयपुर के बसने से पहले त्योहारों पर सांभर से घेवर मंगवाया करते थे। और जयपुर बसने के बाद अलग-अलग जगह से कारीगर लाकर उन्हें जयपुर बसाया फिर वो वहीं घेवर बनाने लगे। ऐसे में आजतक घेवर राजस्थान के कई त्योहारों की शान है और आपको यह हर पर्व के मौके पर देखने को राजस्थान के शहरों में मिल जाएगा। राजस्थान के अलावा आज यह उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा में भी खूब बिकता है।

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Image Credit: Freepik/amazon/herzindagi

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