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Guru Nanak Jayanti पर कर आएं लद्दाख के पत्थर साहिब गुरुद्वारा के दर्शन, यहां का नजारा देखकर हर बार आएंगी आप

यह पर्व सिख धर्म के पहले गुरु गुरु नानक देव जी के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। कई जगहों पर उत्सव से एक दिन पहले ही गुरुद्वारों में नगर कीर्तन निकाला जाता है, जिसमें भक्त झांकी, नगाड़े, भजन-कीर्तन और शबद गाते हुए जाते हैं।
Editorial
Updated:- 2025-10-27, 14:15 IST

गुरु पर्व, जिसे गुरु नानक जयंती के नाम से भी जाना जाता है। 5 नवंबर को यह पर्व पूरे देश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाएगा। यह गुरु नानक के जन्म का उत्सव है, इसलिए गुरुद्वारे में आपको भक्तों की लंबी कतारें देखने को मिलेंगी। सुबह से ही श्रद्धालु यहां अरदास करने के लिए पहुंचने लगते हैं। आने वाले भक्तों के लिए यहां लंगर की विशेष व्यवस्था की जाती है, और लोग पूरे मन से सेवा भावना के साथ उसमें मदद करते हैं। इस दिन लोग गुरु नानक से जुड़े ऐसे गुरुद्वारे में अरदास के लिए जाने का प्लान करते हैं। अगर इस साल भी आप किसी खास जगह अपने परिवार के साथ जाना चाह रही हैं, तो यह आर्टिकल आपके काम आएगा। आज के इस आर्टिकल में हम आपको लद्दाख के पत्थर साहिब गुरुद्वारा के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। अगर आप पहली बार जा रही हैं, तो आप ट्रैवल टिप्स ले सकती हैं।

पत्थर साहिब गुरुद्वारा कहां स्थित है?

यह गुरुद्वारा लद्दाख के लेह-कारगिल हाईवे पर स्थित है। यहां पहुंचने में आपको समय लग सकता है, क्योंकि यह लेह शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित है। ध्यान रखें कि यह 12,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, तो वही लोग यहां जाएं, जिन्हें सांस लेने में परेशानी न हो। यह चारों तरफ बर्फ से ढकी पहाड़ियों से घिरी हुई जगह है।

पत्थर साहिब गुरुद्वारा क्यों कहा जाता है?

पत्थर साहिब गुरुद्वारा का ख्याल भारतीय सेना द्वारा ही रखा जाता है। लद्दाख सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति सेना के साथ मिलकर, यहां भक्तों की सुरक्षा व्यवस्था का ध्यान रखते हैं। माना जाता है कि तिब्बत की यात्रा के दौरान यहां गुरु नानक देव जी आए थे। तब एक राक्षस ने उनपर विशाल पत्थर फेंका था, लेकिन गुरु जी के शरीर को छूते ही पिघल गया। इसी कारण इसे पत्थर साहिब के गुरुद्वारा के नाम से जाना जाने लगा।

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कब जा सकते हैं?

पत्थर साहिब गुरुद्वारा आप कभी भी जा सकती हैं। यह पूरे साल खुला रहता है, लेकिन सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण रास्ते कठिन हो जाते हैं। कई बार ज्यादा बर्फबारी की वजह से रास्ता बंद हो जाता है, जिससे दर्शन करना मुश्किल हो जाता है।

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कैसे जाएं?

  • लेह से दूरी लगभग 25 किमी है। आप पहले लेह शहर पहुंचे, इसके बाद गुरुद्वारे का रास्ता चुनें।
  • कार से जाने में लगभग 40 से 45 मिनट का समय लग जाता है।
  • आप यहां बस से भी जा सकती हैं। निम्मू या कारगिल जाने वाली बसें यहां पास से ही गुजरती हैं।
  • ध्यान रखें यहां ठहरने के लिए आपको होटल और गेस्ट हाउस लेना होगा।
  • लंगर और पानी की सुविधा मिलती है।
  •  यह परिवार के साथ घूमने के लिए अच्छी जगह में से एक है।

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Image Credit-  FREEPIK, Pathar Sahib

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