क्या 1300 साल पहले हुआ था दाल-बाटी चूरमा का आविष्कार? जानिए इसकी रोचक कहानी

राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध व्यंजन दाल बाटी चूरमा है, जिसे हर कोई पसंद करता है। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि इस डिश का आविष्कार कैसे हुआ होगा? 
fascinating story behind daal baati churma
fascinating story behind daal baati churma

दाल बाटी चूरमा राजस्थान का एक पारंपरिक और लोकप्रिय व्यंजन है, जो अपने अनोखे स्वाद और पौष्टिकता के लिए जाना जाता है। यह केवल एक भोजन नहीं, बल्कि राजस्थान की समृद्ध संस्कृति, परंपराओं और जीवनशैली का प्रतीक भी है। यह व्यंजन राजस्थान के वीर योद्धाओं, भव्य किलों और रेगिस्तानी जीवन की कठिनाइयों की कहानी को दर्शाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दाल बाटी चूरमा की शुरुआत कैसे हुई?

दाल बाटी चूरमा एक ऐसा व्यंजन है, जो सदियों से अपनी पहचान बनाए हुए है। हालांकि, समय के साथ इसमें कुछ बदलाव भी हुए हैं।

  • दाल- पांच तरह की दालों से बनी पौष्टिक और मसालेदार करी होती है, जिसे घी और मसालों के साथ तैयार किया जाता है।
  • बाटी- गेहूं के आटे से बनी कठोर और कुरकुरी बॉल्स, जिन्हें आग में सेंका जाता है।
  • चूरमा- घी और गुड़ या चीनी से बनी मीठी और क्रम्बल मिठाई होती है।

बाटी की उत्पत्ति

origin of Daal Baati Churma

दाल बाटी चूरमा का सफर साधारण बाटी से शुरू हुआ। बाटी की कहानी राजस्थान के राजपूत योद्धाओं और वहां की कठिन जलवायु से जुड़ी हुई है। राजस्थान के सूखे इलाकों में पानी की कमी और लंबी लड़ाइयों के दौरान ऐसा भोजन जरूरी था जो जल्दी तैयार हो, पौष्टिक हो और लंबे समय तक खराब न हो। यही जरूरत बाटी के जन्म का कारण बनी।

ऐसा माना जाता है कि बप्पा रावल के शासनकाल में बाटी युद्ध के समय का एक महत्वपूर्ण भोजन था। युद्ध पर जाने से पहले, राजपूत सैनिक गेहूं के आटे से बनी छोटी गोल बाटियों को रेगिस्तान की गरम रेत में दबा देते थे। जब वे युद्ध से लौटते, तो ये बाटियाँ प्राकृतिक रूप से पक चुकी होती थीं। बस धूल हटाकर, वे इन्हें देसी घी में डुबोकर छाछ या दही के साथ खाते थे।

दाल का आगमन

शुरुआत में बाटी को केवल छाछ या दही के साथ खाया जाता था, लेकिन समय के साथ इस व्यंजन में बदलाव आया। जब गुप्त साम्राज्य मेवाड़ पहुंचा, तो उन्होंने बाटी के साथ दाल को मिलाने का विचार पेश किया। इससे यह व्यंजन और अधिक स्वादिष्ट और पौष्टिक बन गया।

पारंपरिक रूप से, दाल बाटी में कई तरह की दालों का मिश्रण किया जाता है, जैसे- अरहर (तूर) दाल, चना दाल, मूंग दाल और उड़द दाल। इन दालों को घी, लहसुन, प्याज और सुगंधित मसालों के साथ पकाया जाता है, जिससे इसका स्वाद गहरा और समृद्ध हो जाता है।

चूरमा का आविष्कार

चूरमा एक ऐसा व्यंजन है, जिसकी खोज गलती से हुई। कहा जाता है कि मेवाड़ के गुहिलोट कबीले के एक रसोइए से गलती से कुछ बाटियों पर गन्ने का रस गिर गया। इससे बाटियां नरम और गीली हो गईं। जब घर की महिलाओं ने इसे चखा, तो उन्होंने इसे एक नई मिठाई के रूप में अपनाया। महिलाएं चाहती थीं कि बाटियां नरम रहें, ताकि पुरुषों के लौटने तक वे खाने योग्य बनी रहें। धीरे-धीरे, गुड़ या गन्ने के रस में बाटियों को भिगोने की परंपरा शुरू हुई, जिससे यह मीठे चूरमे का रूप लेने लगी।

चूरमा एक मीठा व्यंजन है, जो दाल और बाटी के साथ मिलकर इस पारंपरिक डिश को पूरा करता है। चूरमा की खासियत यह है कि यह बाटी के कुरकुरेपन और दाल के मसालेदार स्वाद को संतुलित करता है। क्रम्बल की हुई बाटी, शुद्ध घी और मीठे स्वाद के साथ यह डिश न केवल स्वादिष्ट होती है, बल्कि ऊर्जा देने वाली भी होती है।

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दाल बाटी चूरमा पारंपरिक रूप से कैसे परोसा जाता है?

Daal Baati Churma historical significance

राजस्थान में दाल बाटी चूरमा को विशेष अंदाज में परोसा जाता है। सबसे पहले, बाटी को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर शुद्ध घी में डुबोया जाता है। फिर इस पर गर्मागर्म दाल डाली जाती है, जिससे इसका स्वाद और बढ़ जाता है। चूरमा को साइड में परोसा जाता है, ताकि लोग इसे अपने स्वाद के अनुसार खा सकें। इस पारंपरिक व्यंजन को और भी स्वादिष्ट बनाने के लिए इसे चटनी, अचार और ताज़ा छाछ के साथ परोसा जाता है। पहले यह सिर्फ राजस्थान तक सीमित था, लेकिन अब यह भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध हो चुका है। आजकल, स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता के कारण रेस्टोरेंट्स में बेक्ड बाटी, ग्लूटेन-फ्री चूरमा और कम तेल में बनी दाल भी मिलने लगी है।

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Image Credit- freepik

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