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इन 3 जगहों पर अब भी मौजूद हैं भगवान शिव के पैरों के निशान, सावन में आप भी जरूर करें इन मंदिरों के दर्शन

देवों के देव महादेव के यदि दर्शन करना चाहते हैं, तो आपको हमारे बताए इन मंदिरों को एक्सप्लोर करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि यहां पर शिव के पैरों के निशान हैं, जिनके दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
Editorial
Updated:- 2025-07-24, 17:04 IST

हिंदू धर्म में भगवान शिव को 'देवों के देव महादेव' के रूप में पूजा जाता है। उन्हें सृष्टि के संहारक और पालक के रूप में देखा जाता है। यही कारण है कि शिव भक्तों के लिए सावन का महीना भी विशेष महत्व रखता है, जब वे भोलेनाथ की भक्ति में लीन होकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह माना जाता है कि सावन के महीने में शिव दर्शन और उनकी पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-शांति आती है।

ऐसे में कल्पना कीजिए, यदि आपको उन पवित्र स्थानों पर जाने का अवसर मिले जहां स्वयं भगवान शिव के पैरों के निशान आज भी मौजूद हैं? यह ख्याल ही भक्तों के मन में असीम श्रद्धा और उत्साह भर देगा। भारत एक ऐसा देश है जहां आध्यात्मिकता और पौराणिक कथाएं हर कोने में बसी हुई हैं और ऐसे कई प्राचीन मंदिर हैं जो सदियों से भगवान शिव से जुड़ी कहानियों और चमत्कारों के साक्षी रहे हैं।

इन मंदिरों में शिव के चरण चिन्हों का होना भक्तों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, क्योंकि यह उन्हें सीधे देवत्व से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है। इस लेख में हम भारत के तीन ऐसे ही पवित्र स्थानों के बारे में विस्तार से जानेंगे, जहां आप भगवान शिव के दिव्य पैरों के निशान के दर्शन कर सकते हैं और सावन के पावन अवसर पर इन मंदिरों की यात्रा करके अपनी यात्रा को और भी गहरा कर सकते हैं।

1. जागेश्वर धाम, अल्मोड़ा, उत्तराखंड

jageshwar dham

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित जागेश्वर धाम एक प्राचीन मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह जगह देवदार के घने जंगलों से घिरा हुआ है और अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। माना जाता है कि जागेश्वर धाम 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच था और यहां 125 से अधिक छोटे-बड़े मंदिर हैं।

जागेश्वर धाम में एक ऐसा पत्थर मौजूद है जिस पर भगवान शिव के चरण चिन्ह माने जाते हैं। यह चिह्न मंदिर परिसर में एक विशेष स्थान पर स्थित है और भक्त यहां आकर इन पवित्र निशानों के दर्शन करते हैं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने यहीं पर तपस्या की थी या इस स्थान पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी।

कैसे पहुंचें:

हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर हवाई अड्डा (PGH) है, जो जागेश्वर से लगभग 135 किलोमीटर दूर है। हवाई अड्डे से टैक्सी या बस द्वारा जागेश्वर पहुंच सकते हैं।

रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम रेलवे स्टेशन (KGM) है, जो जागेश्वर से लगभग 125 किलोमीटर दूर है। यहाँ से टैक्सी या बस आसानी से उपलब्ध हैं।

सड़क मार्ग: जागेश्वर उत्तराखंड के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। अल्मोड़ा से इसकी दूरी लगभग 36 किलोमीटर है। उत्तराखंड परिवहन निगम की बसें और निजी टैक्सी आसानी से मिल जाती हैं।

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2. पहाड़ी मंदिर, रांची, झारखंड

pahadi mandir ranchi

झारखंड की राजधानी रांची में स्थित पहाड़ी मंदिर एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है जो एक पहाड़ी की चोटी पर बना हुआ है। यह मंदिर न केवल अपनी धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां से पूरे शहर का मनोरम दृश्य भी दिखाई देता है। यह मंदिर ऐतिहासिक रूप से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह स्वतंत्रता सेनानियों से जुड़ा रहा है।

पहाड़ी मंदिर में एक ऐसे स्थान पर भगवान शिव के चरण चिन्ह मौजूद हैं, जहां भक्त श्रद्धापूर्वक उनके दर्शन कर सकते हैं। ऐसी मान्यता है कि यह वही स्थान है जहां भगवान शिव ने स्वयं विचरण किया था। सावन के महीने में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।

कैसे पहुंचें:

हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा बिरसा मुंडा हवाई अड्डा (IXR), रांची है, जो मंदिर से लगभग 7-8 किलोमीटर दूर है। हवाई अड्डे से टैक्सी या ऑटो-रिक्शा द्वारा आसानी से पहाड़ी मंदिर पहुंचा जा सकता है।

रेल मार्ग: रांची रेलवे स्टेशन (RNC) पहाड़ी मंदिर के सबसे करीब है, जो लगभग 2-3 किलोमीटर दूर है। स्टेशन से ऑटो या टैक्सी उपलब्ध हैं।

सड़क मार्ग: पहाड़ी मंदिर रांची शहर के केंद्र में स्थित है और स्थानीय परिवहन द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। पहाड़ी तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।

3. थिरुवेंगडू और थिरुवन्नामलाई, तमिलनाडु

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तमिलनाडु में दो अलग-अलग स्थान हैं जहां भगवान शिव के पैरों के निशान से जुड़ी मान्यताएं हैं। पहला है थिरुवेंगडू का श्वेतारण्येश्वर मंदिर, नागपट्टिनम जिले में स्थित इस मंदिर को भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन और शक्तिशाली मंदिर माना जाता है। यह 'नवग्रह स्थलों' में से एक है और बुध ग्रह से जुड़ा हुआ है।

इस मंदिर परिसर में एक ऐसा स्थान है जहां भगवान शिव के 'रुद्र पदम' मौजूद हैं। यह माना जाता है कि भगवान शिव ने यहां 'रुद्र तांडव' किया था या इस स्थान पर अपना दिव्य पदचिह्न छोड़ा था। भक्त इन पवित्र निशानों के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए दूर-दूर से आते हैं।

वहीं दूसरा मंदिर थिरुवन्नामलाई में स्थित अरुणाचलेश्वर मंदिर भगवान शिव के पंच भूतल लिंगम का प्रतिनिधित्व करता है। इस मंदिर परिसर में और अरुणाचल पहाड़ी के आसपास कई स्थानों पर भगवान शिव के चरण चिन्हों की पूजा की जाती है। सबसे प्रसिद्ध 'पदम्' अरुणाचलेश्वर पहाड़ी के ऊपर एक छोटे से मंदिर में स्थित है, जहां भक्त गिरिवालम के दौरान दर्शन करते हैं। यह माना जाता है कि भगवान शिव स्वयं यहां अग्नि लिंगम के रूप में प्रकट हुए थे और उनके चरण चिन्ह उनकी दिव्य उपस्थिति के प्रतीक हैं।

कैसे पहुंचें श्वेतारण्येश्वर मंदिर:

हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा तिरुचिरापल्ली है, जो थिरुवेंगडू से लगभग 160 किलोमीटर दूर है।

रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन सिरकाली है, जो लगभग 10 किलोमीटर दूर है। चिन्नमपलम भी एक पास का स्टेशन है।

सड़क मार्ग: थिरुवेंगडू तमिलनाडु के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। कुंभकोणम और चिदंबरम जैसे शहरों से यहाँ के लिए बसें और टैक्सी उपलब्ध हैं।

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कैसे पहुंचें अरुणाचलेश्वर मंदिर:

हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डे चेन्नई (लगभग 190 किमी) और बेंगलुरु (लगभग 200 किमी) हैं।

रेल मार्ग: थिरुवन्नामलाई रेलवे स्टेशन (TNM) शहर के भीतर ही है और प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग: थिरुवन्नामलाई सड़क मार्ग द्वारा तमिलनाडु और पड़ोसी राज्यों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। चेन्नई, बेंगलुरु, वेल्लोर, और पॉन्डिचेरी से नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं।

इन स्थानों की यात्रा करके आप भारतीय संस्कृति और इतिहास की गहराई को भी महसूस कर पाएंगे। हमें उम्मीद है कि यह लेख आपको पसंद आया होगा। इसे लाइक करें और फेसबुक पर शेयर करें। ऐसे ही लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी के साथ।

Image Credit: Freepik

 

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