दालचीनी एक ऐसा मसाला जिसकी तेज खुशबू खाने का स्वाद बदल देता है। इसके कई फायदे गिनाए जाते हैं। खाने में थोड़ा ज्यादा इस्तेमाल कर ली जाए तो स्वाद निखरने की जगह बिगड़ने लगता है। आज भले ही इसकी कद्र आप इतनी नहीं करते, लेकिन एक समय था जब इसके पीछे जंग छिड़ गई थी।
आपको जानकर हैरानी होगी कि एक समय में इस मसाले को सिर्फ उपहार के रूप में भेंट किया जाता था। दालचीनीका इतिहास लंबा और काफी नाटकीय है। यह समृद्ध मसाला पुडिंग, रोल आदि में उपयोग किया था, लेकिन इसका जटिल स्वाद दुनिया की बदलती स्थिति का प्रतिबिंब रहा है। चलिए आज आपको इसके समृद्ध इतिहास के बारे में हम इस आर्टिकल में बताएं।
क्या श्रीलंका से आई दालचीनी?
मूल रूप से श्रीलंका के हरे-भरे द्वीप के मूल निवासी, पूर्व में सीलोन, लॉरेल के पेड़ की सूखी छाल का उपयोग सदियों से होता आया है। इसे इतना पुराना मान सकते हैं कि दालचीनी का पहला लिखित संदर्भ 3000 ईसा पूर्व में दिखा, जब इसका नाम चीनी लेखन में पाचन समस्याओं और इन्फ्लूएंजा के इलाज के रूप में प्रकट किया गया था।
यह प्राचीन ग्रीस और रोम के लेखन में भी सामने आया और प्राचीन मिस्र के लोग इसके संरक्षण गुणों के लिए इसे महत्व देते थे और इसका उपयोग ममियों के शवलेपन के लिए करते थे। दालचीनी के इतिहास का एक आकर्षक पहलू यह है कि सदियों से इस मूल्यवान मसाले का स्रोत वास्तव में अज्ञात था!
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सिर्फ राजाओं को होता था भेंट
यह मसाला उस दौरान इतना महत्वूपूर्ण और विलक्षण होता था कि इसकी कीमतें आसमान छूती थीं। आपूर्ति के लिए इस रहस्यमय और विलक्षण स्रोत का मतलब था कि यह दुर्लभ और महंगा होगा। यही कारण था कि इसे सिर्फ राजा-महाराजा को उपहार के रूप में ही दिया जाता।
आपको जानकर हैरानी होगी कि पहली शताब्दी ईस्वी में, प्लिनी द एल्डर ने 350 ग्राम दालचीनी को पांच किलोग्राम से अधिक चांदी के मूल्य के बराबर बताया था, जिसका मतलब है कि इसका प्रति वजन चांदी के मूल्य का लगभग पंद्रह गुना था।
मध्ययुगीन चिकित्सकों द्वारा इसका उपयोग
मध्ययुगीन चिकित्सकों ने खांसी, गले में खराश के इलाज के लिए दवाओं में दालचीनी का इस्तेमाल किया। मसाले को मांस के लिए इसके प्रीजर्वेटिव गुणों के कारण भी महत्व दिया गया था, जो खराब होने के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया को रोकते हैं।
जब दालचीनी के लिए छिड़ गई थी जंग
17वीं शताब्दी में, डचों ने दुनिया के सबसे बड़े दालचीनी आपूर्तिकर्ता, सीलोन द्वीप को पुर्तगालियों से जब्त कर लिया था। उन्होंने गरीब श्रमिक चालिया जाति से इसके कोटा की मांग की। जब डचों को भारत के तट पर दालचीनी के स्रोत के बारे में पता चला, तो उन्होंने स्थानीय राजा को रिश्वत दी और इसे नष्ट करने की धमकी दी और फिर इस प्रकार इस बेशकीमती मसाले पर उनका एकाधिकार बना रहा।
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1795 में, इंग्लैंड ने फ्रेंच से सीलोन को जब्त कर लिया था, जिन्होंने इसे क्रांतिकारी युद्धों के दौरान हॉलैंड पर अपनी जीत से हासिल किया था। हालांकि यह मसाला जिसके चर्चे बड़े लोकप्रिय हुए जल्द ही आम बन गया। दरअसल 1833 तक, अन्य देशों ने पा लिया था कि इसे जावा, सुमात्रा, बोर्नियो, मॉरीशस, रीयूनियन और गुयाना जैसे क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है। इतना ही नहीं, दालचीनी अब दक्षिण अमेरिका, वेस्ट इंडीज और अन्य उष्णकटिबंधीय जलवायु में भी उगाई जाती है।
तो कुछ ऐसा था दालचीनी का समृद्ध इतिहास। आपको इसके बारे में जानकर कैसा लगा, हमें कमेंट कर जरूर बताएं। अगर यह लेख पसंद आया तो इसे लाइक और शेयर करना न भूलें। ऐसे ही लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी के साथ।
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