आज भले ही पाकिस्तान अलग देश है, लेकिन पहले यह भारत का ही हिस्सा था। इसलिए आज भी वहां हिंदू आस्था से जुड़े कई निशान मौजूद है। वहां मौजूद भारतीय लोगों की श्रद्धा वैसी ही है, जैसी भारत में लोगों की भगवान के प्रति है है।
अभी तक आपने पाकिस्तान में मौजूद हिंगलाज भवानी मंदिर के बारे में सुना होगा, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे हिंदू मंदिर के बारे में बताएंगे, जिसका इतिहास 5000 साल पुराना है।
देशभर में ऐसे कई मंदिर है जिसका इतिहास सदियों पुराना है। लेकिन ऐसा एक हिंदू मंदिर पाकिस्तान में मौजूद है। माना जाता है कि यह मंदिर महाभारत काल का है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर पाकिस्तान के चकवाल जिले से लगभग 40 किमी की दूरी पर स्थित है।
शिवरात्रि के मौके पर यहां खूब भीड़ होती है। परिसर के अंदर एक प्राचीन गुरुद्वारा के अवशेष भी हैं। जहां गुरु नानक ने 19वीं शताब्दी में दुनिया भर की यात्रा करते हुए निवास किया था।
कटासराज का ऐतिहासिक महत्व
इस मंदिर के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि यह जिस तालाब के चारों ओर यह कटास मंदिर बना है, वह भगवान शिव के आंसुओं से भरा है। कहते हैं कि भोलेनाथ अपनी पत्नी सती के साथ इसी जगह पर रहते थे।
लेकिन जब माता की मृत्यु हुई तो वह उनके जाने के दुख को सह नहीं पाए, उनके आंखो से लगातार आंसू बहते रहे।
वे इतना रोए थे, कि उनके आसूंओं से दो तालाब निर्मित हो गए। माना जाता है कि इस तालाब में स्नान करने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है।(बिष्णुपुर के इन मंदिरों के अवश्य करें दर्शन)
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कटाक्ष कुंड के नाम से जाना जाता है मंदिर
माना जाता है कि भोले बाबा के आसूंओं से दो तालाब निर्मित हुए थे। जिसमें एक तालाब कटारसराज में है और दूसरा राजस्थान के पुष्कर में है। मंदिर में स्थित इस कुंड को कटाक्ष कुंड के नाम से भी जाना जाता है। तालाब और मंदिर का नाम भी दुख व्यक्त करने वाले नाम से ही रखा गया है। कटास का अर्थ आंखों में आंसू से होता है।(वैष्णो देवी मंदिर के आसपास स्थित अद्भुत जगहें)
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पांडवोंसे जुड़ा इतिहास
इस मंदिर का इतिहास पांडवों से जोड़कर भी देखा जाता है। कटास वही जगह है, जहां पांडवों ने अपने 12 साल वनवास के काटे थे। एक दिन जंगल में चलते हुए पांडवों को प्यास लगी। उन्होंने कुछ दूरी पर कटाक्ष कुंड देखा। लेकिन उस समय कुंड पर यक्ष का अधिकार था।
उसने जल लेने आए पांडव को कहा कि आपको पहले मेरे सवालों का जवाब देना होगा, तभी आप पानी पी सकते हैं। अपने सवाल का जवाब देने पर ही जल देने को कहा। जवाब न देने पर यक्ष ने सभी पांडवों को मूर्छित कर दिया। अंत में युधिष्ठिर आए और उन्होंने अपनी बुद्धिमता का परिचय देते हुए सभी सवालों के सही जवाब दिया।
युधिष्ठिर की बुद्धिमता को देखकर यक्ष काफी प्रसन्न हो गए, उन्होंने पांडवों को वापस जीवित कर जल पीने की अनुमति दे दी।
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