जब-जब कोलकाता की बात आती है, तो हम उसके आर्किटेक्चर पर बात करते हैं। वहां होने वाले दुर्गा उत्सव की बात करते हैं। इसी तरह कोलकाता गर्व करता है अपने व्यंजनों और खासतौर से अपनी मिठाइयों को लेकर। इस शहर के पास ऐसी मिठाइयां हैं, जिनके ऊपर युद्ध तक छिड़ा है।
रसगुल्ले को लेकर बंगाल और ओडिशा की लड़ाई तो सभी जानते हैं। इसके अलावा संदेश, चमचम, परवल की मिठाई के अलावा मिष्टी दोई है, जिसका मजा लेने के लिए सब बेसब्री से इंतजार करते हैं। जिन्हें नहीं पता उन्हें बता दें कि यह एक तरह से मीठी दही ही होती है।
फर्मेंट की हुई यह मिठाई किसी ट्रीट से कम नहीं है। वहीं, बात अगर इसके इतिहास की करें, तो माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति कुछ 150 साल पहले हुई थी। आज चलिए हम जानते हैं कि इसे बनाने का आइडिया किसे आया और कैसे यह इतनी लोकप्रिय हुई।
बुल्गारिया से माना जाता है रिश्ता
आपको शायद न पता हो, लेकिन रिपोर्ट्स कहती हैं कि इसका बुल्गारिया से भी रिश्ता है। जब बंगाल की मिठाइयों की बात आती है, तो ऐसा माना जाता है कि उन्हें किसी न किसी यूरोपीय देश में पहले बनाया गया था। मिष्टी दोई के साथ भी ऐसा ही है। ऐसा माना जाता है कि मिष्टी दोई बनाने के लिए जिस यीस्ट का इस्तेमाल होता है, उसे लैक्टोबैसिलस बुल्गारिकुश कहते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश बल्गेरियाई भोजन दही के स्वाद के साथ आते हैं। जैसे उनकी सिग्नेचर डिश टायरेटर, यह एक प्रकार का ठंडा सूप है। यह डिश भी दही से बनाई जाती है। तो क्या ऐसा कहना गलता है कि मिष्टी दोई की उत्पत्ति पहले बुल्गारिया में हुई? इतना ही नहीं, वहां के लोग योगर्ट बहुत पसंद करते हैं और अलग-अलग तरह से इसका सेवन करते हैं।
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ऐसा माना जाता है कि लगभग 4,000 साल पहले मिष्टी दोई को खानाबदोश जनजातियों द्वारा जानवरों की खाल से बने थैलों में बुल्गारिया लाया गया था। दही बनाने के लिए ये बैग्स अच्छे थे और यह उसे फर्मेंट करने में भी आसान होते थे। इसलिए बुल्गारिया पहला यूरोपीय राष्ट्र बना था, जिसने यूरोप में दही की शुरुआत की थी।
बुलगारियाई वैज्ञानिक जिनका नाम योगर्ट से जुड़ा हुआ है, डॉ. स्टैमेन ग्रिगोरोव, ने अपनी लैब में लैक्टोबैसिलस यीस्ट विकसित किया था। इससे दही फर्मेंट होती थी और उनके सम्मान में यीस्ट को उन्हीं का नाम दिया गया। आपको बता दें कि बुल्गारिया में दही का एक संग्रहालय भी है।
बंगाल में 150 साल पहले बनी थी मिष्टी दोई
वहीं, बंगाल में मिष्टी दोई की उत्पत्ति 150 साल पहले हुई थी, ऐसा माना जाता है। कहा जाता है कि यहां के बोस परिवार ने इसे पहले तैयार किया था। शेरपुर स्थित बोस परिवार ने मिष्टी दोई बनाई। बोगरा के तत्कालीन नवाब अल्ताफ अली चौधरी अक्सर परिवार को अपमानित करते थे। उन्होंने परिवार को एक गांव से बाहर जमीन दी, लेकिन बोस परिवार की काबिलियत से मिठाई की लोकप्रियता गांव और शहर तक जा पहुंची।
ऐसा भी कहा जाता है कि इसकी उत्पत्ति मुर्शिदाबाद के नवाबों की रसोई में हुई थी, जो मीठी और भव्य दावतों के प्रति अपने प्रेम के लिए जाने जाते थे। कहा जाता है कि नवाबों ने इसे बंगाल के लोगों से परिचित कराया था। हालांकि, बंगाल में इसकी उत्पत्ति की सही जानकारी किसी के पास नहीं है।
मिष्टी दोई का महत्व
हमारे यहां किसी भी शुभ कार्य में मिठाई का होना बहुत जरूरी है। मिठाइयां हमारे सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती हैं। उन्हें अक्सर उत्सवों और त्योहारों से जोड़ा जाता है। मिष्टी दोई भी कोई अपवाद नहीं है और बंगाली व्यंजनों का एक अभिन्न अंग है। इसे अक्सर दुर्गा पूजा, दिवाली और ईद जैसे त्योहारों के साथ-साथ शादियों और अन्य विशेष अवसरों पर भी परोसा जाता है (योगर्ट और दही के बीच का अंतर)।
बंगाली परिवारों में, इसे अक्सर घर पर तैयार किया जाता है और इसे आतिथ्य का प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि मेहमानों को यह मीठी दही परोसने से घर में सौभाग्य और समृद्धि आती है।
कोलकाता में मिष्टी दोई खाने की बेहतरीन जगहें
आप इसे पारंपरिक मिठाई की दुकानों, बढ़िया भोजन वाले रेस्तरां और यहां तक कि स्ट्रीट फूड स्टालों में भी पा सकते हैं। यह सिर्फ एक मिठाई नहीं है बल्कि बंगाल की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है, जिसे शादियों, त्योहारों और रोजमर्रा के भोजन में परोसा जाता है।
न्यू नाबा कृष्णा गिनी स्वीट्स
बोबाजार की यह दुकान 200 साल पुरानी है। मिष्टी दोई और आम दोई यहां बहुत लोकप्रिय हैं, जिनकी बनावट रेशम की तरह स्मूथ होती है।
जादब चंद्र दास
माना जाता है कि यह दुकान सत्यजीत रे और किशोर कुमार जैसी प्रसिद्ध बंगाली हस्तियों की पसंदीदा थी। इस जगह पर अभी भी मशहूर हस्तियों का आना-जाना लगा रहता है, जो अपने समारोहों के लिए मिष्टी दोई खरीदने के लिए यहां आते हैं।
अमृत मिठाई
फारियापुकुर में स्थित, यह प्रसिद्ध दुकान उन वरिष्ठ नागरिकों के बीच समान रूप से लोकप्रिय है जो यहां की मिष्टी दोई खाकर बड़े हुए हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि इस जगह की मिष्टी दोई का स्वाद आज भी वैसा ही है, जैसा वर्षों पहले था।
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जसोदा मिस्टान्न भण्डार
सबसे अनोखी मिष्टी दोई इस तलतला दुकान में मिलती है। यहां की दोई रंग में बिल्कुल सफेद है और आज भी इसका स्वाद बिल्कुल नहीं बदला।
जुगल का
1923 में खुली इस दुकान की गाढ़ी, मलाईदार और बेहद स्वादिष्ट मिष्टी दोई लोगों को बहुत पसंद आती है। राशबिहारी एवेन्यू पर स्थित, यहां मिष्टी दोई की सुपर मलाईदार बनावट के पीछे का रहस्य यह है कि वे केवल स्थानीय रूप से प्राप्त सामग्री का उपयोग करते हैं और दूध से कोई फैट या मलाई नहीं निकालते हैं।
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Image Credit: Freepik
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